नई दिल्ली (08 मई 2025): दिल्ली हाई कोर्ट में संसद सुरक्षा में हुई बड़ी चूक से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने आरोपियों को जमकर फटकार लगाई। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि संसद कोई प्रदर्शन की जगह नहीं है, यह वह स्थान है जहां देश के कानून बनते हैं। आरोपी खुद को भगत सिंह जैसे शहीदों से तुलना कर रहे हैं, जिस पर कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा “यह कोई मजाक नहीं है। आप इस पवित्र स्थान को बाधित नहीं कर सकते।”न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने दिल्ली पुलिस से यह स्पष्ट करने को कहा कि आखिरकार आरोपियों के खिलाफ UAPA जैसे कठोर कानून के तहत मामला क्यों दर्ज किया गया है। कोर्ट ने कहा कि विरोध प्रदर्शन की यह कोई वैध या संवैधानिक विधि नहीं थी, और यह देखना जरूरी है कि क्या उनका कृत्य सच में UAPA के तहत आतंकवादी गतिविधियों की श्रेणी में आता है या नहीं।
कोर्ट इस मामले में गिरफ्तार नीलम आजाद और महेश कुमावत की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। कोर्ट ने कहा कि यदि यह कृत्य UAPA के अंतर्गत नहीं आता, तो उनकी स्वतंत्रता पर अनावश्यक रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। हालांकि, मुकदमा पुलिस जारी रख सकती है, लेकिन जमानत के स्तर पर उन्हें राहत दी जा सकती है। दिल्ली पुलिस की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने कोर्ट को बताया कि यह कृत्य पूर्व नियोजित था और 13 दिसंबर को जानबूझकर अंजाम दिया गया, जो संसद पर 2001 के आतंकी हमले की बरसी थी। उन्होंने कहा कि इस दिन को चुनना भी खुद में एक गंभीर संकेत है, और जांच एजेंसियां इसे हल्के में नहीं ले सकतीं।
घटना के अनुसार, आरोपी सागर शर्मा और मनोरंजन डी संसद भवन के शून्यकाल के दौरान दर्शक दीर्घा से लोकसभा में कूद गए और पीली गैस वाला कैन फोड़ दिया। वे नारे लगाते रहे, जबकि कुछ सांसदों ने मिलकर उन्हें रोका। उसी समय दो अन्य आरोपी – अमोल शिंदे और नीलम आजाद – संसद परिसर के बाहर रंगीन धुआं छोड़ते हुए “तानाशाही नहीं चलेगी” जैसे नारे लगाते रहे। हाई कोर्ट ने कहा कि यह हरगिज़ कोई लोकतांत्रिक विरोध नहीं था और ऐसे कृत्यों से संसद की गरिमा और सुरक्षा दोनों खतरे में पड़ती हैं। हालांकि, पीठ ने यह भी दोहराया कि केवल गंभीरता के आधार पर UAPA लगाना उचित नहीं है जब तक कि कानून की स्पष्ट व्याख्या उसके अंतर्गत आने वाले अपराध को प्रमाणित न करे।
कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रदर्शन की आज़ादी का मतलब यह नहीं कि आप किसी भी संवैधानिक संस्था को बाधित करें और फिर खुद को स्वतंत्रता सेनानियों के समकक्ष बताएं। अदालत ने चेताया कि यदि यह प्रवृत्ति बढ़ती रही तो यह लोकतंत्र के लिए खतरा बन सकती है। इस मामले की अगली सुनवाई में दिल्ली पुलिस को यह साबित करना होगा कि UAPA लगाने के पीछे उनके पास पर्याप्त कानूनी और तार्किक आधार है या नहीं। फिलहाल, अदालत इस पर विचार कर रही है कि आरोपियों को जमानत दी जा सकती है या नहीं।
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