दिल्ली की राजनीति के क्या निर्विवाद शहंशाह हैं Arvind Kejriwal? | टेन न्यूज की विशेष रिपोर्ट

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (07 दिसंबर, 2024): दिल्ली की राजनीति में अरविंद केजरीवाल का नाम पिछले एक दशक से लगातार चर्चा में है। IRS की नौकरी छोड़कर आए अरविंद केजरीवाल ने अपनी सूझबूझ, एंटी करप्शन कैंपेन , जमीनी मुद्दों पर ध्यान और जनकल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से दिल्ली की सत्ता में अपनी जगह बनाई। आज यह सवाल उठता है कि क्या अरविंद केजरीवाल दिल्ली की राजनीति के शहंशाह हैं? टेन न्यूज नेटवर्क की इस विशेष रिपोर्ट में हम उनके नेतृत्व और लोकप्रियता के प्रमुख कारणों पर चर्चा करेंगे और कुछ अन्य पहलुओं पर भी प्रकाश डालेंगे।

1. बिजली और पानी में रियायत: जनता का भरोसा जीतने का आधार

अरविंद केजरीवाल की राजनीति की सबसे बड़ी ताकत उनकी लोकलुभावन योजनाएं रही हैं। दिल्ली में बिजली और पानी की दरों में रियायत देना उनकी सरकार की प्रमुख उपलब्धि मानी जाती है।

बिजली दरों में छूट: 200 यूनिट तक बिजली फ्री देने का वादा करके उन्होंने जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। यह कदम न केवल आम लोगों को राहत देने वाला था, बल्कि दिल्ली के मतदाताओं का विश्वास जीतने में भी अहम रहा।हालाकि वित्तीय घाटे में बढ़ोतरी हो रही है ।

पानी मुफ्त: 20,000 लीटर तक पानी मुफ्त देने की योजना ने गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों को सीधे तौर पर लाभान्वित किया।

हालांकि, विपक्ष ने इन योजनाओं को “फ्री की रेवड़ी” कहकर आलोचना की, लेकिन दिल्ली के मतदाता इसे अरविंद केजरीवाल की “आम लोगों की पार्टी” की पहचान मानते हैं।

2. महिलाओं को फ्री बस यात्रा: आधी आबादी का साथ

दिल्ली में महिलाओं को डीटीसी बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा देकर केजरीवाल ने महिला मतदाताओं के बीच खास पकड़ बनाई।

यह कदम न केवल महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल थी, बल्कि उनकी सुरक्षा और सुविधा को प्राथमिकता देने वाला भी था।

दिल्ली की आधी आबादी यानी महिलाओं के लिए यह योजना उनकी पार्टी के लिए एक मजबूत वोट बैंक बनाने में सहायक साबित हुईं।

3. झुग्गी बस्तियों और अनाधिकृत कॉलोनियों एवं ऑटो ड्राइवरों में खास पकड़

दिल्ली में बड़ी संख्या में झुग्गी और अनाधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले लोग एवं ऑटो ड्राइवर समूह अरविंद केजरीवाल को अपना मसीहा मानते हैं।

अरविंद केजरीवाल का कहना है कि भाजपा के बार-बार बुलडोजर चलाने की धमकियों के विपरीत, केजरीवाल ने इन कॉलोनियों को नियमित करने और वहां विकास कार्य शुरू करने का भरोसा दिया।

ऑटो चालकों और टैक्सी ड्राइवरों के साथ उनका भावनात्मक जुड़ाव भी उनकी लोकप्रियता का एक बड़ा कारण है।

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4. शिक्षा और स्वास्थ सेवाओं में सुधार

आम आदमी पार्टी सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी काफ़ी सुधारात्मक बदलाव किए।

शिक्षा: दिल्ली सरकार ने सरकारी स्कूलों की स्थिति में सुधार किया। दिल्ली मॉडल स्कूलों के कारण देश-विदेश में केजरीवाल की प्रशंसा हुई।

मोहल्ला क्लीनिक: स्वास्थ्य के क्षेत्र में मोहल्ला क्लीनिक उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए यह योजना वरदान साबित हुई।

5. प्रेस कॉन्फ्रेंस और मीडिया प्रबंधन में महारत

अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के नेता मीडिया के मंच का बखूबी इस्तेमाल करते हैं।

नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस: सरकार की उपलब्धियों को जनता तक पहुंचाने के लिए आम आदमी पार्टी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस का सहारा लिया।

सोशल मीडिया: सोशल मीडिया पर सक्रियता और अभियान चलाकर पार्टी ने युवाओं और डिजिटल युग की जनता के बीच खास जगह बनाई।

