दिल्ली में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पर सियासी घमासान: मेयर महेश कुमार खींची ने सीएम को लिखा पत्र

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली, (10 अप्रैल 2025):
दिल्ली में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट यूजर चार्ज को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है। दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) द्वारा हाउस टैक्स के साथ जोड़े गए इस अतिरिक्त शुल्क के खिलाफ अब दिल्ली के मेयर महेश कुमार खींची ने खुलकर मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को एक पत्र लिखते हुए इस निर्णय को आम जनता पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ बताते हुए अविलंब निरस्त करने की मांग की है। मेयर ने इस फैसले को जनविरोधी और अवैध करार दिया है और इसे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अवहेलना बताया है।

मेयर खींची ने आरोप लगाया कि निगम आयुक्त अश्वनी कुमार ने दिल्ली सरकार की पुरानी अधिसूचना का हवाला देते हुए यह शुल्क लागू कर दिया, लेकिन न तो इसकी जानकारी जनता को दी गई और न ही सदन से इसकी पूर्व स्वीकृति ली गई। उन्होंने कहा कि इस तरह के निर्णयों को लागू करने से पहले सदन की मंजूरी लेना आवश्यक होता है, और इसे नजरअंदाज करना लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है। खींची ने अपने पत्र में स्पष्ट किया कि जब तक दिल्ली नगर निगम प्रत्येक घर तक डोर-टू-डोर कूड़ा संग्रहण की सुविधा पूरी तरह उपलब्ध नहीं कराता, तब तक किसी भी प्रकार का यूजर चार्ज वसूलना अन्यायपूर्ण और अनुचित है।

उन्होंने यह भी बताया कि वर्तमान में दिल्ली के 12 जोनों में कूड़ा उठाने का कार्य निजी कंपनियों को सौंपा गया है, लेकिन उनका प्रदर्शन बेहद असंतोषजनक है। राजधानी के कई हिस्सों में कूड़े के ढेर लगे हुए हैं और साफ-सफाई की स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है। विशेष रूप से पश्चिमी, मध्य और दक्षिणी दिल्ली में सफाई व्यवस्था पूरी तरह चरमराई हुई है, क्योंकि वहां कार्यरत कंपनियों के कॉन्ट्रैक्ट समाप्ति की कगार पर हैं और वे अपने दायित्वों के प्रति लापरवाह हो गई हैं। ऐसे में जनता से यूजर चार्ज लेना दोहरी मार जैसा होगा, खासकर उस समय में जब महंगाई और निजी स्कूलों की बढ़ती फीस ने आम आदमी की परेशानियों को पहले ही बढ़ा दिया है।

मेयर ने यह भी बताया कि दिल्ली में अभी भी लगभग 60 से 70 प्रतिशत कूड़ा निजी संग्रहकर्ताओं द्वारा घरों से उठाया जाता है, जिनका एमसीडी द्वारा नियुक्त ठेकेदारों से कोई समन्वय नहीं है। इस अव्यवस्थित व्यवस्था के बीच यूजर चार्ज वसूलना न केवल अव्यवहारिक है, बल्कि जनता के साथ अन्याय भी है। उन्होंने सुझाव दिया कि दिल्ली सरकार को अन्य राज्यों और शहरों में इस तरह के शुल्क लागू करने के अनुभवों से सीख लेनी चाहिए और कोई भी निर्णय लेने से पहले पूरी व्यवस्था को सुदृढ़ और समन्वित करना चाहिए।

उन्होंने पत्र में इस बात पर भी सवाल उठाया कि जब यह अधिसूचना पहले से ही जारी थी, तो इसे उनके कार्यकाल के अंतिम चरण में ही क्यों लागू किया गया। उन्होंने इस निर्णय को राजनीति से प्रेरित बताते हुए मुख्यमंत्री से अपील की कि दिल्ली की जनता की आर्थिक स्थिति को देखते हुए इस आदेश को तुरंत रद्द किया जाए।

अब निगाहें मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पर टिकी हैं कि वह इस विवादास्पद फैसले को लेकर क्या रुख अपनाती हैं। दिल्ली में बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और जनता पर पड़ते आर्थिक दबाव को देखते हुए आने वाले दिनों में यह मुद्दा और भी गरमाने की संभावना है।।


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