सेवा बनाम मेवा : बिहार चुनाव का सबसे बड़ा संदेश

लेखक: संदीप कुमार दुबे

Bihar News (17 November 2025): बिहार ने एक बार फिर लोकतंत्र की परिपक्वता का परिचय दिया है। चुनाव सिर्फ आँकड़े नहीं होते—यह जनता की समझ, जनता का मूड और राजनीति के लिए सीख होते हैं। इस बार जनता ने स्पष्ट कहा है कि राजनीति में “मेवा” की लालसा नहीं चलेगी—सम्मान उसी को मिलेगा जो “सेवा” की भावना के साथ आगे बढ़ेगा। हारने वाले दलों के लिए सबसे बड़ी सीख।

इस चुनाव में पीछे रह गए सभी दलों को यह स्वीकार करना होगा कि हार केवल संख्या नहीं—एक संदेश होती है।

जनता ने उन्हें नकारा नहीं, बल्कि याद दिलाया है कि राजनीति न तो नारों से चलती है, न भाषणों से—राजनीति चलती है:

जनता के बीच खड़े रहने से,
उनकी समस्याओं को समझने से,
और जमीन पर सेवा करने से।
हारने वाले दलों को आत्ममंथन करना होगा कि—
दूसरों को बदलने से पहले खुद को बदलना आवश्यक है।
जनता अब केवल वादों से प्रभावित नहीं होती—वह व्यवहार और कर्म देखती है।
अगर राजनीति में सिर्फ सत्ता की ललक दिखेगी, तो जनता दूर हटने में देर नहीं करती।
यह चुनाव बता गया कि जनाधार सेवा से बनता है, स्वार्थ से नहीं।
जीतने वाले दलों के लिए चेतावनी और प्रेरणा दोनों
जो दल जीतकर आए हैं, उनके लिए यह परिणाम खुशी के साथ एक बड़ी जिम्मेदारी भी लेकर आया है।
जनता ने उन पर भरोसा किया है—पर यह भरोसा स्थायी नहीं, उनके काम पर निर्भर है।
उन्हें याद रखना होगा—
जनता ने सेवा की उम्मीद पर वोट दिया है, अहंकार पर नहीं।
जीत स्थायी नहीं—सेवा स्थायी होती है।
सत्ता अवसर है—जनता की उम्मीदों को पूरा करने का अवसर।
यदि “सेवा” के स्थान पर “मेवा” की चाहत दिखी, तो अगला चुनाव जनता पूरा हिसाब साफ कर देगी।
नेतृत्व में ईमानदारी, कार्यकर्ताओं में संवेदनशीलता और शासन में पारदर्शिता—इन्हीं पर जीत टिकती है।
बिहार में फिर से ‘बहार’—जनता ने साफ चुना
इस चुनाव ने यह भी साबित किया है कि बिहार की जनता बदलाव चाहती है—पर स्थिरता के साथ।
जनता ने फिर ‘बहार’ चुनी है—नई ऊर्जा, नए विश्वास और नए संकल्प के साथ।
लेकिन राजनीति में कुछ लोग अब भी इसे “दूध पीने” का माध्यम समझते हैं—मानो जनता सिर्फ उनके लालच को पूरा करने के लिए बैठी हो।
वास्तविकता यह है कि जनता उनसे बहुत आगे निकल चुकी है।
बिहार विकसित होना चाहता है—और विकास उन्हीं के साथ मिलकर होगा जिनके मन में सच्ची सेवा है, न कि स्वार्थ।
निष्कर्ष : बिहार की नई राजनीति—सेवा पर आधारित
इस चुनाव का अंतिम संदेश बहुत स्पष्ट है—
राजनीति में लाभ नहीं, सेवा का संस्कार जरूरी है।
जो दल यह समझेंगे, वही भविष्य का नेतृत्व बनेंगे।
जो इस संदेश को अनसुना करेंगे, जनता उन्हें बार-बार सबक सिखाएगी।
बिहार का जनादेश एक स्वर में कह रहा है—
“मेवा नहीं, सेवा—यही नई राजनीति की पहचान है।”


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