सीबीएसई परिणामों में दक्षिण के राज्य अव्वल.

टेन न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली (16 मई 2025): हाल ही में घोषित सीबीएसई बोर्ड परीक्षा परिणामों में दक्षिण भारत के छात्रों का प्रदर्शन एक बार फिर उत्तर भारत की तुलना में कहीं बेहतर रहा। इस रुझान ने शिक्षा विशेषज्ञों और समाजशास्त्रियों को चिंतन के लिए प्रेरित किया है। जाने माने शिक्षाविद एवं आईआईएलएम Lodhi Road महानिदेशक‌
डॉक्टर हरिवंश चतुर्वेदी ने दक्षिण भारत के छात्र सीबीआई बोर्ड परीक्षाओं में उत्तर भारत के छात्रों से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

हरिवंश चतुर्वेदी ने कहा कि शैक्षिक विश्लेषण के अनुसार, विजयवाड़ा, तिरुवनंतपुरम, चेन्नई, बेंगलुरु और दिल्ली को देश के टॉप प्रदर्शन करने वाले क्षेत्र घोषित किया गया है। इनमें से चार शहर दक्षिण भारत से हैं, जो यह दर्शाता है कि वहां की स्कूली शिक्षा उत्तर भारत से काफी आगे निकल चुका है।

अभिभावकों की भूमिका अहम

हरिवंश चतुर्वेदी ने कहा कि शिक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि दक्षिण भारत में अभिभावक बच्चों की शिक्षा के प्रति अधिक सजग और सक्रिय हैं। वहां स्कूलों की गुणवत्ता को लेकर समाज में जागरूकता है और यदि कोई कमी दिखाई देती है, तो अभिभावक सीधे आवाज़ उठाते हैं। इसके उलट उत्तर भारत के कई राज्यों में यह सजगता अपेक्षाकृत कम दिखती है, जिसका असर परीक्षा परिणामों में झलकता है।

मानव विकास सूचकांक में अंतर

हरिवंश चतुर्वेदी ने कहा कि दक्षिण भारत के राज्य केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना मानव विकास के विभिन्न मानकों—जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक संरचना—में उत्तर भारत से कहीं आगे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि अच्छी शिक्षा व्यवस्था के लिए इन बुनियादी पहलुओं का मजबूत होना बेहद जरूरी है।

सामाजिक सुधार आंदोलनों का प्रभाव

हरिवंश चतुर्वेदी ने कहा कि दक्षिण भारत में शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का एक मजबूत माध्यम माना गया है। 20वीं सदी की शुरुआत में ही वहाँ जातिवाद और असमानता के खिलाफ सशक्त समाज सुधार आंदोलनों ने जन्म लिया, जिससे शिक्षा के प्रति जागरूकता तेजी से बढ़ी। वहीं उत्तर भारत में यह बदलाव अपेक्षाकृत देर से आया और जातिगत एवं सामाजिक बाधाएँ लंबे समय तक शिक्षा में रुकावट बनती रहीं।

धार्मिक संस्थाओं का योगदान

हरिवंश चतुर्वेदी ने कहा कि दक्षिण भारत में कई धार्मिक ट्रस्ट और मठ—जैसे उडुपी कृष्ण मंदिर ट्रस्ट—शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय हैं और बड़ी संख्या में स्कूल और कॉलेज चला रहे हैं। कर्नाटक में लगभग 60–70% शिक्षा संस्थानों का संचालन किसी न किसी धार्मिक मठ या ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। इस सामाजिक समर्थन ने शिक्षा की गुणवत्ता को मजबूत आधार दिया है।

राज्य सरकारों की सक्रिय भूमिका

हरिवंश चतुर्वेदी ने कहा कि दक्षिणी राज्यों की सरकारों ने शिक्षा नीति में नवाचार और बुनियादी ढांचे के सुधार पर विशेष ध्यान दिया है। सरकारी और निजी दोनों स्तरों पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा मिला है। इसके विपरीत, उत्तर भारत के कई राज्यों में राजनीतिक अस्थिरता और प्रशासनिक अनदेखी ने शिक्षा क्षेत्र की प्रगति को धीमा किया है।

बदलाव की जरूरत

सीबीएसई के हालिया परिणाम स्पष्ट संकेत हैं कि उत्तर भारत को शिक्षा के क्षेत्र में सतत सुधार की जरूरत है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक शिक्षा को केवल परीक्षा पास करने का जरिया समझा जाएगा और उसमें समाज की साझेदारी नहीं होगी, तब तक क्षेत्रीय असमानता बनी रहेगी। शिक्षा में जुनून, नीति और भागीदारी तीनों की जरूरत है—तभी भारत का हर हिस्सा बराबरी से आगे बढ़ सकेगा।


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