नई दिल्ली (08 मार्च 2025): दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए कहा कि यदि कोई व्यक्ति बिना यौन प्रेरित मंशा के किसी नाबालिग लड़की के होठों को छूता है या उसके बगल में सोता है, तो इसे पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) अधिनियम के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता। हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह की हरकतें नाबालिग की गरिमा को ठेस पहुंचा सकती हैं और उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
यह फैसला 12 वर्षीय पीड़िता के चाचा की उस याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें आरोपी ने आईपीसी धारा 354 और पॉक्सो एक्ट की धारा 10 के तहत लगाए गए आरोपों को चुनौती दी थी। आरोपी ने तर्क दिया कि उसका नाबालिग के प्रति कोई यौन इरादा नहीं था, इसलिए उसके खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत मामला नहीं बनता। अदालत ने इस दलील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए पॉक्सो एक्ट के तहत उसे बरी कर दिया, लेकिन आईपीसी की धारा 354 को बरकरार रखा, जो महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने से जुड़ी है।
न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा ने अपने फैसले में कहा कि कोई भी कृत्य जो नाबालिग की गरिमा को नुकसान पहुंचाता है, वह कानूनी रूप से अस्वीकार्य है, लेकिन यदि उसमें स्पष्ट यौन इरादा नहीं है, तो उसे पॉक्सो के तहत ‘गंभीर यौन उत्पीड़न’ नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा कि इस मामले में आरोपी के कृत्य ने लड़की को मानसिक आघात पहुंचाया हो सकता है, लेकिन कानूनन यह पॉक्सो एक्ट की परिभाषा में नहीं आता।
फैसले में यह भी उल्लेख किया गया कि पीड़िता की मां ने उसे बचपन में ही छोड़ दिया था, और वह बाल देखभाल संस्थान में रह रही थी। घटना के समय वह अपने परिवार से मिलने गई थी, जब यह घटना हुई। कोर्ट ने माना कि इस मामले में लड़की के संरक्षक (चाचा) को अधिक जिम्मेदारी और संवेदनशीलता दिखानी चाहिए थी, लेकिन जब तक यौन इरादा साबित नहीं होता, तब तक पॉक्सो एक्ट लागू नहीं किया जा सकता।
इस फैसले के बाद कई कानूनी विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों ने इस पर मिश्रित प्रतिक्रिया दी है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला कानूनी दृष्टिकोण से सही हो सकता है, लेकिन बच्चों की सुरक्षा के लिए कठोर कानूनों की जरूरत बनी रहेगी। वहीं, कुछ लोगों ने चिंता जताई कि इस तरह के फैसले पॉक्सो एक्ट की प्रभावशीलता को कमजोर कर सकते हैं।
यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन सकता है, जहां स्पष्ट यौन इरादा और केवल स्पर्श के बीच अंतर को रेखांकित किया गया है। हाई कोर्ट का यह निर्णय यह भी दर्शाता है कि प्रत्येक मामला अपनी परिस्थितियों के आधार पर तय किया जाना चाहिए और कानून का उद्देश्य निर्दोष व्यक्तियों को सजा देने के बजाय असली अपराधियों को दंडित करना होना चाहिए।
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