दिल्ली में 1 जुलाई से इन गाड़ियों की नो एंट्री!, नियम तोड़ने पर पेट्रोल पंप के खिलाफ होगी सख्त कार्रवाई

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (22 जून 2025): दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के लिए बड़ा कदम उठाया गया है। अब 10 साल से पुराने डीजल और 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहनों को 1 जुलाई 2025 से राष्ट्रीय राजधानी के किसी भी पेट्रोल पंप पर फ्यूल नहीं मिलेगा। इससे भी सख्त बात यह है कि यदि किसी पेट्रोल पंप ने नियम तोड़कर ऐसी गाड़ियों में फ्यूल डाला, तो उसके खिलाफ मोटर वाहन अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए दिल्ली सरकार ने 100 फ्लाइंग स्क्वॉड टीमें गठित की हैं, जिनमें ट्रैफिक पुलिस और परिवहन विभाग के अधिकारी शामिल हैं। यह निर्णय कमिशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) की सिफारिश पर लागू किया जा रहा है।

इस फैसले को तकनीकी स्तर पर मजबूती देने के लिए ट्रांसपोर्ट विभाग ने पहले ही कदम उठा लिए थे। दिसंबर 2024 में दिल्ली के पेट्रोल पंपों पर ANPR (ऑटोमैटिक नंबर प्लेट रिकग्निशन) कैमरे लगाए गए, जिनके जरिए 7 महीनों के ट्रायल में 3.63 करोड़ गाड़ियों की स्कैनिंग की गई। इनमें से 4.9 लाख गाड़ियां नियम के मुताबिक ‘ओवरएज’ पाई गईं और 44 हजार गाड़ियों को जब्त भी किया गया। साथ ही इस टेक्नोलॉजी ने करीब 29.52 लाख वाहनों का पीयूसी रिन्यू भी सुनिश्चित किया। अधिकारियों का मानना है कि तकनीक की मदद से इस बार नियम प्रभावी तरीके से लागू हो पाएगा।

हालांकि, दिल्ली पेट्रोल डीलर्स एसोसिएशन ने इस नीति पर नाराजगी जताई है। संगठन के अध्यक्ष निश्चल सिंघानिया ने कहा कि वे सरकार के साथ सहयोग को तैयार हैं, लेकिन पेट्रोल पंपों पर कार्रवाई करना अनुचित है। इस बारे में ट्रांसपोर्ट विभाग को पत्र भी लिखा गया है। नए नियमों के लागू होने से दिल्ली की सड़कों से लगभग 62 लाख गाड़ियां हट सकती हैं, जिनमें 41 लाख दोपहिया वाहन हैं। वहीं, 1 नवंबर से यही नियम एनसीआर के पांच जिलों—गुरुग्राम, फरीदाबाद, गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद और सोनीपत—में भी लागू किया जाएगा।

सीएक्यूएम के अनुसार दिल्ली और एनसीआर में कुल 44 लाख ओवरएज गाड़ियां हैं। इनमें सबसे ज्यादा गाड़ियां उन्हीं पांच एनसीआर जिलों में चल रही हैं, जहां नवंबर से यह नियम प्रभाव में आएगा। अधिकारियों का मानना है कि सर्दियों में दिल्ली में वायु प्रदूषण और स्मॉग की स्थिति बेहद गंभीर हो जाती है, जिसमें वाहनों से निकलने वाला धुआं एक बड़ी भूमिका निभाता है। ऐसे में पुराने वाहनों को हटाने से इस बार सर्दियों में प्रदूषण में स्पष्ट कमी देखी जा सकती है।

सीएक्यूएम के तकनीकी आंकड़ों के मुताबिक बीएस-2, बीएस-3 और बीएस-4 गाड़ियां, बीएस-6 मानक की तुलना में कहीं अधिक प्रदूषण करती हैं। बीएस-4 वाहन 4.5 गुना, बीएस-3 वाहन 11 गुना और बीएस-2 वाहन इससे भी ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं। खासतौर पर PM10, PM2.5 और NOx (नाइट्रोजन ऑक्साइड्स) जैसे प्रदूषकों का स्तर इन पुरानी गाड़ियों से बहुत अधिक होता है, जिससे सांस, फेफड़े और दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ता है।

हालांकि, इस नीति के लागू होने से दिल्ली के सीमावर्ती जिलों में फ्यूल स्टेशनों पर भारी भीड़ बढ़ने की आशंका है। दिल्ली में फ्यूल न मिलने पर लोग बार्डर पार जाकर गुरुग्राम, नोएडा या गाजियाबाद के पंपों से फ्यूल भरवा सकते हैं। मगर सीएक्यूएम का कहना है कि यह समाधान स्थायी नहीं है, क्योंकि नवंबर से यह प्रतिबंध एनसीआर में भी लागू हो जाएगा। शुरुआती स्तर पर कुछ दिक्कतें आ सकती हैं, लेकिन शासन-प्रशासन इसके लिए तैयार है और प्रदूषण को नियंत्रित करने की दिशा में इसे एक निर्णायक कदम मान रहा है।


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