उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: SC में वकालत से लेकर उपराष्ट्रपति तक का कैसा रहा सफर?
टेन न्यूज नेटवर्क
New Delhi News (21/07/2025): भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने राष्ट्रपति को भेजे गए 8 पैराग्राफ के त्यागपत्र में अपनी बिगड़ती सेहत को इस्तीफे की मुख्य वजह बताया है। अपने पत्र में उन्होंने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और कैबिनेट के सहयोगी मंत्रियों के प्रति आभार जताया और सांसदों को भी सदन संचालन में सहयोग के लिए धन्यवाद कहा। धनखड़ ने लिखा कि उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के रूप में उन्होंने लोकतंत्र के मूल्यों को करीब से जाना और भारत के लोकतांत्रिक सफर का हिस्सा बनना उनके लिए गर्व और सीख का अनुभव रहा।
ध्यान देने वाली बात है कि इसी साल मार्च में जगदीप धनखड़ को सीने में दर्द की शिकायत के बाद नई दिल्ली स्थित एम्स (AIIMS) में भर्ती कराया गया था, जिसके कारण वे बजट सत्र की कार्यवाही से कई दिनों तक अनुपस्थित रहे थे। स्वास्थ्य कारणों से वे लंबे समय से सक्रिय रूप से काम नहीं कर पा रहे थे।
जगदीप धनखड़ का राजनीतिक और कानूनी जीवन काफी विविधतापूर्ण रहा है। राजस्थान के झुंझुनूं जिले के किठाना गांव में 18 मई 1951 को एक जाट परिवार में जन्मे धनखड़ ने अपनी शुरुआती पढ़ाई सैनिक स्कूल चित्तौड़गढ़ से की और बाद में राजस्थान यूनिवर्सिटी से बीएससी व एलएलबी की डिग्री हासिल की। सीनियर एडवोकेट के रूप में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और राजस्थान हाई कोर्ट में प्रतिष्ठा प्राप्त की। 1990 में उन्हें राजस्थान हाई कोर्ट का सीनियर एडवोकेट नामित किया गया।
धनखड़ का राजनीतिक सफर 1989 में शुरू हुआ, जब उन्होंने जनता दल के टिकट पर झुंझुनूं से लोकसभा चुनाव जीता। बाद में वे कांग्रेस में शामिल हुए और 1993 में किशनगढ़ विधानसभा सीट से विधायक बने। हालांकि 1998 में झुंझुनूं लोकसभा सीट से तीसरे स्थान पर रहे। 2003 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा और पार्टी के विधिक प्रकोष्ठ में अहम भूमिका निभाई। वर्ष 2016 में वे भाजपा के कानूनी विभाग के प्रमुख बनाए गए।
30 जुलाई 2019 को धनखड़ पश्चिम बंगाल के 21वें राज्यपाल नियुक्त किए गए। इस दौरान ममता बनर्जी सरकार से उनकी तीखी राजनीतिक तकरार कई बार सुर्खियों में रही। उनका कार्यकाल काफी सक्रिय और विवादों से घिरा रहा। इसके बाद 2022 में उन्होंने उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को हराकर देश के 14वें उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति पद की शपथ ली।
धनखड़ को राजस्थान में जाट समुदाय को आरक्षण दिलाने की दिशा में अग्रणी भूमिका के लिए भी जाना जाता है। सुप्रीम कोर्ट में वर्षों तक वकालत करने के साथ-साथ उन्होंने संसद में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1990 में चंद्रशेखर सरकार में संसदीय कार्य मंत्रालय के राज्यमंत्री के रूप में उन्होंने केंद्रीय राजनीति में कदम रखा।
धनखड़ का इस्तीफा भारतीय राजनीति में एक अहम मोड़ है। उनका जीवन एक सुदृढ़ लोकतांत्रिक सोच, विधिक सूझबूझ और जनसेवा के उदाहरण के रूप में याद किया जाएगा।।
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