नई दिल्ली (01 दिसंबर 2024): प्रभा खेतान फाउंडेशन (पीकेएफ) ने अपनी प्रतिष्ठित पुस्तक विमोचन श्रृंखला “किताब” के तहत इंडिया हैबिटेट सेंटर में इतिहास प्रेमियों, साहित्यकारों और विद्वानों के बीच भव्य आयोजन किया। इस मौके पर प्रख्यात लेखक और इतिहासकार डॉ. विक्रम संपत की दसवीं पुस्तक “टीपू सुल्तान: द सागा ऑफ मैसूर इंटररेग्नम (1760-1799)” का विमोचन किया गया।
इस विशेष आयोजन के अवसर पर मुख्य अतिथि भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर उपस्थित रहे। विशिष्ट अतिथि के रूप में लेखक और राजनयिक पवन के. वर्मा तथा सत्र की अध्यक्षता इंडिया हैबिटेट सेंटर की अध्यक्ष राजदूत भास्वती मुखर्जी ने की।
कार्यक्रम का शुभारंभ प्रभा खेतान फाउंडेशन की राष्ट्रीय सलाहकार विन्नी कक्कड़ और पूनम बाफना के स्वागत भाषण से हुआ। इसके बाद विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने पुस्तक का विमोचन किया। इस अवसर पर डॉ. संपत, पवन के. वर्मा, राजदूत भास्वती मुखर्जी, लिपिका भूषण, और अन्य गणमान्य व्यक्तित्व उपस्थित रहे।
डॉ. जयशंकर ने ऐतिहासिक शोध के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, “ऐसे साहित्यिक कार्य इतिहास के अनछुए पहलुओं को उजागर करते हैं और हमें अतीत को एक नई दृष्टि से देखने के लिए प्रेरित करते हैं।” उन्होंने डॉ. संपत के प्रयासों की प्रशंसा करते हुए कहा कि टीपू सुल्तान जैसे जटिल और ध्रुवीकरण करने वाले व्यक्तित्वों पर निष्पक्ष अध्ययन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
पुस्तक पर आधारित पैनल चर्चा का संचालन लिपिका भूषण ने किया। चर्चा में सत्र की अध्यक्ष राजदूत भास्वती मुखर्जी और पवन के. वर्मा ने भाग लिया। राजदूत मुखर्जी ने कहा, “18वीं सदी भारत के इतिहास का सबसे चुनौतीपूर्ण दौर था। यह पुस्तक दक्षिण भारत की भयावह वास्तविकताओं और टीपू सुल्तान की विवादास्पद विरासत को उजागर करती है।”
पवन के. वर्मा ने लेखक के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा, “इतिहास को संवाद का विषय बनाए रखना आवश्यक है। यह पुस्तक उस दिशा में एक सराहनीय कदम है।”
डॉ. विक्रम संपत ने अपने शोध की कठिनाइयों और प्रेरणाओं को साझा करते हुए कहा, “यह पुस्तक मेरे वर्षों के गहन शोध और इतिहास के साथ मेरी निष्ठा का परिणाम है। इसमें टीपू सुल्तान के चरित्र की जटिलताओं और उनके युग की चुनौतियों को दिखाने का प्रयास किया गया है।”
डॉ. संपत ने बताया कि इस पुस्तक में टीपू सुल्तान के जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे उनके शासन, भूमि सुधार, और सैन्य तकनीकों के विकास के साथ-साथ उनके विवादास्पद कार्यों को भी तथ्यात्मक रूप से पेश किया गया है। साथ ही, उनके पिता हैदर अली के योगदान को भी विस्तार से समझाया गया है।
डॉ. संपत ने कहा, “इतिहास की सच्चाइयों को राजनीतिक या सामाजिक दृष्टिकोण के हिसाब से बदला नहीं जा सकता। टीपू सुल्तान की कहानी में अच्छाई और बुराई दोनों हैं, और इसे संतुलित दृष्टिकोण से देखना आवश्यक है।”
कार्यक्रम का समापन प्रश्नोत्तर सत्र और सुश्री दीपाली भसीन के समापन भाषण के साथ हुआ। प्रभा खेतान फाउंडेशन के कार्यकारी ट्रस्टी अनिंदिता चटर्जी ने सभी अतिथियों को तमिलनाडु के पारंपरिक हथकरघा पोन्नदाई स्टोल भेंट कर सम्मानित किया।
पीकेएफ का यह आयोजन भारतीय साहित्य को बढ़ावा देने और इतिहास पर सार्थक संवाद स्थापित करने की दिशा में एक और कदम था। विन्नी कक्कड़ ने कहा, “यह पुस्तक विमोचन साहित्य, विचार और इतिहास का उत्सव है। पीकेएफ ऐसे आयोजनों के माध्यम से विविध साहित्यिक कथाओं को मंच प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।”
“टीपू सुल्तान: द सागा ऑफ मैसूर इंटररेग्नम” न केवल टीपू सुल्तान के जीवन का गहन अध्ययन है, बल्कि यह भारतीय इतिहास के जटिल और विवादास्पद अध्यायों को समझने की नई दृष्टि भी प्रस्तुत करता है।।
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