6. पार्टी में केंद्रीकृत नेतृत्व: सर्वेसर्वा केजरीवाल

आम आदमी पार्टी में निर्णय लेने की सारी ताकत अरविंद केजरीवाल के पास है।

पार्टी के भीतर उनकी स्थिति इतनी मजबूत है कि हर बड़ा निर्णय उन्हीं के द्वारा लिया जाता है।

हालांकि, आलोचकों का मानना है कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की कमी है, लेकिन समर्थकों का मानना है कि उनका सशक्त नेतृत्व ही पार्टी को दिशा देता है।

7. अरविंद केजरीवाल केंद्रित भाजपा रणनीति का अभाव

भारतीय जनता पार्टी, जो देश के अन्य हिस्सों में मजबूत पकड़ रखती है, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का प्रभाव कम करने में असफल रही है।

लोकल चेहरा न होना: भाजपा के पास दिल्ली में कोई ऐसा नेता नहीं है जो अरविंद केजरीवाल के व्यक्तित्व और लोकप्रियता का मुकाबला कर सके।हालाकि वीरेंद्र सचदेवा अध्यक्ष दिल्ली प्रदेश भाजपा के नेतृत्व ने सांतों लोक सभा सीट्स पर कामयाबी हासिल करी थी|

स्थानीय मुद्दों पर फोकस की कमी: भाजपा अक्सर राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान देती है, जबकि केजरीवाल स्थानीय मुद्दों पर आधारित राजनीति करते हैं।

8. विपक्ष पर आक्रामक रुख

अरविंद केजरीवाल विपक्ष पर सीधे आरोप लगाने और सवाल उठाने में माहिर हैं।

भाजपा और कांग्रेस को लगातार घेरते हुए उन्होंने खुद को दिल्ली के हितैषी नेता के रूप में स्थापित किया।

उनके आक्रामक रुख ने उन्हें न केवल मीडिया की सुर्खियों में बनाए रखा, बल्कि समर्थकों के बीच भी उनका कद बढ़ाया।

9. जनता से सीधे जुड़ाव

केजरीवाल ने जनता से सीधे संवाद स्थापित करने पर जोर दिया।

जनसभाएं और रैलियां: उनके सीधे और सादगी भरे भाषणों ने जनता को उनसे जोड़े रखा। कई कार्यक्रम उनकी सरकार और जनता के बीच की दूरी को कम करने का एक माध्यम बना।

10. कांग्रेस का गिरता प्रभाव

दिल्ली में कांग्रेस की बदहाल स्थिति और सियासी कमजोर होना अरविंद केजरीवाल के लिए ‘गुड न्यूज’ जैसा है, क्योंकि दिल्ली में कांग्रेस के कमजोर होने का मतलब है कि दिल्ली की सियासत में केवल 2 प्रमुख पार्टियां बीजेपी और आम आदमी पार्टी का होना। हालाकि दिल्ली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव जमीनी स्तर पर लोगों को कांग्रेस से जोड़ने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं, लेकिन राहुल और प्रियंका गांधी दिल्ली को समय और दिशा देने में अभी तक सफल नहीं हुए हैं। इस स्थिति में दिल्ली के अकलियत मतदाताओं का पूरा झुकाव अरविंद केजरीवाल के खाते में जा सकता है।

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Devender Yadav (Delhi Congress President)

 

हालांकि, अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत बना ली है, लेकिन उनकी राह में कई चुनौतियां भी हैं।

बढ़ती महंगाई, प्रदूषण और जनसंख्या का दबाव, सड़कों की बदहाल स्थिति जैसे मुद्दों पर उनकी नीतियां और क्रियान्वयन कितने प्रभावी होते हैं, यह देखना होगा। भाजपा में नरेंद्र मोदी का राष्ट्रीय नेतृत्व, मजबूत संगठन एवं दिल्ली में सात मजबूत सांसद, अरविंद केजरीवाल के ‘वन मैन शो’ के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। वहीं दूसरी तरफ दिल्ली बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने बीजेपी को दिल्ली में लोकसभा चुनाव के दौरान बड़ी जीत दिलाई, प्रदेश में सचदेवा का मजबूत नेतृत्व भी अरविंद केजरीवाल के सियासी सफलता में बाधक बन सकता है।

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Virendra Sachdeva, Delhi BJP President

अरविंद केजरीवाल ने अपनी योजनाओं, रणनीतियों और व्यक्तित्व के बल पर दिल्ली की राजनीति में अपना कद ऊंचा किया है। वे दिल्ली के मतदाताओं के बीच लोकप्रिय हैं, और उनकी नीतियां जनहितकारी मानी जाती हैं।

हालांकि, लोकतंत्र में असली शहंशाह तो मतदाता ही होता है। आने वाले चुनाव ही तय करेंगे कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली की राजनीति के “शहंशाह” बने रहेंगे या नहीं। लेकिन यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि आज की तारीख में वे दिल्ली के सबसे प्रभावशाली नेता हैं।।


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