एक देश, एक चुनाव: क्या भारत तैयार है इस बड़े बदलाव के लिए? | टेन न्यूज की विशेष रिपोर्ट
टेन न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली (18 दिसंबर 2024): हाल ही में मुख्य चुनाव आयुक्त ने देशभर में एक साथ चुनाव कराने की संभावनाओं पर चर्चा करते हुए कहा कि चुनाव आयोग पूरी तरह से तैयार है, लेकिन इस निर्णय को अमलीजामा पहनाने की जिम्मेदारी संसद की है।
क्या है ‘एक देश, एक चुनाव’ का प्रस्ताव?
वर्तमान में भारत में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। इसका मतलब यह है कि देश में हर समय कहीं न कहीं चुनाव प्रक्रिया जारी रहती है।
‘एक देश, एक चुनाव’ का विचार यह है कि पांच साल के अंतराल में एक ही समय पर लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराए जाएं। इससे मतदाता एक ही दिन (चरणबद्ध तरीके से) दोनों के लिए मतदान कर सकेंगे।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे। लेकिन 1968-69 में कुछ विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण यह व्यवस्था समाप्त हो गई। 1983 में चुनाव आयोग ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में इस प्रणाली को पुनः लागू करने का विचार प्रस्तुत किया। इसके बाद 1999 में विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में इसका समर्थन किया। 2018 में विधि आयोग ने इस पर एक मसौदा रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए आवश्यक संवैधानिक और कानूनी संशोधनों की सिफारिश की।
कार्यान्वयन की चुनौतियां
इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए संविधान के निम्नलिखित अनुच्छेदों में संशोधन आवश्यक होगा:
अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि)
अनुच्छेद 172 (राज्य विधानसभाओं की अवधि)
अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन)
साथ ही, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में भी संशोधन की आवश्यकता होगी। इसके अलावा, चुनाव आयोग की शक्तियों और जिम्मेदारियों को भी पुनर्गठित करना होगा।
पक्ष में तर्क
1. चुनावी खर्च में कमी: अलग-अलग समय पर चुनाव कराने से भारी वित्तीय लागत आती है।
2. मतदान प्रतिशत में वृद्धि: एक साथ चुनाव से ज्यादा से ज्यादा लोग मतदान कर पाएंगे।
3. सुरक्षा बलों की बेहतर तैनाती: सुरक्षा बल अन्य आंतरिक सुरक्षा कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे।
4. समाज में स्थिरता: बार-बार चुनाव से जाति और धार्मिक मुद्दे उभरते हैं, जो सामाजिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं।
5. सरकार की कार्यक्षमता में सुधार: चुनावों के कारण लागू आदर्श आचार संहिता सरकार के कार्यों को बाधित करती है।
विपक्ष में तर्क
1. संघीय ढांचे पर प्रभाव: राज्य और राष्ट्रीय चुनावों को एक साथ करने से राज्य के मुद्दों पर राष्ट्रीय मुद्दे हावी हो सकते हैं।
2. लोकतांत्रिक जवाबदेही में कमी: बार-बार चुनाव सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह बनाए रखते हैं।
3. संवैधानिक जटिलताएं: समय से पहले किसी विधानसभा के भंग होने पर यह व्यवस्था बाधित हो सकती है।
4. निरंकुशता का खतरा: निश्चित कार्यकाल का प्रावधान सत्ता के दुरुपयोग का कारण बन सकता है।
इस प्रस्ताव को लागू करने से पहले सभी राजनीतिक दलों के बीच व्यापक चर्चा और सहमति बनानी होगी। क्षेत्रीय दलों की चिंताओं को प्राथमिकता देकर समाधान निकाला जा सकता है।
विधि आयोग ने इसे व्यवहार्य बताया है क्योंकि आजादी के शुरुआती दो दशकों में यह प्रणाली सफलतापूर्वक लागू की गई थी।
‘एक देश, एक चुनाव’ का विचार निश्चित रूप से चुनावी प्रक्रिया को सरल बना सकता है और संसाधनों की बचत कर सकता है। हालांकि, इसके कार्यान्वयन में संवैधानिक और संघीय चुनौतियां हैं। अगर सभी पक्षों की सहमति और आवश्यक संशोधन हो जाएं, तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बड़ा बदलाव साबित हो सकता है।।
रंजन अभिषेक (टेन न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली)
प्रिय पाठकों एवं दर्शकों, प्रतिदिन नई दिल्ली, दिल्ली सरकार, दिल्ली राजनीति, दिल्ली मेट्रो, दिल्ली पुलिस, दिल्ली नगर निगम, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना एक्सप्रेसवे क्षेत्र की ताजा एवं बड़ी खबरें पढ़ने के लिए hindi.tennews.in : हिंदी न्यूज पोर्टल को विजिट करते रहे एवं अपनी ई मेल सबमिट कर सब्सक्राइब भी करे। विडियो न्यूज़ देखने के लिए TEN NEWS NATIONAL यूट्यूब चैनल को भी ज़रूर सब्सक्राइब करे।
Discover more from टेन न्यूज हिंदी
Subscribe to get the latest posts sent to your email.
टिप्पणियाँ बंद हैं।