पूर्व राज्यपाल व वरिष्ठ अधिवक्ता स्वराज कौशल का निधन, राजनीतिक- कानूनी जगत में शोक

टेन न्यूज़ नेटवर्क

New Delhi News (04 December 2025): मिजोरम के पूर्व राज्यपाल और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता स्वराज कौशल का 4 दिसंबर को निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनके निधन की खबर सामने आते ही राजनीतिक और कानूनी जगत में शोक की लहर दौड़ गई। बीजेपी नेता और दिल्ली बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष सतीश उपाध्याय समेत कई नेताओं ने सोशल मीडिया पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए कहा कि स्वराज कौशल ने अपने शांत, सादगीपूर्ण और प्रभावशाली व्यक्तित्व के साथ देश की सेवा अद्वितीय समर्पण से की।

साल 1990 में मात्र 37 वर्ष की उम्र में स्वराज कौशल को मिजोरम का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। इस नियुक्ति के साथ वे देश के सबसे युवा राज्यपाल बने और 9 फरवरी 1993 तक अपने कार्यकाल के दौरान उत्तर-पूर्व में स्थिरता और शांति स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी पत्नी, स्वर्गीय सुषमा स्वराज, देश की सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बनने का रिकॉर्ड रखती थीं, जिससे यह दंपत्ति अपनी असाधारण उपलब्धियों के लिए जाना जाता रहा। 1998 से 2004 तक वे राज्यसभा सदस्य भी रहे और इस दौरान कई संवैधानिक और विधायी विषयों पर प्रभावी योगदान दिया।

उनका राजनीतिक और कानूनी करियर कई ऐतिहासिक मोड़ों से भरा रहा। आपातकाल के दौरान बड़ौदा डायनामाइट केस में जॉर्ज फर्नांडीज सहित 24 लोगों पर लगे फर्जी आरोपों की पैरवी स्वराज कौशल ने की और उन्हें न्याय दिलाने में निर्णायक भूमिका निभाई। उत्तर-पूर्व मामलों के विशेषज्ञ के रूप में पहचान बनाने वाले कौशल ने 1979 में अंडरग्राउंड मिजो नेता लालडेंगा की रिहाई सुनिश्चित कराई और बाद में मिजो नेशनल फ्रंट के संवैधानिक सलाहकार बने। कई दौर की वार्ताओं के बाद तैयार हुआ ऐतिहासिक मिजोरम शांति समझौता उनके ही योगदान का बड़ा परिणाम था, जिसने दो दशक पुराने विद्रोह को समाप्त किया।

कानूनी क्षेत्र में भी उनकी उपलब्धियाँ उल्लेखनीय रहीं। दिसंबर 1986 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीनियर एडवोकेट का दर्जा प्रदान किया गया, जो उनके विधिक कौशल और विशेषज्ञता की बड़ी मान्यता थी। अगले ही वर्ष वे एडवोकेट जनरल बने। अपनी गहरी विधिक समझ, सरल स्वभाव और पेशेवर ईमानदारी के चलते वे नई पीढ़ी के वकीलों के लिए प्रेरणा स्रोत रहे। विचारों से वे सामाजिक न्याय और समाजवादी दृष्टिकोण के अधिक निकट माने जाते थे और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा को हमेशा प्राथमिकता देते रहे।

व्यक्तिगत जीवन में भी वे समान रूप से आदर्शवादी थे। 13 जुलाई 1975 को उन्होंने एबीवीपी कार्यकर्ता और RSS नेता की बेटी सुषमा स्वराज से विवाह किया। उनकी बेटी बांसुरी स्वराज ऑक्सफोर्ड ग्रेजुएट हैं और दिल्ली हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में बैरिस्टर के रूप में प्रैक्टिस कर रही हैं। लंबा सार्वजनिक जीवन होने के बावजूद स्वराज कौशल हमेशा लो-प्रोफाइल रहे और अपनी उपलब्धियों का कभी प्रचार नहीं किया।

उनके निधन से देश ने एक सादगीप्रिय, संवेदनशील, सिद्धांतवादी और अत्यंत प्रतिभाशाली व्यक्तित्व को खो दिया है। उनकी कमी लंबे समय तक महसूस की जाएगी।


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