नई दिल्ली (11 अप्रैल 2025): देश में हाल ही में पारित वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 अब सुप्रीम कोर्ट की कसौटी पर है। इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 16 अप्रैल को सुनवाई होगी। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ इस सुनवाई की अगुवाई करेगी। याचिकाकर्ताओं में एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी सहित कई प्रमुख सामाजिक और राजनीतिक हस्तियां शामिल हैं।
गौरतलब है कि वक्फ अधिनियम, 2025 को लेकर संसद में जोरदार बहस हुई थी। विधेयक को पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में पारित किया गया, जहां इसे 288 में से 193 मतों से मंजूरी मिली थी जबकि 95 सदस्य इसके विरोध में थे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस विधेयक को 5 अप्रैल को अपनी मंजूरी दी थी, जिसके बाद यह कानून बन गया। अधिनियम में वक्फ संपत्तियों की निगरानी और प्रबंधन को लेकर कई बदलाव किए गए हैं, जिन्हें लेकर विभिन्न समुदायों और संगठनों में तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं।
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (भेदभाव का निषेध), और 26 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि नया कानून एक विशेष धार्मिक समुदाय को अनुचित लाभ पहुंचाता है और इससे भारत की धर्मनिरपेक्षता की भावना को ठेस पहुंचती है। इन याचिकाओं में आम आदमी पार्टी के नेता अमानतुल्ला खान, एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, असरार मदनी, सलीम सलमानी और कई अन्य संगठनों के नाम प्रमुखता से दर्ज हैं।
इस मामले की पिछली सुनवाई में अदालत ने सभी याचिकाओं को जोड़कर एक साथ सूचीबद्ध करने का आदेश दिया था, ताकि पूरे अधिनियम की संवैधानिकता पर समग्र बहस हो सके। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक अंतिम निर्णय नहीं आता, तब तक अधिनियम के कुछ प्रावधानों पर रोक नहीं लगाई जाएगी। हालांकि, कोर्ट ने इस पर अंतिम फैसला सुरक्षित रखा है।
सुनवाई की तिथि जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, राजनीतिक और सामाजिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला भारत की संवैधानिक व्यवस्था और अल्पसंख्यक अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। अब सभी की नजरें 16 अप्रैल की सुनवाई पर टिकी हैं, जहां यह तय होगा कि वक्फ अधिनियम, 2025 भारत के संविधान की कसौटी पर खरा उतरता है या नहीं।।
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