दिल्ली में दसवीं के छात्र की आत्महत्या: 83% अंक आने के बाद भी उदासी ने ले ली जान, परिवार सदमे में

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (15 मई 2025): नई दिल्ली के बुराड़ी इलाके में एक दर्दनाक घटना सामने आई है, जहां सीबीएसई की दसवीं कक्षा के नतीजों के बाद 83 प्रतिशत अंक लाने वाले एक होनहार छात्र अक्षत ने आत्महत्या कर ली। परिवार और आसपास के लोग सदमे में हैं कि इतना प्रतिभाशाली और अनुशासित बच्चा कैसे खुद को खत्म करने के लिए मजबूर हो गया। यह घटना एक बार फिर से हमारे समाज में मानसिक स्वास्थ्य और परीक्षा के दबाव को लेकर गंभीर सवाल खड़े करती है।

घटना बुधवार शाम की है जब अक्षत, जो मेडिकल की तैयारी कर रहा था, ने अपनी मां से कोचिंग जाने की बात कही और घर की छत पर बने स्टोर रूम में जाकर फांसी लगा ली। शाम तक जब वह घर नहीं लौटा, तो उसकी मां ने पहले कोचिंग टीचर और फिर वैन ड्राइवर से संपर्क किया। जब पता चला कि अक्षत वहां पहुंचा ही नहीं, तो आशंका गहराई। छत की कुंडी अंदर से बंद पाई गई, जिसके बाद पड़ोसी की मदद से मां जब छत पर पहुंचीं, तो स्टोर रूम में बेटे को फंदे पर लटका पाया। आनन-फानन में उसे अस्पताल ले जाया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

अक्षत अपने माता-पिता की इकलौता संतान था। उसके पिता भुवनेश कुमार पालीवाल डॉक्टर लाल पैथ लैब में जनरल मैनेजर हैं और मां दिल्ली नगर निगम के स्कूल में शिक्षिका हैं। परिवार का कहना है कि उन्होंने कभी भी अक्षत पर पढ़ाई का कोई दबाव नहीं डाला था। वह मॉडल टाउन के एक प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ता था और बुराड़ी स्थित आकाश इंस्टीट्यूट में मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था। उसके 83 प्रतिशत अंक आए थे, लेकिन इसके बावजूद वह काफी उदास था। पुलिस को कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है, और फिलहाल उसका मोबाइल फोन जब्त कर जांच की जा रही है।

बच्चे की आत्महत्या के बाद पूरा इलाका स्तब्ध है। जो छात्र हर दिन कोचिंग और पढ़ाई में व्यस्त रहता था, जिसने दसवीं में अच्छे अंक भी हासिल किए, वह खुद को खत्म करने की ओर कैसे बढ़ा यह सभी के लिए बड़ा सवाल बन गया है। पुलिस का कहना है कि मामला बेहद संवेदनशील है और वे हर पहलू से जांच कर रहे हैं। यह घटना हमें यह सोचने को मजबूर करती है कि अंक ही सफलता का पैमाना नहीं हो सकते। बच्चों की मानसिक स्थिति को समझना, उनके साथ संवाद बनाए रखना और उनके भीतर की असुरक्षाओं को समय रहते पहचानना बेहद जरूरी है। अक्षत चला गया, लेकिन उसका जाना कई अनुत्तरित सवाल छोड़ गया है। क्या हम अपने बच्चों की भावनात्मक ज़रूरतों को नजरअंदाज कर रहे हैं? क्या 83 प्रतिशत अंक आज के समय में भी पर्याप्त नहीं माने जाते? और अगर हाँ, तो यह सोच हमें कहाँ ले जाएगी?


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