पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति खस्ताहाल l IMF ने भी लगाई 50 शर्ते l जनता पर पड़ेगी महंगाई की मार
टेन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली (18 मई 2025): पाकिस्तान की आर्थिक हालत दिनों-दिन बदतर होती जा रही है। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से मिली एक अरब डॉलर की किश्त ने पाकिस्तान की सांस तो कुछ देर के लिए चलाए रखी है, लेकिन इसके साथ लगी 50 कड़ी शर्तों ने आम जनता की नींदें उड़ा दी हैं। IMF ने अपनी अब तक की सबसे सख्त शर्तों के साथ यह मदद दी है, जिसमें टैक्स सुधार, ऊर्जा दरों में बढ़ोतरी, रक्षा बजट में कटौती और कृषि कर कानूनों को लागू करना जैसे कई सख्त प्रावधान शामिल हैं।
इन शर्तों के मुताबिक, पाकिस्तान सरकार को अगले साल के लिए 17.6 लाख करोड़ रुपये का बजट संसद से पारित कराना होगा। इसके अलावा, बिजली उपभोक्ताओं से “कर्ज सेवा अधिभार” के रूप में अतिरिक्त शुल्क वसूला जाएगा, जिससे बिजली पहले से और महंगी हो जाएगी। वहीं, रक्षा बजट को 2.414 ट्रिलियन रुपये तक सीमित करना होगा, जबकि इससे पहले संसद इसे 2.5 ट्रिलियन से ज्यादा रखने पर विचार कर रही थी। इन कटौतियों का सीधा असर सेना और सुरक्षा तंत्र पर पड़ने की आशंका जताई जा रही है। आईएमएफ की ओर से लगाए गए प्रावधान केवल केंद्र सरकार तक सीमित नहीं हैं। चारों प्रांतीय सरकारों को भी कृषि कर कानून लाकर किसानों से टैक्स वसूलने की व्यवस्था करनी होगी। इसके लिए एक नया तंत्र बनाना होगा जो करदाताओं की पहचान, पंजीकरण और रिटर्न प्रक्रिया को डिजिटली नियंत्रित करेगा। यह प्रक्रिया जून के अंत तक पूरी करनी है। सरकार को गवर्नेंस सुधारों को लेकर भी एक व्यापक एक्शन प्लान जारी करना होगा, जिससे प्रशासनिक भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई जा सके।
ऊर्जा क्षेत्र में भी कई अहम बदलाव करने होंगे। बिजली की दरें अब हर साल लागत के आधार पर तय होंगी, और गैस शुल्क में हर छह महीने बाद संशोधन किया जाएगा। “कैप्टिव पावर लेवी” को स्थायी कानून बनाकर निजी उद्योगों को राष्ट्रीय ग्रिड से जोड़ा जाएगा। इसके अलावा 3.21 रुपये प्रति यूनिट के सेवा अधिभार की सीमा को भी खत्म करना होगा। इन सभी कदमों का सीधा असर आम उपभोक्ता की जेब पर पड़ेगा, जिससे महंगाई और बढ़ेगी। एक और महत्वपूर्ण शर्त के तहत पाकिस्तान को 2035 तक सभी टेक्नोलॉजी पार्कों और औद्योगिक क्षेत्रों को मिल रहे कर प्रोत्साहनों की समीक्षा कर उन्हें खत्म करने की योजना बनानी होगी। इससे विदेशी निवेशकों और स्थानीय व्यापारियों को बड़ा झटका लग सकता है। इसके अलावा, तीन साल से अधिक पुरानी कारों के वाणिज्यिक आयात पर लगी रोक को हटाने के लिए संसद में नया कानून पेश करना अनिवार्य किया गया है। इस कानून को जुलाई तक पास करवाना होगा।
इन शर्तों के पीछे IMF का तर्क है कि पाकिस्तान की बिगड़ती अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए यह कड़े कदम आवश्यक हैं। अगर ये सुधार लागू नहीं किए गए तो पाकिस्तान को अगली बेलआउट किश्त नहीं मिलेगी, जिससे आर्थिक संकट और गहरा जाएगा। खास बात यह है कि इन आर्थिक सुधारों की सफलता भारत के साथ तनावपूर्ण संबंधों पर भी निर्भर करेगी। IMF ने चेताया है कि यदि भारत-पाक संबंध और बिगड़ते हैं, तो यह पूरा बेलआउट कार्यक्रम खतरे में पड़ सकता है। भारत-पाक तनाव की वजह से पाकिस्तान की कूटनीतिक स्थिति पहले ही डावांडोल है। IMF ने पाकिस्तान को परोक्ष रूप से संदेश दिया है कि राजनीतिक और क्षेत्रीय स्थिरता के बिना आर्थिक स्थिरता की उम्मीद करना मुश्किल है। भारत के साथ चल रही तनातनी यदि कम नहीं हुई, तो विदेशी निवेशक भी पाकिस्तान से दूरी बना सकते हैं। यह स्थिति देश के आर्थिक भविष्य को और अधिक अनिश्चित बना सकती है।
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ज्यादा प्रभावित पाकिस्तान की आम जनता होगी। बिजली, गैस, पेट्रोल, खाने-पीने की चीजें पहले से ही महंगी हैं, और अब IMF की इन शर्तों ने नई महंगाई की लहर का संकेत दे दिया है। सामाजिक कार्यकर्ता और विपक्षी दल इन शर्तों को जनविरोधी बताते हुए सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। लेकिन सरकार का कहना है कि देश को दिवालिया होने से बचाने के लिए यह कड़वे घूंट जरूरी हैं। अब यह देखना होगा कि पाकिस्तान की सरकार IMF की इन शर्तों को समय रहते कैसे लागू करती है, और क्या आम जनता का आक्रोश झेलते हुए आर्थिक स्थिरता की राह पर आगे बढ़ पाती है या नहीं। अगर पाकिस्तान इन शर्तों को लागू करने में नाकाम रहता है, तो उसके लिए अगली कर्ज किश्त मिलना मुश्किल हो जाएगा, और देश आर्थिक दलदल में और गहराई तक फंस जाएगा।
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