वाराणसी में पीएम मोदी के दौरे से पहले झोपड़ियों को ढका गया कपड़ों से, प्रशासन की संवेदनशीलता पर उठते सवाल

टेन न्यूज़ नेटवर्क

Varansi News (07 November 2025): वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 7 नवंबर को चार नई ट्रेनों को हरी झंडी दिखाने वाले कार्यक्रम से पहले शहर में व्यापक स्तर पर तैयारियां की गईं। प्रशासन ने सड़कों की साफ-सफाई, फ्लाईओवर और बैरिकेडिंग पर रंग-रोगन कर पूरे मार्ग को चमचमा दिया। लेकिन इस तैयारियों के बीच एक दृश्य ऐसा भी था जिसने कई लोगों को झकझोर दिया। प्रधानमंत्री के गुजरने वाले रास्तों पर मौजूद गरीबों की झोपड़ियों को कपड़ों और पर्दों से ढक दिया गया। बनारस रेलवे स्टेशन के आसपास प्रशासन ने बांस और बल्ली लगाकर इन झुग्गियों को छिपाने का पूरा इंतजाम किया।

गरीबों की आवाज़ फिर गई पर्दे के पीछे

यह दृश्य देश की उस सच्चाई को सामने लाता है जो अक्सर बड़े सरकारी आयोजनों के समय पर्दे के पीछे धकेल दी जाती है। प्रशासन ने जहां प्रधानमंत्री के स्वागत में मार्ग को सजाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, वहीं सड़क किनारे रहने वाले गरीब परिवारों की दुर्दशा पर किसी का ध्यान नहीं गया। झोपड़ियों के भीतर रहने वाले परिवार पुराने फटे कपड़ों में जीवन गुजार रहे हैं, लेकिन उनकी वास्तविकता को छुपाने के लिए केवल कुछ घंटों में नए कपड़ों से अस्थायी दीवार खड़ी कर दी गई। सवाल यह है कि क्या चमचमाती तैयारियों के बीच इन परिवारों का अस्तित्व ही देश की छवि पर बोझ माना जा रहा है?

सरकारी व्यवस्था पर गंभीर सवाल

यह घटना न केवल वाराणसी बल्कि पूरे देश की प्रशासनिक सोच पर सवाल खड़ा करती है। हर बार जब किसी मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति का दौरा होता है, तो स्थानीय प्रशासन गरीबों की बस्तियों को ढकने में जुट जाता है, मानो गरीबी दिखाना देश की छवि को धूमिल करता हो। लेकिन यही प्रशासन उन परिवारों की मूलभूत जरूरतों घर, पानी, बिजली और रोजगार को सालों तक पूरा नहीं कर पाता। सवाल यह भी उठता है कि सरकारी फंड, जो जनता की भलाई के लिए है, वह इन दिखावटी तैयारियों में तुरंत कैसे जारी हो जाता है, जबकि जरूरतमंदों की मदद में महीनों और वर्षों लग जाते हैं।

बदलाव की ज़रूरत और संवेदनशीलता की पुकार

यह वाकया इस बात की याद दिलाता है कि भारत को केवल चमकदार तैयारियों से नहीं, बल्कि संवेदनशील शासन व्यवस्था से सजना होगा। प्रधानमंत्री या किसी भी जननेता के कार्यक्रम को जनता की सच्चाई से अलग नहीं किया जा सकता। अब समय आ गया है कि सरकारें और प्रशासन इस मानसिकता को बदलें गरीबी को छुपाने की नहीं, उसे मिटाने की जरूरत है। जो पर्दे आज सड़क किनारे की झोपड़ियों पर डाले गए, वे केवल कपड़े नहीं हैं, बल्कि उन लाखों आवाज़ों पर खींचे गए परदे हैं, जो अब भी अपने हिस्से की रोशनी और सम्मान की प्रतीक्षा में हैं।।

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