सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में शशि थरूर की नियुक्ति पर गरमाई सियासत, संदीप दीक्षित ने साधा निशाना

टेन न्यूज़ नेटवर्क

नई दिल्ली (18 मई 2025): भारत सरकार द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मजबूती से रखने के लिए सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों की घोषणा की गई है। इन प्रतिनिधिमंडलों को दुनिया के विभिन्न देशों में भेजा जाएगा ताकि भारत का पक्ष प्रभावी ढंग से रखा जा सके। खास बात यह है कि इन प्रतिनिधिमंडलों में कांग्रेस सांसद शशि थरूर को भी शामिल किया गया है, जिसे लेकर अब कांग्रेस के भीतर ही विरोध के स्वर उठने लगे हैं।

दिल्ली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता संदीप दीक्षित ने शशि थरूर की नियुक्ति पर अप्रत्यक्ष रूप से नाराजगी जताते हुए बयान दिया है। उन्होंने कहा, “पहले भी हमने देखा है कि सरकार की ओर से जो सूचनाएं प्रतिनिधिमंडल को दी जाती हैं, वही बातें वहां दोहराई जाती हैं। ऐसे में यह दौरा स्वतंत्र राय रखने से ज्यादा सरकार के पक्ष को प्रचारित करने जैसा हो जाता है।” हालांकि दीक्षित ने अपने बयान में शशि थरूर का नाम सीधे तौर पर नहीं लिया, लेकिन उनका निशाना स्पष्ट था।

दीक्षित ने कहा कि देश की एकता और अखंडता से जुड़े मुद्दों पर जब प्रतिनिधिमंडल विदेशों में दौरे करते हैं, तो उनका उद्देश्य केवल संवाद होना चाहिए, न कि सरकार की छवि चमकाना। उन्होंने यह भी जोड़ा कि “नागरिक से नागरिक और राजनेता से राजनेता के बीच संवाद की जरूरत होती है, लेकिन यदि प्रतिनिधिमंडल केवल एकतरफा विचार लेकर जाए, तो इसका असर सीमित होता है।”

गौरतलब है कि 22 अप्रैल को जम्मू के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने कड़ा सैन्य जवाब देते हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चलाया था, जिससे सीमा पार आतंकी ढांचे को काफी नुकसान पहुंचा। इसके बाद चार दिनों तक भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात रहे, और फिर अचानक सीजफायर की घोषणा हो गई। अब भारत सरकार इस कार्रवाई को वैश्विक स्तर पर सही ठहराने और पाकिस्तान की भूमिका को उजागर करने के लिए सांसदों को विदेश भेज रही है।

कांग्रेस ने सरकार की इस रणनीति को लेकर सवाल उठाए हैं। पार्टी का मानना है कि अगर सरकार प्रतिनिधिमंडल में किसी कांग्रेस नेता को शामिल कर रही है, तो उसे पहले पार्टी नेतृत्व से सलाह लेनी चाहिए थी। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, शशि थरूर को शामिल करना कांग्रेस की औपचारिक मंजूरी के बिना हुआ है, और यही ऐतराज की वजह बना है। हालांकि शशि थरूर अब तक इस विवाद पर चुप्पी साधे हुए हैं। लेकिन राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज है कि क्या थरूर को इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल करना एक सोची-समझी रणनीति है, ताकि कांग्रेस के भीतर से ही सरकार के पक्ष में एक मुखर चेहरा तैयार किया जा सके।

इस पूरे घटनाक्रम से यह साफ हो गया है कि आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दों पर भी सियासी मतभेद गहराते जा रहे हैं। एक ओर जहां सरकार अपनी वैश्विक छवि को मजबूत करने की कोशिश कर रही है, वहीं विपक्ष इस प्रक्रिया को “एकतरफा संवाद” बता रहा है, जिससे लोकतांत्रिक संतुलन पर सवाल उठते हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि शशि थरूर इस दौरे पर जाते हैं या पार्टी दबाव में पीछे हटते हैं। साथ ही यह भी कि क्या कांग्रेस इस मुद्दे पर खुलकर कोई आधिकारिक स्थिति लेगी, या मामला आंतरिक असहमति के दायरे में ही सुलझा लिया जाएगा। फिलहाल इतना तय है कि सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की यह कवायद सियासी तूफान का कारण बन चुकी है।


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