दिल्ली हाईकोर्ट की सख्ती: उपभोक्ता अदालतों की बदहाल स्थिति पर दिल्ली सरकार को फटकार, 21 दिन में मांगा जवाब
टेन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली (15 मई 2025): राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में उपभोक्ता अदालतों की बदहाल स्थिति को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए तीन सप्ताह के भीतर विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अदालतों में बुनियादी सुविधाओं की कमी गंभीर चिंता का विषय है और इसे अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
दरअसल, अधिवक्ता एस.बी. त्रिपाठी द्वारा दाखिल याचिका में बताया गया कि दिल्ली की दस जिला उपभोक्ता अदालतों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा पूरी तरह बंद है, जिससे महामारी के बाद से वकीलों और आम जनता को भारी परेशानी हो रही है। याचिकाकर्ता ने कहा कि अदालतों तक पहुंचना कई लोगों के लिए मुश्किल है, खासकर उन लोगों के लिए जो बीमार, बुजुर्ग या सीमित संसाधनों वाले हैं। एक आरटीआई के जवाब में भी यह सामने आया कि तीन उपभोक्ता आयोगों में वीडियो सुनवाई के लिए कोई तकनीकी व्यवस्था नहीं है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि इन अदालतों में पीने के लिए शुद्ध पानी और स्वच्छ शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं। न्यायालय के पहले के आदेशों के बावजूद इन सुविधाओं की अनदेखी की गई है, जिससे अधिवक्ताओं और वादकारियों को अपमानजनक स्थिति का सामना करना पड़ता है। याचिकाकर्ता ने इसे न्याय के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करार देते हुए सुधार की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से सवाल किया कि आखिर क्यों अदालतों की बुनियादी संरचना और तकनीकी व्यवस्था पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया? कोर्ट ने निर्देश दिए कि सरकार तीन सप्ताह में उपभोक्ता अदालतों की वर्तमान स्थिति, सुविधाओं की उपलब्धता, और सुधारात्मक कदमों पर विस्तृत रिपोर्ट पेश करे। याचिकाकर्ता को भी दो सप्ताह में अपना जवाब दाखिल करने की मोहलत दी गई है। अगली सुनवाई 17 सितंबर को होगी।
याचिकाकर्ता की एक अन्य प्रमुख मांग यह भी है कि सभी जिला उपभोक्ता आयोगों में न्यायिक अधिकारियों की तत्काल नियुक्ति की जाए। याचिका में कहा गया कि अधिकारी नहीं होने के कारण हजारों मामले वर्षों से लंबित पड़े हैं और लोगों को समय पर न्याय नहीं मिल पा रहा। यह स्थिति न केवल न्यायिक प्रक्रिया की मर्यादा के खिलाफ है, बल्कि उपभोक्ताओं के अधिकारों का भी खुला उल्लंघन है।
हाईकोर्ट के इस सख्त रुख से यह साफ हो गया है कि अब दिल्ली सरकार को उपभोक्ता अदालतों की दुर्दशा को लेकर जवाबदेह बनना होगा। अदालत ने साफ किया है कि न्याय प्रणाली के एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ के साथ ऐसी उपेक्षा बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यह मामला अब केवल बुनियादी सुविधाओं का नहीं, बल्कि न्यायिक गरिमा और आम जनता के अधिकारों का बन गया है।
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