दिल्ली चिड़ियाघर में डिजिटल क्रांति, पेपरलेस व्यवस्था से पर्यावरण संरक्षण की मिसाल
टेन न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली (18 मई 2025): नई दिल्ली के नेशनल जूलॉजिकल पार्क, जिसे आमतौर पर दिल्ली चिड़ियाघर के नाम से जाना जाता है, अब पर्यावरण संरक्षण और आधुनिक तकनीक के समन्वय की दिशा में एक नई मिसाल कायम कर रहा है। पहले जहां टिकट काउंटर बंद कर पूरी तरह से ऑनलाइन टिकटिंग सिस्टम लागू किया गया था, वहीं अब आंतरिक कार्यप्रणाली को भी पूरी तरह से डिजिटल बना दिया गया है। इससे न केवल प्रशासनिक कामकाज अधिक पारदर्शी और व्यवस्थित हो गया है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण योगदान मिल रहा है।
चिड़ियाघर प्रशासन ने सभी 20 बीट पर तैनात कर्मचारियों को टैबलेट प्रदान किए हैं, जिनके माध्यम से जानवरों और पक्षियों की गतिविधियों से जुड़ा हर डेटा रियल टाइम सॉफ्टवेयर में दर्ज किया जाता है। यह डेटा सीधे मुख्य नियंत्रण कक्ष तक पहुंचता है, जिससे अधिकारियों को किसी भी समय सटीक जानकारी मिल जाती है। इस प्रक्रिया से न केवल निर्णय लेने की गति बढ़ी है, बल्कि कागज के उपयोग में भारी कमी आई है। चिड़ियाघर के डायरेक्टर डॉ. संजीत कुमार (आईएफएस) के मुताबिक यह पहल पर्यावरण के साथ-साथ प्रशासनिक दक्षता को भी बढ़ावा देती है।
पेपरलेस कार्य प्रणाली से एक ओर जहां पर्यावरण संरक्षण को बल मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर कर्मचारियों का कार्य भी पहले की तुलना में अधिक व्यवस्थित और सरल हो गया है। हर कर्मचारी अपनी बीट से ही टैबलेट के जरिए डेटा दर्ज करता है, और उसकी लोकेशन भी साथ में रिकॉर्ड होती है। यह प्रणाली पारदर्शिता बढ़ाने में बेहद कारगर साबित हो रही है। कागज का प्रयोग न होने से वन कटाव में भी अप्रत्यक्ष रूप से कमी आ रही है, जो प्राकृतिक संतुलन के लिए बेहद जरूरी है।
दिल्ली चिड़ियाघर में ‘प्लास्टिक मुक्त परिसर’ जैसी अन्य पर्यावरणीय योजनाएं भी चल रही हैं। ऑफिस स्तर पर अधिकतर पत्राचार, रिपोर्टिंग और दस्तावेजीकरण ऑनलाइन किया जा रहा है। यह पहल ‘ग्रीन ऑफिस’ की ओर एक ठोस कदम है, जो आने वाले समय में अन्य संस्थानों के लिए प्रेरणास्रोत बन सकता है। इस दिशा में चिड़ियाघर प्रशासन का प्रयास दिखाता है कि सरकारी संस्थाएं भी टेक्नोलॉजी के सहारे सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं।
ऑनलाइन टिकटिंग सिस्टम भी इस दिशा में एक मजबूत पहल रही है। पहले टिकट छपते थे, गेट पर चेक होते थे और फाड़कर फेंक दिए जाते थे, जिससे न केवल कागज बर्बाद होता था बल्कि परिसर में गंदगी भी फैलती थी। अब केवल एक क्यूआर कोड स्कैन करके प्रवेश मिल जाता है। इससे न सिर्फ सफाई बनी रहती है, बल्कि एक क्लिक में यह भी पता चल जाता है कि कितने लोग चिड़ियाघर घूमने आए। इस तकनीकी बदलाव ने न केवल अनुभव को बेहतर बनाया है, बल्कि संसाधनों की बचत भी सुनिश्चित की है।
दिल्ली चिड़ियाघर 176 एकड़ में फैला है और यहां 1200 से अधिक पशु-पक्षियों की प्रजातियां संरक्षित हैं। एक दिन में यहां 18,000 लोगों की टिकटिंग क्षमता है, जो बच्चों सहित कई बार 24,000 तक पहुंच जाती है। ऐसे संस्थान जब पेपरलेस कार्य प्रणाली अपनाते हैं, तो यह केवल एक आंतरिक परिवर्तन नहीं होता, बल्कि यह पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा बन जाता है। यह पहल दर्शाती है कि टेक्नोलॉजी का सही उपयोग न केवल सुशासन को संभव बनाता है, बल्कि पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारियों को भी मजबूती देता है।
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