एक देश, एक चुनाव विकास की राह में नया कदम: आर.के. सिन्हा, पूर्व राज्यसभा सांसद
टेन न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली (18 दिसंबर 2024): भारत में ‘एक देश, एक चुनाव’ का विचार लंबे समय से चर्चा का विषय रहा है। हाल ही में पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति ने इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ाने की सिफारिश की है। इसके तहत लोकसभा, विधानसभा, नगर निकाय और पंचायत चुनाव सभी एक साथ कराने का प्रस्ताव है। सरकार का मानना है कि इससे देश की प्रगति में बाधा बनने वाले बार-बार चुनावों की समस्या का समाधान हो सकता है।
बार-बार चुनाव: विकास में बाधा
भारत जैसे विशाल देश में बार-बार चुनाव कराने से न केवल सरकारी संसाधनों की भारी खपत होती है, बल्कि प्रशासनिक कामकाज पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। चुनाव के दौरान सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षा बलों की बड़ी संख्या में तैनाती करनी पड़ती है, जिससे अन्य कार्य प्रभावित होते हैं। इसके अलावा, बार-बार होने वाले चुनावों से सरकारी खर्च में अप्रत्याशित वृद्धि होती है।
एक साथ चुनाव: संभावित लाभ
एक साथ चुनाव कराने से समय, धन और संसाधनों की बचत हो सकती है। इससे शासन में स्थिरता आएगी, क्योंकि सरकारों को बार-बार चुनाव की चिंता नहीं करनी पड़ेगी। इसके अलावा, राजनीतिक दल भी विकास पर अधिक ध्यान केंद्रित कर पाएंगे। यह भी माना जा रहा है कि एक साथ चुनाव से जीडीपी में 1-1.5 प्रतिशत की वृद्धि संभव है।
इतिहास की झलक
भारत में 1952 से लेकर 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाते थे। लेकिन 1967 के बाद, कुछ राज्यों में समय से पहले विधानसभा भंग होने के कारण यह सिलसिला टूट गया। इसके बाद से देश में अलग-अलग समय पर चुनाव होने लगे, जिससे संसाधनों पर दबाव बढ़ा।
विपक्ष की राय और तर्क
हालांकि, ‘एक देश, एक चुनाव’ के खिलाफ कुछ तर्क दिए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि इससे क्षेत्रीय दलों को राष्ट्रीय दलों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में कठिनाई हो सकती है। साथ ही, यह भी तर्क दिया जा रहा है कि इससे लोकतंत्र कमजोर हो सकता है, क्योंकि एक ही राजनीतिक दल का दबदबा बढ़ सकता है।
अन्य देशों की व्यवस्था
दुनिया के कई देशों में चुनाव की अलग-अलग व्यवस्थाएं हैं। जैसे स्वीडन, बेल्जियम और दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रीय और स्थानीय चुनाव एक साथ कराए जाते हैं। वहीं, अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं। भारत के लिए कौन-सा मॉडल बेहतर होगा, इस पर विचार करना आवश्यक है।
आगे की राह
‘एक देश, एक चुनाव’ का विचार केवल किसी राजनीतिक दल का एजेंडा नहीं है, बल्कि इसे पूरे देश के हित में देखा जाना चाहिए। इस पर विस्तृत और निष्पक्ष चर्चा आवश्यक है। यह कदम न केवल संसाधनों की बचत करेगा, बल्कि मतदाता भागीदारी में भी वृद्धि करेगा।
‘एक देश, एक चुनाव’ केवल चुनावी प्रक्रिया में बदलाव भर नहीं है, बल्कि यह शासन और विकास की गति को तेज करने का माध्यम बन सकता है। अब समय आ गया है कि हम इसे दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रहित के दृष्टिकोण से देखें और आम सहमति से निर्णय लें।।
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