आपातकाल से लेकर बीजेपी के उदय तक की पूरी कहानी | टेन न्यूज नेटवर्क की विशेष रिपोर्ट
टेन न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली (06 अप्रैल 2025): भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की स्थापना 6 अप्रैल 1980 को हुई थी, लेकिन इसके जन्म की पृष्ठभूमि में भारत की राजनीति के कई अहम पड़ाव छिपे हैं। आज बीजेपी अपना 45वां स्थापना दिवस मना रही है, पर इसकी नींव का सिलसिला आपातकाल के दौर से शुरू होता है। 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया, जो 21 मार्च 1977 तक चला। इस दौरान कई विपक्षी नेता जेल में डाले गए और लोकतांत्रिक अधिकारों पर अंकुश लगा। आपातकाल के विरोध में देश भर में आक्रोश फैला और राजनीतिक गठजोड़ों की नई शुरुआत हुई।
आपातकाल की समाप्ति के बाद देश की सात बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों में से भारतीय जनसंघ, कांग्रेस (ओ), सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय लोक दल ने मिलकर एक नया राजनीतिक मोर्चा बनाया, जिसे ‘जनता पार्टी’ कहा गया। कांग्रेस के विरोध में यह पार्टी 1977 के लोकसभा चुनाव में उतरी और शानदार जीत हासिल कर केंद्र में सरकार बनाई। इस सरकार में मोरारजी देसाई और बाद में चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने, लेकिन आंतरिक मतभेदों के कारण यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी।
जनता पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि उसमें शामिल भारतीय जनसंघ के नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े हुए थे। समाजवादी खेमे के नेताओं को यह मंजूर नहीं था कि पार्टी के सदस्य संघ की गतिविधियों में हिस्सा लें। मधु लिमये जैसे दिग्गज नेताओं ने इस मुद्दे को उठाया और अटल बिहारी वाजपेयी तथा लालकृष्ण आडवाणी से इस पर आपत्ति जताई। जनसंघ के नेता आरएसएस से रिश्ता नहीं तोड़ना चाहते थे क्योंकि वे खुद संघ के सिद्धांतों से निकले हुए थे।
भारतीय जनसंघ की स्थापना अक्टूबर 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी और आरएसएस के प्रचारकों ने मिलकर की थी। यह इसलिए हुआ क्योंकि आरएसएस खुद राजनीति में प्रवेश नहीं करना चाहता था। संघ के भीतर यह मंथन चल रहा था कि राजनीति में सक्रिय भागीदारी हो या नहीं। एमएस गोलवलकर जैसे नेताओं ने राजनीतिक हस्तक्षेप से दूरी बनाए रखने की सलाह दी, लेकिन प्रचारक वर्ग में बालासाहेब देवरस, नानाजी देशमुख, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे लोग सक्रिय राजनीति में जाना चाहते थे। इसी विचार से जनसंघ का जन्म हुआ।
जनसंघ के आरएसएस से रिश्ते और जनता पार्टी के भीतर इन संबंधों को लेकर विरोध ने पार्टी में दरार डाल दी। 2 सितंबर 1979 को जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई, जिसमें इस मुद्दे पर गहन चर्चा हुई। आरएसएस प्रमुख देवरस से कहा गया कि जनसंघ के नेता संघ की गतिविधियों से दूरी बनाएं, लेकिन देवरस ने जवाब दिया कि ऐसा कोई फैसला केवल अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में ही लिया जा सकता है। यह समय था जब जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों में अंदरूनी टूट-फूट हो रही थी।
जनता पार्टी की हालत 1980 के लोकसभा चुनाव में और बिगड़ गई। इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस दोबारा सत्ता में लौटी और जनता पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। हार के बाद आरएसएस से संबंधों को लेकर एक बार फिर विवाद गहराया। 19 मार्च 1980 को जनता पार्टी के संसदीय बोर्ड ने फैसला किया कि पार्टी का कोई भी सदस्य संघ की गतिविधियों में हिस्सा नहीं लेगा। इससे जनसंघ से जुड़े नेताओं की असहमति और ज्यादा बढ़ गई।
जनता पार्टी में दो फाड़ की स्थिति बन गई और इसके चुनाव चिन्ह और नाम पर कब्जे की लड़ाई शुरू हो गई। अगस्त 1979 में चौधरी चरण सिंह के गुट ने चुनाव आयोग से आग्रह किया कि असली जनता पार्टी उन्हें घोषित किया जाए। चुनाव आयोग ने चरण सिंह के गुट को ‘जनता पार्टी (सेक्युलर)’ नाम और नया चुनाव चिन्ह दिया, जिसे बाद में ‘लोक दल’ का नाम दिया गया। वहीं दूसरी ओर, जनसंघ के नेताओं ने अपनी राजनीतिक पहचान को कायम रखने की तैयारी शुरू कर दी।
6 अप्रैल 1980 को दिल्ली में एक विशेष सम्मेलन में जनसंघ के खेमे ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के गठन की औपचारिक घोषणा की और अटल बिहारी वाजपेयी को इसका पहला राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। यह कार्यक्रम नई विचारधारा और राष्ट्रीय मूल्यों के आधार पर पार्टी की नींव रखने के लिए आयोजित किया गया था। वाजपेयी गुट ने दावा किया कि वे ही असली जनता पार्टी हैं और चुनाव आयोग में इसकी मान्यता मांगी।
चुनाव आयोग ने 24 अप्रैल 1980 को निर्णय दिया कि जनता पार्टी का नाम ‘भारतीय जनता पार्टी’ रखा जाएगा और उसे राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता दी गई। साथ ही बीजेपी को ‘कमल’ का चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया। इस निर्णय का विरोध चंद्रशेखर के गुट ने सुप्रीम कोर्ट में किया, लेकिन इससे बीजेपी की राजनीतिक यात्रा पर कोई खास असर नहीं पड़ा। पार्टी ने धीरे-धीरे अपनी जड़ें मजबूत कीं और राष्ट्रीय स्तर पर खुद को स्थापित किया।
इस तरह भारतीय जनता पार्टी का जन्म एक लंबे वैचारिक संघर्ष, संगठनात्मक फेरबदल और सिद्धांतों की स्पष्टता के बीच हुआ। जनसंघ की विचारधारा, संघ से रिश्ता, जनता पार्टी के अनुभव और राजनीतिक स्थिरता की जरूरत ने बीजेपी को आकार दिया। आज यह पार्टी केंद्र में सत्ता में है और 45 वर्षों के इस सफर में कई राज्यों में भी अपना परचम लहरा चुकी है। बीजेपी का यह इतिहास न केवल इसके निर्माण की कहानी है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के बदलावों का भी जीवंत दस्तावेज है।
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