WAQF Amendment Act 2025: क्या है न्यायिक समीक्षा का प्रावधान, सर्वोच्च न्यायालय कानून को कर सकता है निरस्त?

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (19 अप्रैल 2025): वक्फ संशोधन कानून 2025 (WAQF Amendment Act 2025) की संवैधानिक वैधता को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत में सुनवाई चल रही है। यह मामला न सिर्फ कानून की समीक्षा का विषय बन गया है, बल्कि एक बार फिर भारत में सरकार बनाम न्यायपालिका के संबंधों को लेकर बहस तेज हो गई है। विशेषज्ञों, राजनीतिक नेताओं और कानूनी विद्वानों के बीच विचारों की टकराहट देखने को मिल रही है। कुछ इसे न्यायिक समीक्षा के तहत एक आवश्यक और वैधानिक कदम मानते हैं, तो वहीं कई इसे सरकार के कार्यों में न्यायपालिका का हस्तक्षेप कहकर आलोचना कर रहे हैं।

इस पूरे विवाद की जड़ में जो शब्द सबसे ज़्यादा चर्चा में है, वह है “न्यायिक समीक्षा”। यह क्या है और क्यों इतनी महत्वपूर्ण है, आइए जानते हैं विस्तार से।

क्या है न्यायिक समीक्षा?

न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) भारतीय संविधान के तहत न्यायपालिका को प्राप्त वह शक्ति है जिसके माध्यम से वह संसद द्वारा पारित कानूनों, राज्य सरकारों की नीतियों और कार्यपालिका के आदेशों की संवैधानिकता की जांच कर सकती है। यह सिद्धांत इस विचार पर आधारित है कि कोई भी कानून तभी वैध होगा जब वह संविधान की भावना और प्रक्रिया के अनुसार बना हो। न्यायपालिका यह भी सुनिश्चित करती है कि कोई कानून नागरिकों के जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन न करे।

न्यायिक समीक्षा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारत में न्यायिक समीक्षा को संविधान की मूल संरचना (Basic Structure) का हिस्सा माना गया है, जिसकी पुष्टि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण (1975) के ऐतिहासिक मामले में की थी। इस निर्णय ने न्यायपालिका को न केवल कानूनों की समीक्षा का अधिकार दिया, बल्कि उन्हें एक निगरानीकर्ता और संविधान के संरक्षक की भूमिका में भी स्थापित किया।

न्यायिक समीक्षा का महत्व

•यह संविधान की सर्वोच्चता बनाए रखती है।

•विधायिका और कार्यपालिका के संभावित दुरुपयोग पर नियंत्रण रखती है।

•नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है।

•संघीय ढांचे में संतुलन बनाए रखने में सहायक है।

•अधिकारियों के अत्याचार और निरंकुशता पर रोक लगाती है।

•न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करती है।

न्यायिक समीक्षा से जुड़े संवैधानिक प्रावधान

भारतीय संविधान में कई ऐसे अनुच्छेद हैं जो न्यायिक समीक्षा की प्रक्रिया को समर्थन देते हैं:

•अनुच्छेद 13: मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले किसी भी कानून को अमान्य घोषित करता है।

•अनुच्छेद 32 और 226: सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु शक्तियां प्रदान करता है।

•अनुच्छेद 245 और 246(3): संसद और राज्य विधानसभाओं की विधायी सीमाओं को परिभाषित करता है।

•अनुच्छेद 251 और 254: संघ और राज्य कानूनों में टकराव की स्थिति में संघीय कानून को प्राथमिकता देता है।

•अनुच्छेद 131 -136: राज्यों और केंद्र के बीच विवादों में न्यायिक निर्णय का अधिकार देता है।

•अनुच्छेद 137: सुप्रीम कोर्ट को अपने निर्णय की समीक्षा का अधिकार देता है।

•अनुच्छेद 372(1): संविधान लागू होने से पहले बने कानूनों की वैधता की समीक्षा का प्रावधान करता है।

न्यायिक समीक्षा की व्यापक भूमिका

न्यायिक समीक्षा न केवल विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों की जांच करती है बल्कि प्रशासनिक एजेंसियों द्वारा की गई कार्रवाईयों की भी समीक्षा कर सकती है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि सरकार द्वारा कोई भी निर्णय या कानून संविधान के अनुरूप ही हो।

वक्फ संशोधन कानून 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई देश की संवैधानिक व्यवस्था, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और विधायिका के अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखने की एक परीक्षा है। न्यायिक समीक्षा इस लोकतंत्र की वह सुरक्षा दीवार है जो संविधान की मूल भावना और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए अनिवार्य है। अब देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या निर्णय सुनाता है और यह फैसला भारत के लोकतांत्रिक ताने-बाने को किस तरह प्रभावित करता है।।

रंजन अभिषेक (नई दिल्ली)


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