दिल्ली की परिवहन व्यवस्था पर नई सरकार की बड़ी चुनौती, क्या बसों की हालत सुधरेगी?

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (14 फरवरी 2025): दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की 10 साल की सत्ता को जनता ने बाहर का रास्ता दिखा दिया और भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने का मौका दिया। अब दिल्ली में डबल इंजन की सरकार बनने जा रही है। इस नई सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक दिल्ली की पब्लिक ट्रांसपोर्ट व्यवस्था को सुधारना होगा। राजधानी में हर दिन 41 लाख लोग बसों में सफर करते हैं, लेकिन बसों की कमी और जर्जर हालत के कारण यात्रियों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

बसों की बदहाली बनी थी चुनावी मुद्दा

दिल्ली सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, राजधानी में फिलहाल करीब 7400 बसें चल रही हैं, जिनमें से 2000 इलेक्ट्रिक बसें हैं, जबकि बाकी सीएनजी बसें हैं। इनमें से कई सीएनजी बसें अपनी निर्धारित उम्र पूरी कर चुकी हैं और विशेष अनुमति लेकर चलाई जा रही हैं। ऐसे में ये बसें न केवल यात्रियों के लिए बल्कि सड़क पर चलने वाले अन्य लोगों के लिए भी खतरा बनी हुई हैं। रोजाना सैकड़ों बसें बीच रास्ते में खराब हो जाती हैं, जिससे यात्रियों को असुविधा होती है और वे समय पर अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच पाते।

विधानसभा चुनाव के दौरान बसों की दुर्दशा बड़ा मुद्दा बनी रही। यात्रियों, खासकर महिलाओं, ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा था कि बसों की सेवा इतनी खराब हो गई है कि वे मुफ्त यात्रा से बेहतर पैसे देकर सही बस में सफर करना पसंद करेंगी।

भाजपा सरकार के सामने बड़ी चुनौती

आम आदमी पार्टी सरकार ने 2025 के अंत तक दिल्ली में 10,480 बसें चलाने का लक्ष्य रखा था, जिनमें 80% इलेक्ट्रिक बसें होनी थीं। हालांकि, अब तक केवल 2000 इलेक्ट्रिक बसें ही सड़कों पर उतारी जा सकी हैं। अब भाजपा सरकार को अगले एक साल में 8000 से अधिक बसें लाने की चुनौती होगी। इसके लिए भारी वित्तीय संसाधनों की जरूरत होगी।

आम आदमी पार्टी सरकार बसों को खरीदने की बजाय अनुबंध के तहत कंपनियों से बसें लेकर उन्हें चलाने का मॉडल अपना रही थी। कंपनियां ही बसों का संचालन करती थीं और प्रति किलोमीटर के हिसाब से सरकार से भुगतान लेती थीं। इसके कारण सरकार पर डीटीसी के निजीकरण के आरोप लगे थे। भाजपा की सरकार बनने के बाद कर्मचारियों में उम्मीद जगी है कि अब निजीकरण रुकेगा और डीटीसी में स्थायी भर्ती होगी।

कर्मचारियों की यूनियन भाजपा सरकार से क्या चाहती है?

डीटीसी कर्मचारी एकता यूनियन 2018 से अपनी विभिन्न मांगों को लेकर संघर्ष कर रही है। विधानसभा चुनाव से पहले यूनियन ने दिल्ली में बसों का चक्का जाम कर दिया था। उस समय तत्कालीन परिवहन मंत्री आतिशी ने यूनियन के नेताओं के साथ बैठक कर समस्याओं का समाधान करने का आश्वासन दिया था, लेकिन अधिकतर वादे केवल कागजों तक ही सीमित रह गए।

अब यूनियन के अध्यक्ष ललित चौधरी और अन्य पदाधिकारी भाजपा सरकार से बड़ी उम्मीदें लगाए बैठे हैं। उन्होंने मीडिया को बताया कि वे चुनाव से पहले भाजपा नेता कपिल मिश्रा और सांसद मनोज तिवारी के संपर्क में थे। भाजपा नेताओं ने उन्हें भरोसा दिया था कि सरकार बनने के बाद उनकी सभी मांगों को पूरा किया जाएगा। यूनियन को उम्मीद है कि नई सरकार डीटीसी का निजीकरण रोकेगी, नई बसें लाएगी और संविदा कर्मचारियों की नौकरी की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी।

बस मार्शलों को भी राहत की उम्मीद

आम आदमी पार्टी सरकार ने बसों में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए बस मार्शलों को तैनात किया था। लेकिन दिसंबर 2023 में 10,000 से अधिक बस मार्शलों को हटा दिया गया था, जिसके बाद वे लगातार आंदोलन कर रहे थे। इस मुद्दे पर भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच राजनीतिक खींचतान भी देखने को मिली। अब जब दिल्ली में भाजपा की सरकार बनने जा रही है, तो बस मार्शलों को भी उम्मीद है कि उनकी नौकरी बहाल की जाएगी। अब देखना होगा कि भाजपा सरकार इस मामले में क्या कदम उठाती है और क्या वाकई बस मार्शलों को उनकी पुरानी नौकरी वापस मिलती है या नहीं।

नई सरकार में परिवहन मंत्रालय की जिम्मेदारी किसे मिलेगी?

आम आदमी पार्टी सरकार में कैलाश गहलोत परिवहन मंत्री थे, लेकिन सितंबर 2024 में वे भाजपा में शामिल हो गए। उन्हें दिल्ली की परिवहन व्यवस्था की सभी कमियां और खूबियां अच्छी तरह पता हैं। इसलिए संभावना है कि भाजपा उन्हें फिर से परिवहन मंत्री बनाए, ताकि वे पुराने अनुभव के आधार पर बसों की समस्या को दूर कर सकें।

अब कोई बहाना नहीं, जनता को चाहिए बेहतर बस सेवा

आम आदमी पार्टी की सरकार हमेशा यह आरोप लगाती रही थी कि उपराज्यपाल भाजपा के हैं, इसलिए वे ठीक से काम नहीं कर पा रहे हैं। लेकिन अब केंद्र और राज्य दोनों जगह भाजपा की सरकार है। अब जनता को यह देखना है कि डबल इंजन की सरकार दिल्ली की परिवहन व्यवस्था में कितनी तेजी से सुधार करती है।

आने वाले महीनों में दिल्ली के बस यात्रियों की परेशानियों का समाधान कितना होता है, यह भाजपा सरकार की नीतियों और कार्यशैली पर निर्भर करेगा। अगर सरकार ने बसों की संख्या बढ़ाने, खराब बसों को हटाने, कर्मचारियों की मांगों को पूरा करने और सार्वजनिक परिवहन को बेहतर बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए, तो यह दिल्ली के लोगों के लिए राहत की बात होगी। लेकिन अगर हालात नहीं बदले, तो भाजपा सरकार को भी भविष्य में जनता की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है।।


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