Air India Plane Crash | दार्शनिक विश्लेषण | Dr Vandana Sharma ‘Diya’

टेन न्यूज़ नेटवर्क
दिल्ली  (17 जून 2025): भारत इस समय एक भीषण त्रासदी से गुज़र रहा है, देश का अब तक का सबसे बड़ा विमान हादसा ‘एयर इंडिया फ्लाइट क्रैश’, जिसमें लगभग 270 लोगों की जान गई। इस दुखद घटना पर टेन न्यूज़ नेटवर्क द्वारा प्रस्तुत विशेष कार्यक्रम “आप की राय: गजानन माली शो” में एक विशेष चर्चा आयोजित की गई, जिसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध दार्शनिक और दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. वंदना शर्मा ‘दिया’ ने बतौर अतिथि अपने विचार रखे।

फ्लाइट क्रैश: तकनीकी, सामाजिक और दार्शनिक विश्लेषण

डॉ. वंदना शर्मा ने सबसे पहले फ्लाइट क्रैश में मृत सभी लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि वह इस विषय पर चार मुख्य बिंदुओं पर चर्चा करेंगी।

तकनीकी समस्या:

उन्होंने कहा कि आज की परिवहन व्यवस्था, चाहे वह रेल हो या हवाई यात्रा, तकनीकी समस्याओं से जूझ रही है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण मानवीय लापरवाही और नैतिक मूल्यों का ह्रास है। उन्होंने यह भी कहा कि रिश्वत, आलस्य और लापरवाही जैसी प्रवृत्तियां इन हादसों का मूल कारण बनती हैं।

ग्लोबल वार्मिंग:

डॉ. शर्मा ने कहा कि हालांकि सुनने में यह असामान्य लग सकता है, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग का असर भी हवाई हादसों पर पड़ता है। धरती की गरम हवा उड़ान मार्ग को प्रभावित करती है और पक्षियों के टकराव जैसी घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है। उन्होंने इसे सामूहिक जिम्मेदारी बताते हुए कहा कि मानव जाति ग्लोबल वार्मिंग के लिए बराबर की दोषी है।

भाग्य और ज्योतिषीय दृष्टिकोण:

उन्होंने यह भी कहा कि इस हादसे को नियतिवाद के दृष्टिकोण से देखना चाहिए। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के हवाले से उन्होंने कहा कि यूनिवर्स का हर घटक एक नियत योजना के अंतर्गत काम करता है। उन्होंने यह भी बताया कि फ्लाइट नंबर और मृतकों की संख्या पर ज्योतिषीय गणनाएं की गईं, जिनके अनुसार यह वर्ष मंगल, शनि और केतु जैसे ग्रहों के प्रभाव में है—जो दुर्घटनाओं, रक्तपात और मृत्यु से जुड़े होते हैं।

मैटाफिजिकल या पारमार्थिक दृष्टिकोण:

उन्होंने मृत्यु को एक अनंत ब्रह्मांडीय प्रक्रिया बताया। उनके अनुसार, इस स्तर पर न तो जन्म का महत्व है और न ही मृत्यु का, क्योंकि आत्मा शाश्वत, अविनाशी और आनंद स्वरूप होती है। उन्होंने गीता के श्लोकों का उल्लेख करते हुए कहा कि चेतना और आत्मा को कोई मार नहीं सकता, कोई अग्नि जला नहीं सकती, कोई वायु सुखा नहीं सकती।

हादसे से उबरने के उपाय

परिवारों के दर्द को लेकर डॉ. शर्मा ने कहा कि दार्शनिक दृष्टिकोण से शोक की प्रक्रिया को देखना जरूरी है। यह दृष्टिकोण क्रूर लग सकता है, लेकिन वास्तव में यह करुणा से परिपूर्ण होता है। उन्होंने कहा कि समय और प्रकृति धीरे-धीरे हर घाव को भर देती है। भगवद गीता का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि मृत्यु के बाद दुख की अवधि भी संबंधों के अनुसार सीमित होती है—मां 20 दिन, पत्नी 7 दिन, पुत्र 4 दिन, भाई 2 दिन, और मित्र केवल 1 दिन तक शोक मनाते हैं।

उन्होंने कहा कि माया का प्रभाव इतना प्रबल है कि समय बीतने पर लोग पुनः अपने-अपने जीवन में रम जाते हैं। यही जीवन का यथार्थ है। उन्होंने उदाहरण दिया कि जब केदारनाथ आपदा हुई थी, तब पूरा देश स्तब्ध था, लेकिन आज वही लोग अपनी दिनचर्या में लौट चुके हैं।

डॉ. वंदना शर्मा ने अपने वक्तव्य के अंत में यह स्पष्ट किया कि चाहे घटना कितनी भी बड़ी क्यों न हो, हमें उसे सिर्फ प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखना चाहिए। हर व्यक्ति का जीवन और मृत्यु उसके संचित कर्मों और नियति से जुड़ी होती है। दर्शन और आत्मा के स्तर पर, यह सब ब्रह्मांड के नियत क्रम का एक भाग है।।


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