सुप्रीम कोर्ट ने पहलगाम हमले की जांच वाली याचिका पर जताई नाराज़गी

टेन न्यूज़ नेटवर्क

नई दिल्ली (01 मई 2025): जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने याचिकाकर्ता को जमकर फटकार लगाई। याचिका में हमले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग गठित करने की मांग की गई थी। अदालत ने इस मांग को अस्वीकार करते हुए कहा कि यह समय एकजुट होकर आतंकवाद से लड़ने का है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटेश्वर सिंह की पीठ ने याचिकाकर्ता वकीलों को कड़ी चेतावनी दी। अदालत ने पूछा कि “जज कब से सुरक्षा और आतंकवाद मामलों की जांच के विशेषज्ञ हो गए हैं?” कोर्ट ने याचिका को गैर-जिम्मेदाराना करार दिया। याचिका की सुनवाई से इनकार कर दिया गया।

‘देश के खिलाफ न हो जाए संदेश’, सुप्रीम कोर्ट की दो टूक टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इस कठिन समय में हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह आतंकवाद के खिलाफ राष्ट्रीय एकता का समर्थन करे। अदालत ने याचिकाकर्ताओं से सवाल किया कि इस तरह की याचिकाओं से क्या सेना और सुरक्षा बलों का मनोबल नहीं टूटेगा? जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “कृपया ऐसा कोई कदम न उठाएं जिससे देश के भीतर भ्रम या अविश्वास फैले।” कोर्ट का कहना था कि यह समय प्रश्न उठाने का नहीं, बल्कि देश के हित में एक साथ खड़े होने का है। वकीलों को कोर्ट ने यह भी याद दिलाया कि उनके कंधों पर समाज को दिशा दिखाने की जिम्मेदारी होती है। कोर्ट के तेवर सख्त थे लेकिन उद्देश्य स्पष्ट राष्ट्रहित सर्वोपरि।

‘रिटायर्ड जज जांच के विशेषज्ञ नहीं’ – अदालत का स्पष्ट रुख

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को ऐसे मामलों की जांच के लिए विशेषज्ञ मान लेना गलत है। अदालत ने यह भी कहा कि न्यायिक आयोग बनाने से पहले यह सोचना जरूरी है कि क्या इससे न्याय मिलेगा या भ्रम फैलेगा। याचिकाकर्ता की मांग को कोर्ट ने बिना आधार वाला और असंवेदनशील बताया। कोर्ट ने यह सवाल भी उठाया कि जब सरकार और एजेंसियां पहले से जांच में जुटी हैं, तो अलग से आयोग की जरूरत क्यों है? अदालत के इस रुख ने स्पष्ट कर दिया कि वह अनावश्यक न्यायिक हस्तक्षेप से बचना चाहती है। अदालत ने इस पूरे मामले में संयम और राष्ट्रीय भावना की आवश्यकता जताई। सुनवाई के दौरान माहौल गंभीर बना रहा।

कोर्ट ने दी वकीलों को ‘जिम्मेदार बनने’ की सलाह

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दायर करने वाले वकीलों को जमकर फटकार लगाई। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “देश के प्रति आपकी भी कुछ जिम्मेदारी है। कृपया ऐसी प्रार्थना मत करें जिससे किसी का मनोबल गिरे।” पीठ ने कहा कि वकीलों को अपने कार्यों में संवेदनशीलता और विवेक दिखाना चाहिए। अदालत ने चेताया कि ऐसी याचिकाएं जनता में भ्रम फैला सकती हैं और आतंकी ताकतों के इरादों को अप्रत्यक्ष मदद दे सकती हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसी याचिकाओं से न्यायपालिका की भूमिका पर भी सवाल उठ सकते हैं। कुछ देर की बहस के बाद, वकीलों ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे कोर्ट ने मंजूरी दी। कोर्ट की चेतावनी से वकीलों को स्पष्ट संकेत मिला।

एकजुटता और सतर्कता का संदेश देते हुए कोर्ट ने खत्म की सुनवाई

अंततः सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज कर देशवासियों को एकजुट रहने का संदेश दिया। अदालत ने साफ किया कि इस कठिन दौर में सभी को देशहित में काम करना होगा, न कि संस्था और सुरक्षा बलों की नीयत पर शक करना चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत की टिप्पणी थी कि “देश के हर नागरिक ने आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर खड़े होने की जिम्मेदारी ली है।” अदालत ने यह भी कहा कि अब समय है कि अदालतें केवल कानूनी पहलू ही नहीं, सामाजिक जिम्मेदारी भी निभाएं। न्यायपालिका के इस रुख से यह स्पष्ट है कि देश की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। कोर्ट ने सुनवाई समाप्त करते हुए कहा कि “संवेदनशीलता और एकजुटता से ही आतंकवाद का मुकाबला किया जा सकता है।”


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