महिला, संविधान और क़ानून: प्रतिनिधित्व, अधिकार और सुधार पर हुई विस्तृत चर्चा

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली, (20 मार्च 2025): भारतीय विधि एवं राजनीतिक परिदृश्य में महिलाओं की भूमिका को और अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में संसद भवन में एक महत्वपूर्ण संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संवैधानिक एवं संसदीय अध्ययन संस्थान (ICPS) द्वारा आयोजित इस एक दिवसीय संगोष्ठी का विषय “महिला, संविधान और क़ानून: प्रतिनिधित्व, अधिकार और सुधार” था। केंद्रीय राज्य मंत्री, महिला एवं बाल विकास, सावित्री ठाकुर ने इस अवसर पर महिलाओं के सशक्तिकरण और नीति-निर्माण में उनकी बढ़ती भागीदारी की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि लैंगिक न्याय केवल एक आकांक्षा नहीं, बल्कि एक संवैधानिक दायित्व है, जिसे प्रभावी रूप से लागू किया जाना चाहिए।

इस संगोष्ठी में नीति-निर्माताओं, शिक्षाविदों, वीर नारियों (युद्ध विधवाओं) और जमीनी स्तर की महिला नेताओं ने भाग लिया और भारत के संवैधानिक एवं विधिक ढांचे में महिलाओं की बदलती भूमिका पर गहन विचार-विमर्श किया। चर्चा को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए संगोष्ठी में तीन महत्वपूर्ण सत्र आयोजित किए गए, जिनमें महिला प्रतिनिधित्व, विधिक अधिकारों और शासन सुधारों पर विस्तृत चर्चा हुई।

पहला सत्र “संविधान सभा में महिलाओं का योगदान, मौलिक अधिकारों की वकालत और संवैधानिक प्रावधानों पर उनका प्रभाव” विषय पर केंद्रित था। इस सत्र की मुख्य वक्ता स्मृति ईरानी, पूर्व केंद्रीय मंत्री, महिला एवं बाल विकास और अल्पसंख्यक मामलों ने सरोजिनी नायडू, हंसा मेहता और कमलादेवी चट्टोपाध्याय जैसी नेताओं के योगदान को रेखांकित किया, जिन्होंने भारतीय संविधान में लैंगिक समानता सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि संविधान सभा में महिलाओं का योगदान केवल ऐतिहासिक नहीं, बल्कि आधुनिक समय में भी प्रासंगिक है, क्योंकि आज भी हमें महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उनकी भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता है।

दूसरा सत्र “नारी शक्ति वंदन अधिनियम (महिला आरक्षण अधिनियम, 2023) – अधिकार, प्रतिनिधित्व और उत्तरदायित्व” पर केंद्रित था। इस सत्र की मुख्य वक्ता मीनाक्षी लेखी, पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री, विदेश और संस्कृति मंत्रालय रहीं। उन्होंने महिला आरक्षण अधिनियम के विधायी सफर और इसके राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर पड़ने वाले प्रभावों पर गहन चर्चा की। उन्होंने कहा कि इस अधिनियम के लागू होने से महिलाओं के लिए संसदीय और विधानसभाओं में अवसर बढ़ेंगे, जिससे नीति-निर्माण में लैंगिक संतुलन स्थापित होगा।

तीसरा सत्र “जमीनी स्तर पर महिला नेतृत्व – चुनौतियाँ और संभावनाएँ” पर आधारित था, जिसमें पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं की भूमिका पर चर्चा की गई। इस सत्र में कमलजीत सहरावत (सांसद, लोकसभा), भक्ति शर्मा (सरपंच, बरखेड़ी अब्दुल्ला) और नीरू यादव (सरपंच, लंबी अहीर) ने अपने विचार साझा किए। वक्ताओं ने महिला नेताओं के सामने आने वाली संस्थागत बाधाओं, संसाधनों की कमी और सामाजिक चुनौतियों को उजागर किया। उन्होंने सुझाव दिया कि महिला नेतृत्व को सशक्त बनाने के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रमों, विधिक साक्षरता अभियानों और परामर्श नेटवर्क की आवश्यकता है, ताकि वे अधिक प्रभावी ढंग से प्रशासनिक जिम्मेदारियों का निर्वहन कर सकें।

संगोष्ठी में 180 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें वीर नारियां (युद्ध विधवाएं), ग्राम पंचायत और शहरी निकायों के प्रतिनिधि, विभिन्न विश्वविद्यालयों के संकाय सदस्य, शोधार्थी, छात्र और मंत्रालयों के अधिकारी शामिल थे। इस विविध भागीदारी ने शासन में लैंगिक न्याय को सुदृढ़ करने की सामूहिक प्रतिबद्धता को दर्शाया।

इस संगोष्ठी ने महिला प्रतिनिधित्व, विधिक अधिकारों और शासन सुधारों पर सार्थक चर्चा के लिए एक प्रभावी मंच प्रदान किया। वक्ताओं और प्रतिभागियों ने भारत के संवैधानिक ढांचे में लैंगिक न्याय को बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया और इस बात की पुष्टि की कि महिलाएं देश के विधिक और राजनीतिक भविष्य को आकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेंगी।


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