एनडीएमसी ने पार्किंग जानकारी देने से किया इंकार, देश की अखंडता पर खतरे का हवाला

टेन न्यूज़ नेटवर्क

नई दिल्ली (27 अप्रैल 2025): सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई जानकारी को देने से इनकार कर नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (NDMC) सवालों के घेरे में आ गई है। एक आरटीआई आवेदन में पार्किंग से जुड़ी जानकारी मांगी गई थी, जिस पर एनडीएमसी ने देश की अखंडता के लिए खतरा बताते हुए जानकारी देने से मना कर दिया। मांगी गई जानकारी में 2023-24 और 2024-25 के बीच पार्किंग राजस्व, ठेकेदारों और एजेंसियों को दिए गए भुगतान का ब्योरा शामिल था। इसके अलावा, पार्किंग शुल्क की वसूली से जुड़े प्रबंधों के बारे में भी पूछा गया था।

सूचना विभाग के सहायक सूचना अधिकारी (APIO) विजय मीणा ने आरटीआई आवेदन का जवाब देते हुए कहा कि मांगी गई जानकारी आरटीआई एक्ट की धारा 8(1) के तहत छूट प्राप्त है। धारा 8(1) के अनुसार, यदि किसी जानकारी से देश की संप्रभुता, अखंडता, सुरक्षा या आर्थिक हितों को खतरा हो सकता है, तो उसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। अधिकारियों ने तर्क दिया कि पार्किंग से जुड़ी जानकारी वेबसाइट पर पहले से अपलोड नहीं की जा सकती। इस आधार पर आरटीआई आवेदन को खारिज कर दिया गया।

विशेषज्ञों ने इस कदम को सूचना छिपाने का प्रयास बताया है। आरटीआई कार्यकर्ता जीशान हैदर का कहना है कि इस प्रकार की जानकारियां छिपाना आरटीआई अधिनियम की मूल भावना के खिलाफ है। उनका कहना है कि अगर पहली अपील में भी जानकारी न दी गई, तो केंद्रीय सूचना आयोग से शिकायत की जाएगी। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की सामान्य जानकारी से न तो देश की सुरक्षा को खतरा है और न ही अखंडता को। यह केवल जवाबदेही से बचने का प्रयास है।

आरटीआई कार्यकर्ताओं ने यह भी आशंका जताई कि एनडीएमसी द्वारा इस तरह का रुख अपनाने से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है। पार्किंग शुल्क वसूली और ठेकेदारों से हुए लेन-देन की पारदर्शिता सार्वजनिक न करना, जवाबदेही को कमजोर कर सकता है। कई विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी सूचनाओं के सार्वजनिक होने से प्रशासनिक कार्यशैली में सुधार आता है। यदि सूचनाएं छिपाई जाती हैं तो यह नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।

पार्किंग से जुड़े राजस्व और खर्चे की जानकारी आमतौर पर सार्वजनिक डोमेन में दी जाती रही है। दिल्ली जैसे बड़े शहर में पार्किंग एक बड़ा व्यावसायिक क्षेत्र है, जहां लाखों रुपए का लेन-देन होता है। ऐसे में आम जनता को यह जानने का हक है कि उनके द्वारा चुकाए गए शुल्क का सही तरीके से उपयोग हो रहा है या नहीं। इस प्रकार की जानकारी को देश की अखंडता से जोड़ना, जानकारों के अनुसार, एक गलत उदाहरण पेश कर सकता है।

फिलहाल एनडीएमसी के इस जवाब ने आरटीआई कार्यकर्ताओं और पारदर्शिता समर्थकों के बीच नाराजगी पैदा कर दी है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही इस मामले में अपील दायर की जाएगी और केंद्रीय सूचना आयोग से न्याय की मांग की जाएगी। अगर आयोग ने भी इस रुख को गलत माना, तो एनडीएमसी को जानकारी सार्वजनिक करनी पड़ सकती है। यह मामला भविष्य में आरटीआई कानून की व्याख्या और नागरिकों के अधिकारों पर गहरा असर डाल सकता है।


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