पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर कब्जा!, भू-राजनैतिक विश्लेषक इंद्रनील बनर्जी के साथ विशेष बातचीत
टेन न्यूज़ नेटवर्क
ग्रेटर नोएडा (02 जून 2025): जियोपॉलिटिकल विश्लेषक इंद्रनील बनर्जी ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद पर टेन न्यूज़ नेटवर्क के साथ अपने गहन विचार व्यक्त किए हैं। उनका कहना है कि यदि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर हमला करता, तो यह भारत और पाकिस्तान के बीच एक बड़े युद्ध का कारण बनता, जिसमें भारी संख्या में लोग घायल होते और मारे जाते, जिससे दोनों देशों का भारी नुकसान होता। ऐसी स्थिति में कोई भी सरकार, जो अपने नागरिकों के हित में काम करती है, ऐसा कदम नहीं उठा सकती।
1947-48 युद्ध और कश्मीर का मुद्दा
इंद्रनील बनर्जी ने 1947-48 के युद्ध का उल्लेख करते हुए कहा कि उस समय पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण किया था, जबकि कश्मीर का महाराजा हरी सिंह स्वतंत्रता की ओर अग्रसर था। महाराजा ने भारत से मदद मांगी, और भारतीय सेना ने कश्मीर में प्रवेश किया। हालांकि, भारतीय सेना ने कश्मीर के अधिकांश हिस्सों को कब्जे में ले लिया, लेकिन पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) तक पहुंचने में असमर्थ रही। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप की मांग की , जिससे युद्ध विराम हुआ और POK पाकिस्तान के पास बना रहा।
न्यूक्लियर युग में युद्ध की जटिलताएं
बनर्जी ने यह भी कहा कि 1980 के दशक के बाद, जब पाकिस्तान और भारत दोनों के पास परमाणु हथियार आ गए, तो दोनों देशों के बीच युद्ध की संभावना और भी जटिल हो गई। न्यूक्लियर हथियारों के होने से युद्ध का दायरा और प्रभाव अत्यधिक बढ़ जाता है, जिससे दोनों देशों के लिए भारी नुकसान की संभावना होती है।
ऑपरेशन सिंदूर: आतंकवाद के खिलाफ सख्त संदेश
ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में, बनर्जी ने स्पष्ट किया कि भारतीय सेना ने पाकिस्तान में केवल आतंकवादी ठिकानों पर हमला किया। यह कदम आतंकवाद के खिलाफ एक सख्त संदेश देने के लिए था, न कि पाकिस्तान की सेना या नागरिकों के खिलाफ। इससे यह स्पष्ट किया गया कि भारत आतंकवाद के खिलाफ अपनी कार्रवाई जारी रखेगा, चाहे वह पाकिस्तान के अंदर क्यों न हो।
इंदिरा गांधी और 1971 युद्ध: पाकिस्तान पर कब्जे का अवसर
इंद्रनील बनर्जी ने 1971 के युद्ध के संदर्भ में इंदिरा गांधी की रणनीति पर भी विचार व्यक्त किए। उनका कहना है कि उस समय भारत की प्राथमिकता पूर्वी पाकिस्तान (अब बांगलादेश) को स्वतंत्रता दिलाना थी। भारत ने बांगलादेश की मुक्ति के लिए सैन्य हस्तक्षेप किया और पाकिस्तान की सेना को पराजित किया। हालांकि, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर आक्रमण का कोई स्पष्ट अवसर नहीं था, क्योंकि भारतीय सेना का अधिकांश ध्यान पूर्वी पाकिस्तान पर था। और उस समय भारत की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत भी नहीं थी की इंदिरा गांधी POK पर कब्जे आदेश फौज को देती ।
कारगिल युद्ध और अटल बिहारी वाजपेयी की स्थिति
1999 के कारगिल युद्ध के संदर्भ में, बनर्जी ने कहा कि उस समय पाकिस्तान के पास न्यूक्लियर हथियार थे, जिससे युद्ध की स्थिति और भी जटिल हो गई थी। अटल बिहारी वाजपेयी के पास पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर आक्रमण का कोई स्पष्ट अवसर नहीं था, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय दबाव और न्यूक्लियर खतरे के कारण ऐसा कदम उठाना जोखिमपूर्ण होता।
पीओके के लोग और भारत-पाकिस्तान संबंध
बनर्जी ने यह भी कहा कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) के लोग स्वतंत्रता की ओर अग्रसर हैं। कुछ लोग भारत में शामिल होना चाहते हैं, कुछ पाकिस्तान में रहना चाहते हैं, और कुछ अपना स्वतंत्र देश चाहते हैं। हालांकि, पाकिस्तान की सेना ने POK में अपनी पकड़ मजबूत कर रखी है, जिससे वहां की स्वतंत्रता की आवाज दबाई जाती है।
इंद्रनील बनर्जी के विचारों से यह स्पष्ट होता है कि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी सैन्य कार्रवाई के परिणाम गंभीर हो सकते हैं। ऑपरेशन सिंदूर जैसे कदम आतंकवाद के खिलाफ सख्त संदेश देने के लिए आवश्यक हो सकते हैं, लेकिन पूर्ण युद्ध से बचना और कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से समस्याओं का समाधान करना अधिक उचित होता है। भारत की रणनीति को समझदारी से अपनाना और अंतरराष्ट्रीय दबावों का सामना करना आवश्यक है, ताकि क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनी रहे।
उम्मीद करते हैं कि यह टेन न्यूज़ की विशेष खबर आपको जरूर पसंद आई होगी आपको क्या लगता है कि POK को भारत में आना चाहिए इस पर आपकी क्या राय है हमारे कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।।
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