Drishti IAS के संस्थापक विकास दिव्यकीर्ति को कोर्ट ने क्यों भेजा नोटिस?, क्या है पूरा मामला
रंजन अभिषेक (टेन न्यूज़ नेटवर्क)
New Delhi News (11/07/2025): दृष्टि IAS (Drishti IAS) कोचिंग संस्थान के संस्थापक और चर्चित शिक्षक विकास दिव्यकीर्ति (Vikas Divyakirti) एक यूट्यूब वीडियो को लेकर गंभीर विवाद में घिर गए हैं। वीडियो में कथित रूप से न्यायपालिका के खिलाफ अपमानजनक और व्यंग्यात्मक टिप्पणियां की गई हैं, जिसे लेकर राजस्थान के अजमेर स्थित सिविल न्यायालय ने सख्त रुख अपनाया है। अदालत ने उन्हें 22 जुलाई को अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया है।
मामला उस यूट्यूब वीडियो से जुड़ा है, जिसका शीर्षक है – ‘IAS vs Judge कौन ज्यादा ताकतवर है | Best Guidance by Vikas Divyakirti sir’। यह वीडियो यूट्यूब पर कई चैनलों पर अपलोड है। शिकायतकर्ता कमलेश मंडोलिया ने दावा किया है कि इस वीडियो में IAS अधिकारियों और न्यायिक अधिकारियों के प्रति आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल हुआ है, जिससे न सिर्फ उनकी भावनाएं आहत हुई हैं, बल्कि न्यायपालिका की प्रतिष्ठा भी प्रभावित हुई है।
अजमेर के अतिरिक्त सिविल न्यायाधीश एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट मनमोहन चंदेल (Justice Manmohan Chandel) ने 8 जुलाई को दिए आदेश में स्पष्ट किया कि वीडियो में न्यायपालिका का उपहास उड़ाया गया है और इससे उसकी गरिमा और निष्पक्षता को ठेस पहुंची है। अदालत ने यह भी कहा कि वीडियो में प्रयुक्त भाषा प्रथम दृष्टया “अपमानजनक, आपत्तिजनक और नीचा दिखाने वाली” है। कोर्ट ने इस आधार पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 356 (1) से (4) के तहत मामला दर्ज करने का निर्देश दिया है।
इस मामले में अधिवक्ता अशोक सिंह रावत ने बताया कि कोर्ट ने कमलेश मंडोलिया द्वारा दायर परिवाद को आंशिक रूप से स्वीकारते हुए 40 पृष्ठों का विस्तृत आदेश पारित किया है और दिव्यकीर्ति को स्वयं कोर्ट में उपस्थित रहने का निर्देश दिया है।
विकास दिव्यकीर्ति ने इस विवाद पर सफाई देते हुए कहा कि यह वीडियो उनकी जानकारी या अनुमति से प्रकाशित नहीं हुआ है। उन्होंने इसे किसी थर्ड पार्टी द्वारा संपादित और अपलोड किया गया वीडियो बताया। उनका कहना है कि न तो उन्होंने और न ही दृष्टि IAS ने इस वीडियो को प्रकाशित किया। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि शिकायतकर्ता को BNS की धारा 356 के तहत पीड़ित नहीं माना जा सकता क्योंकि वीडियो में किसी विशिष्ट व्यक्ति या समूह का नाम नहीं लिया गया है।
हालांकि, अदालत ने उनके इस तर्क को खारिज कर दिया और यह भी स्पष्ट किया कि एक शिक्षक और संस्था प्रमुख के रूप में दिव्यकीर्ति को इस बात की जिम्मेदारी लेनी चाहिए थी कि उनका भाषण रिकॉर्ड किया जा रहा है और वह सार्वजनिक हो सकता है। कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि दिव्यकीर्ति ने वीडियो अपलोड करने वाले को कोई कानूनी नोटिस नहीं भेजा और न ही आपत्ति दर्ज कराई, जिससे उनके दावे की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न खड़ा होता है।
यह मामला अब सिर्फ एक वीडियो विवाद नहीं रहा, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम न्यायपालिका की गरिमा जैसे गंभीर संवैधानिक मुद्दों तक पहुंच गया है। अगली सुनवाई 22 जुलाई को होगी और तब यह तय होगा कि अदालत इस पूरे प्रकरण पर क्या निर्णय लेती है। सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को लेकर गहन बहस छिड़ी हुई है, जहां लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और न्यायिक सम्मान के बीच संतुलन पर सवाल उठा रहे हैं।।
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