National News (23/11/2025): भारत में ऐतिहासिक श्रम सुधारों की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए केंद्र सरकार ने चार नए लेबर कोड—वेज कोड, सोशल सिक्योरिटी कोड, इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड और ऑक्युपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस (OSH) कोड—को आधिकारिक रूप से लागू कर दिया है। ये चारों कोड 29 पुराने श्रम कानूनों को समेकित करते हुए देशभर के कामगारों के अधिकार, सुरक्षा और रोजगार संरचना को आधुनिक स्वरूप प्रदान करते हैं।
इन कोड्स के लागू होने के साथ सबसे बड़ा असर वेतन संरचना पर देखा जा रहा है। नए नियम के अनुसार बेसिक पे + डीए कुल वेतन का कम से कम 50% होगा। इससे कर्मचारियों के PF और ग्रेच्युटी में योगदान बढ़ेगा, जबकि टेक-होम सैलरी कुछ कम हो सकती है। साथ ही अब न्यूनतम वेतन पूरी तरह अनिवार्य कर दिया गया है और कर्मचारियों को समय पर सैलरी देना हर नियोक्ता के लिए कानूनन जरूरी होगा।
सोशल सिक्योरिटी कोड के तहत अब PF, ESIC, पेंशन, बीमा और मातृत्व लाभ का दायरा बढ़ा दिया गया है। सबसे महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि गिग वर्कर्स, डिलीवरी पार्टनर्स और फिक्स-टर्म कर्मचारियों को भी सामाजिक सुरक्षा अधिकार मिलेंगे। ग्रेच्युटी के नियमों में सुधार करते हुए पात्रता को 5 साल से घटाकर 1 साल की निरंतर सेवा किया गया है। महिलाओं को नाइट शिफ्ट में काम करने की अनुमति दी गई है, लेकिन सुरक्षा और सहमति अनिवार्य होगी।
वर्किंग ऑवर्स और OSH कोड के अनुसार अब अधिकतम साप्ताहिक कार्यकाल 48 घंटे तय किया गया है। कंपनियाँ चाहें तो 8 घंटे या 12 घंटे की शिफ्ट लागू कर सकती हैं, लेकिन इसके बाद ओवरटाइम के नियमों का पालन सख्ती से जरूरी है, जिसमें डबल रेट ओवरटाइम अनिवार्य होगा। 40 वर्ष से अधिक उम्र के कर्मचारियों के लिए वार्षिक स्वास्थ्य जांच भी अनिवार्य कर दी गई है, और बड़े प्रतिष्ठानों में सुरक्षा समितियाँ बनाई जाएँगी।
इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड ने रोजगार संबंधी ढाँचे में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। अब 300 तक कर्मचारियों वाली कंपनियों को छंटनी, ले-ऑफ या बंद करने के लिए सरकारी अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी। साथ ही, श्रम विवादों के तेज समाधान के लिए दो-सदस्यीय ट्राइब्यूनल गठित किए गए हैं। “इंस्पेक्टर-कम-फैसिलिटेटर” व्यवस्था के जरिए कॉम्प्लायंस प्रक्रिया सरल बनाई गई है।
ये चारों नए लेबर कोड भारतीय कार्यबल को अधिक सुरक्षित, औपचारिक और आधुनिक बनाने का उद्देश्य रखते हैं। हालांकि इनका वास्तविक प्रभाव राज्यों द्वारा नियमों के प्रभावी क्रियान्वयन पर निर्भर करेगा। ट्रेड यूनियनों ने इन कोड्स पर आपत्ति जताई है, लेकिन सरकार का कहना है कि ये कोड देश की अर्थव्यवस्था और कामगार सुरक्षा दोनों को नई मजबूती देंगे।
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