नई दिल्ली (21 अप्रैल 2025): दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने 30 करोड़ रुपये के बीमा घोटाले का पर्दाफाश करते हुए एक बड़े गिरोह का भंडाफोड़ किया है। इस मामले में मुख्य आरोपी दिनेश बंसल समेत तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि एक अन्य आरोपी पहले से ही जेल में है। यह घोटाला टाटा एआईजी जनरल इंश्योरेंस कंपनी को निशाना बनाकर किया गया, जिसमें फर्जी कार दुर्घटनाएं दिखाकर बीमा दावे किए जाते थे। पुलिस का दावा है कि यह एक सुनियोजित साजिश थी, जिसमें बीमा कंपनी के पूर्व कर्मचारी भी शामिल थे। कंपनी ने भी इस घोटाले को लेकर आंतरिक जांच शुरू कर दी है।
यह पूरा मामला 13 जून 2022 को तब सामने आया, जब टाटा एआईजी की फ्रॉड कंट्रोल यूनिट के प्रमुख विरेंद्र पाल सिंह ने दिल्ली पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। शिकायत में कहा गया कि दिल्ली-एनसीआर के छह गैराज, कंपनी के चार पूर्व कर्मचारी, बीमा सर्वेयर और कुछ पॉलिसी धारकों ने मिलकर नकली मरम्मत बिल बनाकर करोड़ों का घोटाला किया। जांच में खुलासा हुआ कि एक ही कार पर कई बार अलग-अलग बीमा पॉलिसियों और मालिकों के नाम से दावे किए गए। कुछ मामलों में एक ही चेसिस नंबर की गाड़ियों के अलग-अलग रजिस्ट्रेशन नंबर इस्तेमाल किए गए। इस प्रकार बीमा कंपनी को बार-बार चूना लगाया गया।
जांच में पता चला कि इस घोटाले का मास्टरमाइंड दिनेश बंसल है, जो पहले सेकेंड हैंड कारों का कारोबारी था। साल 2019 में उसने ‘बंसल मोटर्स’ नाम से वर्कशॉप खोली, लेकिन घाटे में जाने के बाद उसने धोखाधड़ी की योजना बनाई। उसने महंगी सेकेंड हैंड कारें लीज पर देकर ग्राहकों को बीमा और मुफ्त मरम्मत का लालच दिया। इन कारों का बीमा टाटा एआईजी से करवाया गया और फिर हर साल 2 से 3 बार नकली एक्सीडेंट दिखाकर बीमा दावे किए गए। इन दावों में एयरबैग डैमेज जैसे बड़े नुकसान दिखाकर लाखों रुपये हड़पे गए।
इस गिरोह का काम करने का तरीका भी बेहद चौंकाने वाला था। एक ही गाड़ी की तस्वीरें अलग-अलग एंगल से लेकर हर बार नए एक्सीडेंट के रूप में पेश की जाती थीं। जब जांचकर्ताओं ने संबंधित ड्राइवरों से पूछताछ की, तो उन्होंने ऐसे किसी भी हादसे से इनकार कर दिया। टाटा एआईजी के अंदरूनी सूत्र प्रदीप राणा और दीपक शर्मा इन फर्जी दावों को मंजूरी देते थे और बदले में मोटा कमीशन लेते थे। इस पूरे ऑपरेशन को छिपाने और पैसे को सफेद दिखाने के लिए आठ शेल कंपनियों का इस्तेमाल किया गया। इन कंपनियों के ज़रिए मनी लांड्रिंग भी की जाती थी।
मुख्य आरोपी दिनेश बंसल केवल 10वीं पास है और उसने 25 साल पहले मुकुंदपुर एक्सटेंशन में सेकेंड हैंड कार का छोटा कारोबार शुरू किया था। बीमा फर्जीवाड़े से कमाए गए पैसे से उसने अपनी पत्नी और दोस्त के नाम पर तीन और वर्कशॉप्स खोल लीं। वहीं प्रदीप राणा और दीपक शर्मा, जो कंपनी के पूर्व अधिकारी थे, अपनी तकनीकी जानकारी के दम पर इस घोटाले में शामिल हुए। उन्होंने कंपनी की प्रक्रियाओं का दुरुपयोग कर फर्जी क्लेम को पास कराया। इस काम के लिए उन्होंने दस्तावेजों की जांच को भी नजरअंदाज किया।
पुलिस अब इस घोटाले से जुड़ी शेल कंपनियों की गहराई से जांच कर रही है। इन कंपनियों के बैंक खातों की जानकारी जुटाई जा रही है और यह पता लगाया जा रहा है कि किन-किन लोगों को लाभ पहुंचाया गया। टैक्स रिकॉर्ड, जीएसटी रिटर्न और लेन-देन की जानकारी से कई और बड़े नाम सामने आने की उम्मीद है। साथ ही, बीमा पॉलिसियों की सूची तैयार की जा रही है, जिनमें बार-बार क्लेम किया गया। यह पूरा नेटवर्क एक संगठित ठगी का रूप ले चुका था, जिसे अब धीरे-धीरे खोलने की कोशिश की जा रही है।
टाटा एआईजी ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए आंतरिक जांच शुरू कर दी है। कंपनी ने उन सभी कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया है, जिन पर संदेह जताया जा रहा है। साथ ही पुराने क्लेम की फाइलें दोबारा खोली जा रही हैं ताकि और फर्जीवाड़े की पहचान की जा सके। कंपनी ने ग्राहकों से भी अपील की है कि अगर उन्हें कोई संदेहजनक गतिविधि नजर आए तो तुरंत सूचना दें। बीमा उद्योग में यह घटना एक चेतावनी बनकर सामने आई है, जिससे सभी कंपनियां अब अधिक सतर्कता बरत रही हैं।।
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