GREATER NOIDA News (03/12/2025): नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास क्षेत्र में 500 इलेक्ट्रिक बसें उतारने की महत्वाकांक्षी योजना फिलहाल रुक गई है। लगभग 675 करोड़ रुपये की इस परियोजना पर तीनों विकास प्राधिकरणों ने साफ कर दिया है कि वर्तमान परिस्थितियों में इतनी बड़ी संख्या में बसों को एक साथ सड़कों पर उतारना व्यावहारिक नहीं है।
अधिकारियों का मानना है कि पहले चरण में 250 बसों का संचालन शुरू कर मांग और प्रतिक्रिया परखना अधिक सुरक्षित विकल्प होगा। इससे वायबिलिटी गैप फंडिंग (VGF) का दबाव भी कम पड़ेगा और आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर को चरणबद्ध तरीके से विकसित किया जा सकेगा।
योजना के अनुसार, केवल नोएडा में 300 ई-बसें और ग्रेटर नोएडा तथा यीडा क्षेत्र में 100-100 बसें चलनी थीं। लेकिन बस डिपो निर्माण, चार्जिंग स्टेशन, रूट निर्धारण और संपूर्ण संचालन के लिए संयुक्त एसपीवी के गठन जैसी मूलभूत तैयारियाँ अभी अधूरी हैं।
अधिकारियों के अनुसार इतनी भारी संख्या में बसों का एकसाथ संचालन मौजूदा सिस्टम पर अतिरिक्त बोझ डाल देगा। इसलिए सरकार से अनुरोध किया गया है कि योजना को चरणों में लागू किया जाए और बसों की संख्या वास्तविक आवश्यकता के अनुरूप तय की जाए।
करीब छह महीने पहले ट्रैवल टाइम मोबिलिटी इंडिया और डेलबस मोबिलिटी को 12 वर्ष की अवधि के लिए बसों की सप्लाई, संचालन और मेंटेनेंस के कार्य के लिए चुन लिया गया था। इसके बावजूद, ‘जीबीएन ग्रीन ट्रांसपोर्ट लिमिटेड’ नामक संयुक्त स्पेशल पर्पस व्हीकल (SPV) का गठन अभी तक नहीं हो पाया है।एसपीवी न बनने के चलते कंपनियों के साथ अंतिम एग्रीमेंट भी अटका हुआ है, जिसके कारण पूरे प्रोजेक्ट की समय-सीमा प्रभावित हो रही है।
तीनों प्राधिकरण अब अपनी आवश्यकताओं और क्षमता का मूल्यांकन कर राज्य सरकार को विस्तृत रिपोर्ट भेजने की तैयारी में हैं। शासन यह तय करेगा कि मौजूदा टेंडर में संशोधन कर कम बसों से शुरुआत की जाए या फिर पूरे प्रोजेक्ट के लिए नया टेंडर जारी किया जाए। अधिकारियों के मुताबिक, ये ई-बसें नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट (जेवर) को भी मल्टी-मोडल कनेक्टिविटी देने के लिए महत्वपूर्ण हैं। ऐसे में देरी का असर एयरपोर्ट के पब्लिक ट्रांसपोर्ट नेटवर्क पर भी पड़ेगा।
पूरी 500 बसों की योजना को लागू करने पर सालाना 225 करोड़ रुपए की वीजीएफ जरूरी होगी। अकेले नोएडा प्राधिकरण को ही 107 करोड़ रुपए से ज्यादा वहन करना पड़ेगा। अधिकारियों का कहना है कि बिना मांग का आकलन और आधारभूत सुविधाएं तैयार किए इतने बड़े खर्च को मंजूरी देना जोखिमपूर्ण हो सकता है। इस कारण परियोजना की दिशा अब राज्य सरकार के नीति-निर्णय पर निर्भर है, क्या इसे चरणबद्ध रूप से आगे बढ़ाया जाएगा या मॉडल को पूरी तरह पुन: डिज़ाइन किया जाएगा।
ई-बस संचालन के लिए आवश्यक सुविधाएँ भी अधूरी हैं जैसे कि, नोएडा के सेक्टर 82 और सेक्टर 91 में प्रस्तावित बस टर्मिनलों पर चार्जिंग पॉइंट लगाने की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है। ग्रेटर नोएडा और यीडा क्षेत्र में अभी कोई बस डिपो ही मौजूद नहीं है। बॉटनिकल गार्डन इंटरचेंज पर अतिरिक्त चार्जिंग और ऑपरेशन सुविधाएँ विकसित करने की आवश्यकता है।इंफ्रास्ट्रक्चर की इसी कमी के कारण प्रोजेक्ट की शुरुआत निर्धारित समय पर होना मुश्किल दिख रहा है।
ई-बस परियोजना को लेकर उत्साह तो है, लेकिन जमीनी स्तर पर तैयारियों की कमी, वित्तीय दबाव और संचालन तंत्र के अभाव ने 500 बसों की योजना को रोक दिया है। अब नजर इस बात पर है कि राज्य सरकार इसे छोटे चरणों में आगे बढ़ाती है या पूरी योजना को नए स्वरूप में लागू करने का निर्णय लेती है।
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