भाजपा सांसद निशिकांत दुबे को सर्वोच्च न्यायालय पर टिप्पणी करना पड़ सकता है महंगा!
टेन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली (22 अप्रैल 2025): भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के खिलाफ की गई विवादास्पद टिप्पणियों के बाद अब उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की मांग उठी है। इस मांग पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि याचिका दाखिल करने के लिए कोर्ट की अनुमति की जरूरत नहीं है। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति बी आर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने की, जब एक वकील ने कोर्ट से अनुमति लेने की बात कही।
याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट को बताया गया कि दुबे की टिप्पणियों से न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को ठेस पहुंची है बल्कि यह भारत के मुख्य न्यायाधीश की प्रतिष्ठा पर भी सीधा हमला है। इस पर अदालत ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता को अवमानना याचिका दायर करनी है तो वह स्वतंत्र रूप से ऐसा कर सकता है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इसके लिए न्यायालय की अनुमति नहीं, बल्कि अटॉर्नी जनरल की मंजूरी आवश्यक होगी, जैसा कि कानून निर्धारित है।
गौरतलब है कि निशिकांत दुबे ने शनिवार को एक सार्वजनिक बयान में सुप्रीम कोर्ट पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि यदि कोर्ट को कानून ही बनाना है, तो संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए। उन्होंने सीजेआई संजीव खन्ना पर भी सीधा हमला बोलते हुए उन्हें देश में “गृह युद्ध” के हालात पैदा करने के लिए जिम्मेदार ठहराया था। उनकी इस टिप्पणी के बाद राजनीतिक और कानूनी हलकों में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली।
यह पूरा विवाद तब सामने आया जब केंद्र सरकार ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम के कुछ प्रावधानों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान आश्वासन दिया कि वह उन्हें तत्काल प्रभाव से लागू नहीं करेगी। अदालत ने इन प्रावधानों को लेकर सवाल उठाए थे। इसके तुरंत बाद दुबे ने यह बयान जारी किया, जिसे अदालत की कार्यवाही पर सीधी टिप्पणी माना जा रहा है।
इस बयान के विरोध में सुप्रीम कोर्ट के वकील अनस तनवीर ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी को पत्र लिखकर दुबे के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुमति मांगी। तनवीर का कहना है कि दुबे की टिप्पणी अदालत की गरिमा को कम करने का प्रयास है, जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है। अगर अटॉर्नी जनरल अनुमति देते हैं तो अवमानना की याचिका औपचारिक रूप से दाखिल की जा सकती है।
इस बीच भारतीय जनता पार्टी ने भी इस मुद्दे पर सफाई दी है। पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने दुबे की टिप्पणी को उनका “निजी विचार” बताया और कहा कि यह पार्टी की आधिकारिक लाइन नहीं है। नड्डा ने सभी पार्टी नेताओं को निर्देश दिया है कि वे न्यायपालिका से संबंधित मामलों पर सार्वजनिक टिप्पणी करने से बचें। इससे पहले भी भाजपा कई बार ऐसी विवादित टिप्पणियों से खुद को अलग करती रही है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि अटॉर्नी जनरल दुबे के खिलाफ याचिका दाखिल करने की अनुमति देते हैं या नहीं। यदि अनुमति मिलती है, तो यह संसद सदस्य के खिलाफ एक गंभीर कानूनी कार्रवाई का रास्ता खोल सकता है। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी कि “अनुमति की आवश्यकता नहीं”। यह दर्शाती है कि अदालत इस मुद्दे को हल्के में नहीं ले रही।
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