Raja Raghuvanshi Murder Case: वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने क्या कहा? | अब आगे क्या होगा?

टेन न्यूज़ नेटवर्क

नई दिल्ली (13 जून 2025): राजा रघुवंशी की हत्या के मामले ने पूरे देश में सनसनी फैला दी है। इस विषय के मद्देनजर कानूनी पहलुओं को जानने के लिए टेन न्यूज़ नेटवर्क द्वारा प्रस्तुत विशेष कार्यक्रम “आपकी राय: गजानन माली शो” में वरिष्ठ अधिवक्ताओं से चर्चा की। चर्चा में शामिल वरिष्ठ अधिवक्ता एडवोकेट मनी मित्तल और एडवोकेट देवयति ने घटना के कानूनी और सामाजिक पहलुओं पर गहन चर्चा की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए संस्थापक गजानन माली ने सवाल उठाया कि सोनम रघुवंशी और उसके तथाकथित बॉयफ्रेंड पर क्या धाराएं लगाई जा सकती हैं। एडवोकेट मनी मित्तल ने इसे समाज पर एक काला धब्बा बताते हुए कहा कि ये हत्या सुनियोजित थी। उन्होंने कहा कि पति राजा रघुवंशी की हत्या केवल पारिवारिक विवाद नहीं बल्कि आपराधिक षड्यंत्र का परिणाम है। इस केस में सामूहिक इरादे की धाराओं को मुख्य आधार माना जाना चाहिए।

एडवोकेट मनी मित्तल ने कहा कि इस मामले को भारतीय न्याय संहिता की धारा 35 के तहत दर्ज किया जाना उचित होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि पहले ऐसी हत्याएं आईपीसी की धारा 34 के अंतर्गत आती थीं, लेकिन अब बीएनएस की धारा 35 में दर्ज होती हैं। ये धारा “कॉमन इंटेंशन” यानी सामूहिक मंशा पर आधारित होती है, जिसमें कई लोगों का एक साथ जुड़ाव साबित होता है। यदि जांच में 5 से 10 लोग शामिल पाए जाते हैं, तो उन सभी पर एक समान मामला बनता है। मित्तल ने तीन राज्यों की पुलिस मेघालय, यूपी और बिहार के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि पुलिस ने हत्या के तार जोड़ने में विशेष दक्षता दिखाई है। उन्होंने इसे पूर्व नियोजित हत्या करार दिया, न कि मानसिक उत्तेजना में किया गया कृत्य।

कानूनविदों की इस चर्चा में एडवोकेट देवयति ने मनी मित्तल की बातों का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि यह मामला तीन हिस्सों में देखा जाना चाहिए—एक वह जो मीडिया दिखा रही, दूसरा पुलिस की जांच, और तीसरा वह जो वास्तव में सच है। देवयति ने कहा कि अंतिम सत्य सामने लाना पुलिस की जिम्मेदारी है, न कि मीडिया की। कोर्ट में पेश फाइलें ही तय करेंगी कि अपराध किसने किया और मुख्य अभियुक्त कौन है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि अगर सोनम कोर्ट में अपना बयान बदल देती हैं, तो केस कमजोर हो सकता है। इसलिए अभी किसी पर पूर्ण आरोप लगाना जल्दबाजी होगी। जब तक अदालत में दोष साबित न हो, तब तक आरोपी केवल संदिग्ध कहलाएंगे।

मनी मित्तल ने आई-विटनेस यानी चश्मदीद गवाह के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि ट्रायल के दौरान गवाही देने वाला कोई भी आरोपी खुद भी हो सकता है। यदि चारों में से किसी एक ने कोर्ट में सच्चाई बयान कर दी, तो केस को मजबूती मिलेगी। उन्होंने यह आशंका जताई कि पुलिस के समक्ष दिया गया बयान अगर कोर्ट में बदल गया, तो मामला उलझ सकता है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे संगीन मामलों में पुलिस आमतौर पर मजबूत साक्ष्य जुटा लेती है। अदालत में बयान बदलना केस को कमजोर तो कर सकता है, लेकिन पूरी तरह गिरा नहीं सकता। उन्होंने कोर्ट से इस मामले को गंभीरता से लेने की अपील की।

देवयति ने कहा कि इस केस की न्यायिक प्रक्रिया मेघालय में ही संचालित होगी क्योंकि घटना वहीं घटी है। चूंकि पुलिस जांच मेघालय पुलिस कर रही है, इसलिए ट्रायल भी वहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अन्य राज्यों से आरोपियों को लाने-ले जाने में सुरक्षा की चुनौतियां हो सकती हैं। इन्वेस्टिगेटिंग ऑफीसर को प्रत्येक गिरफ्तारी का ठोस कारण बताना पड़ेगा। ऐसे मामलों में संदेह का लाभ अपराधियों को न मिले, इसलिए प्रक्रिया में पारदर्शिता जरूरी है। उन्होंने कहा कि इस केस की गंभीरता को देखते हुए सीबीआई को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए। इससे पूरे केस में निष्पक्षता बनी रहेगी।

एडवोकेट मनी मित्तल ने इस अपराध को आदतन आपराधिक प्रवृत्ति का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि यह घटना न तो मानसिक दबाव में की गई प्रतीत होती है और न ही क्षणिक उत्तेजना में। जिस प्रकार से हत्या की प्लानिंग की गई, वह एक पेशेवर अपराधी की रणनीति जैसी दिखती है। रोज सामने आ रहे प्रमाण इस केस को और गंभीर बनाते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि इस हत्याकांड की रूपरेखा काफी पहले से तैयार थी। उन्होंने पुलिस से अपेक्षा जताई कि वह इस केस में चूक न करें। उन्होंने यह भी कहा कि दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।

एडवोकेट देवयति ने मीडिया ट्रायल पर चिंता जताई और कहा कि इससे न्याय प्रक्रिया पर असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि हम अंतिम निर्णय तब ही लें जब पुलिस की चार्जशीट और सबूत पूरी तरह सामने आ जाएं। कोर्ट को तथ्यों और जांच के आधार पर निर्णय लेना चाहिए, न कि भावनाओं के आधार पर। मीडिया को संयम बरतने की सलाह देते हुए उन्होंने कहा कि समाज में गलत संदेश नहीं जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोर्ट को चाहिए कि वह अपने विवेक और साक्ष्यों के आधार पर फैसला दे। साथ ही उन्होंने इन्वेस्टिगेटिंग ऑफीसर को केस की हर कड़ी मजबूती से पेश करने का सुझाव दिया। इससे न्याय प्रक्रिया में विश्वसनीयता बनी रहेगी।

चर्चा के अंत में मनी मित्तल ने कहा कि इतने जघन्य अपराध के मामलों में विशेष अदालतों की जरूरत होती है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाया जाए ताकि जल्द से जल्द न्याय हो सके। उन्होंने मेघालय के कोर्ट सिस्टम की सुस्ती पर चिंता जताई, जहां मामलों की संख्या कम है लेकिन कार्यवाही धीमी। उन्होंने कहा कि कोर्ट को इन्वेस्टिगेशन पर लगातार निगरानी रखनी चाहिए। यदि ऐसा न हुआ तो केस कमजोर पड़ सकता है। उन्होंने पीड़ित परिवार को शीघ्र न्याय दिलाने के लिए सशक्त और सक्रिय न्याय प्रणाली की मांग की। ऐसे मामलों में देरी अपने आप में अन्याय बन जाती है।


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