भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद तुर्की और अजरबैजान के खिलाफ भारतीय व्यापारियों ने किया विरोध
टेन न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली (15 मई 2025): भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक नया मोड़ आया है, जिसमें तुर्की और अजरबैजान की भूमिका अब कठघरे में खड़ी हो गई है। इन दोनों देशों द्वारा पाकिस्तान का खुला समर्थन करना भारतीयों को रास नहीं आया, और इसके जवाब में भारत के व्यापारिक संगठनों ने अब कड़ा कदम उठाने का ऐलान कर दिया है। इस कड़ी में न केवल व्यापारिक रिश्ते तोड़े जा रहे हैं, बल्कि टूरिज्म और सांस्कृतिक स्तर पर भी इन देशों का बहिष्कार शुरू हो गया है।
भारतीय व्यापारियों ने एक स्वर में तुर्की और अजरबैजान के साथ व्यापार करने से इनकार कर दिया है। इसका सीधा असर इन देशों की अर्थव्यवस्था, खासकर पर्यटन और आयात-निर्यात व्यापार पर पड़ने वाला है। कई व्यापारिक संगठनों ने सार्वजनिक रूप से अपील की है कि अब भारत का एक भी रुपया ऐसे देशों में नहीं जाना चाहिए जो हमारे दुश्मनों के साथ खड़े हैं। टूरिज्म के क्षेत्र में यह विरोध और भी तेज हो गया है। 2014 में भारत से अजरबैजान जाने वाले पर्यटकों की संख्या मात्र 4,853 थी, जो 2024 में बढ़कर 2.43 लाख हो गई – यानि 4919 प्रतिशत की वृद्धि। लेकिन अब इन ट्रिप्स को भारी संख्या में रद्द किया जा रहा है। लोग सोशल मीडिया पर ग्रीस और आर्मेनिया जैसे देशों को प्राथमिकता देने की अपील कर रहे हैं, जो तुर्की और अजरबैजान के विरोधी माने जाते हैं।
इस विरोध की अगुवाई कर रही है कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) और चेंबर ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री (सीटीआई)। दोनों संगठनों ने स्पष्ट किया है कि वे 16 मई को नई दिल्ली में एक राष्ट्रीय सम्मेलन में इन देशों के साथ व्यापारिक संबंध पूर्ण रूप से समाप्त करने का अंतिम निर्णय लेंगे। यह निर्णय भारत की राष्ट्रहित नीति का हिस्सा बताया जा रहा है। चांदनी चौक से सांसद और कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने बताया कि 2024 में तुर्की में 62.2 मिलियन विदेशी पर्यटक पहुंचे, जिनमें 3 लाख भारतीय शामिल थे। इन पर्यटकों ने लगभग 291.6 मिलियन डॉलर खर्च किए। ऐसे में भारतीय पर्यटकों के बहिष्कार से तुर्की को बड़ा आर्थिक झटका लगेगा।
अजरबैजान के मामले में भी यही स्थिति है। वर्ष 2024 में अजरबैजान में कुल 2.6 मिलियन विदेशी पर्यटक पहुंचे, जिनमें 2.5 लाख भारतीय थे। उन्होंने करीब 308.6 मिलियन डॉलर खर्च किए। यदि भारतीय इस देश की यात्रा बंद कर देते हैं, तो यह पर्यटन, मनोरंजन, और विवाह आयोजनों जैसे क्षेत्रों को गहरे संकट में डाल सकता है। मार्बल इंडस्ट्री की बात करें तो भारत में हर साल करीब 5,000 करोड़ रुपए का मार्बल तुर्की से आयात किया जाता है। राजस्थान, दिल्ली और मुंबई जैसे राज्यों में इस उद्योग से हजारों व्यापारी जुड़े हैं। अब इन व्यापारियों ने तुर्की से मार्बल खरीदने से इनकार कर दिया है और मंडियों में “नॉट फॉर तुर्किश मार्बल” जैसे बोर्ड लगाए जा रहे हैं।
इसके अतिरिक्त तुर्किश एयरलाइंस की बुकिंग्स भी तेजी से रद्द हो रही हैं। दिल्ली, मुंबई और अन्य महानगरों से तुर्की की उड़ानों में यात्रियों की संख्या में तेज गिरावट दर्ज की गई है। इसका सीधा प्रभाव तुर्की के एविएशन और हॉस्पिटैलिटी सेक्टर पर पड़ने वाला है, जो भारतीय पर्यटकों पर निर्भर रहता है। सीटीआई के चेयरमैन बृजेश गोयल ने भी चीन के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाते हुए कहा है कि चीन और तुर्की भारत के बाज़ार और पर्यटक से अरबों डॉलर कमा रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान के साथ खड़े हैं। ऐसे में भारत को चाहिए कि वह इन देशों से आयात-निर्यात पूरी तरह बंद कर दे।
सीटीआई ने दिल्ली के 700 व्यापारिक संगठनों से संपर्क कर इस अभियान को और अधिक व्यापक बनाने की योजना बनाई है। कश्मीरी गेट जैसे बाजारों में अभियान शुरू हो चुका है और 100 से अधिक बाजारों में इसे फैलाने की तैयारी चल रही है। खिलौनों से लेकर फार्मा, केमिकल्स और ऑटो पार्ट्स तक भारत चीन से बड़ी मात्रा में सामान मंगवाता है। गोयल का कहना है कि भारत को अब इन वस्तुओं के लिए वैकल्पिक स्रोत खोजने चाहिए और देश में ही उत्पादन को बढ़ावा देना चाहिए। इससे न केवल आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार होगा, बल्कि राष्ट्रविरोधी देशों पर आर्थिक दबाव भी बनेगा।
तुर्की से भारत इनऑर्गेनिक केमिकल्स, मिनरल फ्यूल और कॉटन आयात करता है, जबकि भारत से वहां इंजीनियरिंग उत्पाद, दवाइयाँ और पेट्रोलियम निर्यात होते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि इन वस्तुओं के वैकल्पिक स्रोत मिलने के बाद भारत इन देशों को सबक सिखा सकता है। कैट और सीटीआई की यह मुहिम सिर्फ आर्थिक नुकसान पहुँचाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य एक मजबूत राजनीतिक संदेश देना भी है। यह भारत की सुरक्षा नीति और विदेश नीति को मजबूती देने वाला कदम है, जिसे देश की जनता और व्यापारी वर्ग मिलकर आगे बढ़ा रहे हैं।
भारत-पाक युद्ध के दौरान तुर्की और अजरबैजान ने पाकिस्तान को हथियार और ड्रोन की आपूर्ति की थी, जिसे भारत ने गंभीरता से लिया है। अब भारत अपने पैसे का इस्तेमाल उन देशों को मजबूत करने में नहीं करना चाहता जो उसका विरोध करते हैं। अब यह देखना अहम होगा कि देशभर के व्यापारी और आम नागरिक इस मुहिम को कितना समर्थन देते हैं। लेकिन एक बात स्पष्ट है भारत अब केवल कूटनीति पर नहीं, आर्थिक ताकत के माध्यम से जवाब देना चाहता है।
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