भारत को समझना है, तो उसकी जड़ों से जुड़ना होगा : महेंद्र क्षेत्रीय प्रचारक, RSS
मेघा राजपूत, संवाददाता
मेरठ (26 जून 2025): राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) मेरठ प्रांत के सामान्य संघ शिक्षा वर्ग का समापन समारोह पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय प्रचारक महेंद्र मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। समापन समारोह में उन्होंने भारतीय संस्कृति, हिंदुत्व, देश की अस्मिता और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत की प्राचीन विरासत पर गहन वक्तव्य दिया।
संघ शिक्षा वर्ग का उद्देश्य और महत्व
अपने संबोधन की शुरुआत में RSS क्षेत्रीय प्रचारक महेंद्र ने बताया कि संघ में प्रशिक्षण की परंपरा बहुत पुरानी है। प्रारंभिक दिनों से ही शाखाओं के माध्यम से कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने की व्यवस्था रही है। ये वर्ग देशभर में तीन, सात, पंद्रह और बीस दिनों के होते हैं, जबकि 25 दिवसीय विशेष वर्ग नागपुर में आयोजित किया जाता है, जो कार्यकर्ताओं को संघ कार्य की पद्धति, संगठनात्मक विधियों और राष्ट्र सेवा के मूल विचारों से परिचित कराता है। उन्होंने कहा कि ऐसे वर्गों में न केवल कार्यशैली सिखाई जाती है, बल्कि भारत के महान महापुरुषों के जीवन चरित्र, संस्कृति, सामाजिक चेतना और राष्ट्रीयता से भी परिचित कराया जाता है।
हिंदुत्व की अवधारणा और उसकी संविधान में स्थिति
क्षेत्रीयप्रचारक महेंद्र ने कहा कि संघ एक हिंदू संगठन है और इस विचारधारा की जड़ें भारत के संविधान में भी निहित हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि “हिंदू कोई पंथ नहीं, बल्कि एक जीवनशैली, एक सांस्कृतिक पहचान है। उन्होंने संविधान में उल्लिखित हिंदू की परिभाषा का उल्लेख करते हुए कहा, “जो भी भारत में जन्मा है और इस संस्कृति में विश्वास करता है, वह हिंदू है, यही इस शब्द का व्यापक और समावेशी अर्थ है।”

भारत की पहचान: भारत या इंडिया?
अपने विचार रखते हुए महेंद्र ने देश के नाम को लेकर चल रही भ्रांतियों पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि ‘भारत’ केवल एक नाम नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक है। “भारत कोई हालिया नाम नहीं है। यह नाम ऋषभदेव के पुत्र ‘भरत’ से जुड़ा हुआ है। कुछ लोग शकुंतला पुत्र भरत का भी उल्लेख करते हैं। द्वापर युग में रचित महाग्रंथ ‘महाभारत’ इसका प्रमाण है कि ‘भारत’ एक अत्यंत प्राचीन सांस्कृतिक नाम है। उन्होंने कहा कि विदेशी आक्रांताओं ने देश की सांस्कृतिक पहचान को मिटाने के लिए इसे ‘इंडिया’ कहना शुरू किया, जो आज तक चला आ रहा है। “हमें गर्व से अपने देश को ‘भारत’ कहना चाहिए, न कि उपनिवेशवादी विरासत से मिले ‘इंडिया’ शब्द को अपनाना चाहिए।”
विश्वगुरु भारत की भूमिका और योगदान
क्षेत्रीय प्रचारक महेंद्र ने जोर देते हुए कहा कि भारत हमेशा से विश्वगुरु रहा है, योग, ध्यान, दर्शन, गीता, आयुर्वेद जैसे ज्ञान की विधाओं के लिए पूरी दुनिया भारत की ओर देखती है।उन्होंने उदाहरण स्वरूप मैक्स मूलर और चार्ल्स विलकिंस जैसे विदेशी विद्वानों का उल्लेख किया, जिन्होंने भारत के ग्रंथों का गहन अध्ययन किया। विलकिंस द्वारा अनूदित गीता की प्रस्तावना तत्कालीन गवर्नर वॉरेन हेस्टिंग्स ने लिखी थी, जिसमें उन्होंने कहा था, “भविष्य में जब ब्रिटिश शासन समाप्त होगा, तब यही गीता मानवता को शांति प्रदान करेगी।
भारत की संस्कृति के वैश्विक दूत
महेंद्र ने भारतीय संतों और महापुरुषों के योगदान को पर कहा कि भगवान बुद्ध ने बिना किसी आक्रमण के चीन, तिब्बत, श्रीलंका और वियतनाम जैसे देशों में भारतीय संस्कृति का प्रचार किया। स्वामी विवेकानंद ने 1893 के शिकागो धर्म संसद में “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों” कहकर भारतीय संस्कृति के सम्मान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ऊंचा किया। स्वामी रामतीर्थ ने भारत की गरिमा को विदेशों में फैलाया।
भारत का वैज्ञानिक योगदान
साथ ही क्षेत्रीय प्रचारक महेंद्र ने कहा कि हमें इस बात पर गर्व करना चाहिए कि गणना की कला भारत ने दी। शून्य और दशमलव का आविष्कार भारत में हुआ। महर्षि ब्रह्मगुप्त ने अंकगणित और बीजगणित का विकास किया। बोधायन ने पाइथागोरस प्रमेय की संकल्पना दी। आर्यभट्ट ने त्रिकोणमिति और ग्रह-गणित की उन्नत प्रणाली दी और वही माधवाचार्य ने आधुनिक गणित की नींव रखी। साथ ही महेंद्र ने आइंस्टीन के उस कथन का भी उल्लेख किया जिसमें उन्होंने कहा था “हम भाग्यशाली हैं कि भारत ने हमें गणना करना सिखाया।”
संस्कारों की नींव ही भारत की ताकत है
अपने भाषण के अंत में महेंद्र ने कहा कि भारत की विशेषता इसकी संस्कारयुक्त संस्कृति है, जहाँ स्त्री को माता या बहन के रूप में देखा जाता है। यही दृष्टिकोण हमें अन्य देशों से अलग बनाता है। उन्होंने सभी स्वयंसेवकों और उपस्थितजनों से आग्रह किया कि वे भारतीय संस्कृति पर गर्व करें, उसका अध्ययन करें और उसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाएं।
संघ शिक्षा वर्ग खत्म हुआ, लेकिन एक सवाल बाकी रह गया क्या हम अब भी अपने बच्चों को भारत सिखा रहे हैं या सिर्फ इंडिया समझा रहे हैं? जब जवाब खोजने लगेंगे, तभी शायद हम भारत को फिर से भारत बना सकेंगे। आप इस खबर पर अपनी क्या राय रखते हैं हमारे कमेंट बॉक्स में जरूर लिखे।
मेरठ में आयोजित यह संघ शिक्षा वर्ग न केवल एक प्रशिक्षण सत्र था, बल्कि एक सांस्कृतिक जागरण भी था। क्षेत्रीय प्रचारक महेंद्र के भाषण ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत की आत्मा उसकी संस्कृति में है, और यह संस्कृति तभी जीवंत रहेगी जब हर नागरिक उसमें आस्था और गर्व से जुड़ा रहेगा।।
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