वंदे मातरम के 150 वर्ष: लोकसभा में प्रधानमंत्री का ऐतिहासिक संबोधन

टेन न्यूज नेटवर्क

National News (08 December 2025): लोक सभा में सोमवार को वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर आयोजित विशेष चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री ने भावपूर्ण और ऐतिहासिक संबोधन दिया। सदन में उपस्थित सभी सांसदों और अध्यक्ष का आभार व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वंदे मातरम वह मंत्र है जिसने देश के स्वतंत्रता संग्राम को ऊर्जा, प्रेरणा और त्याग का मार्ग दिखाया। प्रधानमंत्री ने इसे “देश की सामूहिक चेतना का पवित्र स्रोत” बताते हुए कहा कि इस अवसर ने देश को अपने गौरवशाली इतिहास को पुनः स्मरण करने का अमूल्य अवसर दिया है।

इतिहास की प्रेरक गूंज और 150 वर्षों की यात्रा

प्रधानमंत्री ने याद दिलाया कि वंदे मातरम की शुरुआत बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 1875 में की थी, ऐसे कठिन समय में जब 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों का अत्याचार चरम पर था। अंग्रेज़ी शासन भारत में ‘God Save The Queen’ को फैलाने का प्रयास कर रहा था, उसी समय बंकिम दा ने इसका उत्तर वंदे मातरम के रूप में दिया। 1882 में इसे उपन्यास आनंद मठ में सम्मिलित किया गया, जहां से यह पूरे स्वतंत्रता आंदोलन का स्वरस्रोत बन गया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि वंदे मातरम केवल राजनीतिक स्वतंत्रता का मंत्र नहीं बल्कि “मां भारती की मुक्ति” का पवित्र संकल्प था। इसकी पृष्ठभूमि वैदिक संस्कृति से जुड़ी है—“माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः”—और इसी भाव को आधुनिक रूप में बंकिम दा ने शब्द दिए।

स्वतंत्रता आंदोलन की आत्मा- वंदे मातरम

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में बताया कि वंदे मातरम ने 1905 के बंगाल विभाजन के दौरान पूरे देश को एक सूत्र में जोड़ा। अंग्रेजों ने इससे अत्यधिक भयभीत होकर गीत गाने, छापने, यहां तक कि वंदे मातरम बोलने तक पर प्रतिबंध लगा दिया था। उन्होंने बारीसाल की वीरांगना सरोजिनी घोष का उल्लेख किया, जिन्होंने वंदे मातरम पर से प्रतिबंध हटने तक चूड़ियां न पहनने का संकल्प लिया था। बंगाल और नागपुर के छोटे बच्चों तक को केवल यह नारा लगाने पर कोड़े मारे गए लेकिन वे पीछे नहीं हटे।

प्रधानमंत्री ने खुदीराम बोस, मदनलाल ढींगरा, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान और मास्टर सूर्य सेन सहित अनेक क्रांतिकारियों का उल्लेख किया, जिन्होंने फांसी के तख्ते तक वंदे मातरम का नारा बुलंद रखा।

वंदे मातरम – स्वदेशी, स्वाभिमान और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक

प्रधानमंत्री ने बताया कि 1907 में वी.ओ. चिदंबरम पिल्लई द्वारा बनाए गए स्वदेशी जहाज पर ‘वंदे मातरम’ लिखा गया था। तमिल कवि सुब्रमण्यम भारती ने इसका तमिल अनुवाद कर इसके संदेश को दक्षिण भारत तक पहुंचाया। पेरिस में मैडम भीकाजी कामा ने भी अपने अखबार का नाम वंदे मातरम् रखा। लंदन के इंडिया हाउस में वीर सावरकर द्वारा वंदे मातरम गाए जाने का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह गीत विश्वभर में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों का मनोबल बढ़ाता रहा।

गांधी जी की नजर में वंदे मातरम

प्रधानमंत्री ने महात्मा गांधी के 1905 के लेख का उल्लेख किया, जिसमें गांधी जी ने लिखा था कि वंदे मातरम “मानो राष्ट्रीय गान बन चुका है” और यह अन्य राष्ट्रगीतों की तुलना में अधिक मधुर तथा भारत को मां के रूप में पूजने वाला है।

पिछली सदी में वंदे मातरम के साथ हुए अन्याय पर प्रश्न

प्रधानमंत्री ने सवाल उठाया कि जब वंदे मातरम इतना पवित्र और प्रेरणास्रोत है, तो पिछली सदी में इसे विवादों में क्यों घसीटा गया? उन्होंने कहा कि यह विचार करना आवश्यक है कि किस शक्ति ने इसे उसके मूल गौरव से दूर किया।

2047 के विकसित भारत का संकल्प

भाषण के अंत में प्रधानमंत्री ने कहा कि वंदे मातरम 150 केवल अतीत का उत्सव नहीं बल्कि भविष्य के भारत के लिए ऊर्जा का स्रोत है। उन्होंने सभी सांसदों से आग्रह किया कि देश को एकजुट रखते हुए 2047 तक विकसित भारत के सपने को पूरा किया जाए।

लोकसभा में प्रधानमंत्री का यह संबोधन वंदे मातरम के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय महत्व का व्यापक पुनर्स्मरण था। स्वतंत्रता आंदोलन के प्रेरणास्रोत रहे इस मंत्र के 150 वर्ष पूरे होने पर सदन में हुई यह चर्चा आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक शिक्षाप्रद दस्तावेज की तरह दर्ज हो गई।।


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