दिल्ली हाईकोर्ट ने तिहाड़ जेल में भीड़भाड़ को लेकर दायर याचिका किया खारिज

टेन न्यूज़ नेटवर्क

नई दिल्ली (14 मई 2025): देश की सबसे बड़ी जेल तिहाड़ जेल में क्षमता से अधिक कैदियों की भीड़ को लेकर दायर जनहित याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए खारिज कर दिया। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि याचिकाकर्ता ने गलत प्राधिकरण से संपर्क किया है और ऐसे मामलों में पहले सही माध्यमों से गुहार लगाई जानी चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने कहा कि “तिहाड़ भले ही सेंट्रल जेल कहलाती है, लेकिन इसका संचालन केंद्र सरकार नहीं बल्कि दिल्ली सरकार के अधीन होता है।” अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने गृह मंत्रालय (भारत सरकार) को ज्ञापन दिया, जो इस मामले में उपयुक्त अथॉरिटी नहीं है।

याचिका दायर करने वाले आनंद मिश्रा ने जेल में भीड़भाड़ और सुरक्षा व्यवस्था को लेकर चिंता जताई थी। उन्होंने मांग की थी कि बिना जांच के किसी भी व्यक्ति को जेल में प्रवेश न करने दिया जाए। हालांकि अदालत ने कहा कि इस विषय पर पहले ही सुप्रीम कोर्ट विचार कर रहा है, ऐसे में दिल्ली हाईकोर्ट में समानांतर याचिका दायर करना उचित नहीं है। कोर्ट ने कहा कि यदि किसी को इस मुद्दे पर शिकायत है तो उसे पहले दिल्ली सरकार के गृह विभाग के प्रमुख सचिव और जेल महानिदेशक से संपर्क करना चाहिए। अगर वहां से समाधान नहीं होता, तभी हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए।

सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा, “आपने गलत दरवाजा खटखटाया है। पहले जिनके पास जाना चाहिए था, वहां नहीं गए और सीधे हाईकोर्ट चले आए। यह प्रक्रिया का उल्लंघन है।” कोर्ट की इस सख्त टिप्पणी के बाद याचिकाकर्ता ने याचिका को वापस लेने की अनुमति मांगी।अदालत ने अनुमति देते हुए याचिका को औपचारिक रूप से खारिज कर दिया। यह फैसला आने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि प्रशासनिक मामलों में पहले ज़िम्मेदार प्राधिकरण से संवाद जरूरी होता है।

तिहाड़ जेल में वर्तमान में हजारों की संख्या में कैदी हैं, जबकि उसकी क्षमता सीमित है। इससे जेल प्रशासन को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हालांकि, कोर्ट का रुख साफ है कि इन मामलों का समाधान पहले सरकार से संवाद और फिर न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से होना चाहिए। यह मामला एक बार फिर न्यायिक अनुशासन और प्रक्रिया के पालन की जरूरत को उजागर करता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि भावनात्मक मुद्दों को उठाना जरूरी है, लेकिन विधिक रास्तों का पालन उससे भी अधिक जरूरी है।


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