“सम्राट चौधरी पर हत्या के आरोप, फिर भी सत्ता में क्यों?” : प्रशांत किशोर

टेन न्यूज नेटवर्क

National News (02/11/2025): बिहार की राजनीति में उस समय हलचल मच गई जब जन सुराज अभियान के संस्थापक प्रशांत किशोर ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से सीधा सवाल पूछ लिया। किशोर ने कहा कि पत्रकारों को सिर्फ विपक्ष से ही नहीं, बल्कि सत्ता में बैठे नेताओं से भी सवाल पूछने चाहिए। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या पत्रकारिता अब इतनी कमजोर हो चुकी है कि बड़े नेताओं से जवाब मांगने की हिम्मत नहीं बची? उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, “आपने कभी अमित शाह से यह क्यों नहीं पूछा कि बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी पर हत्या और नरसंहार जैसे गंभीर आरोप लग चुके हैं, तो क्या ऐसे व्यक्ति को राज्य का दूसरा सबसे बड़ा पद देना उचित है?”

प्रशांत किशोर ने कहा कि अगर कोई पत्रकार ऐसा सवाल पूछता तो वह पत्रकारिता के नैतिक कर्तव्य को निभाता, लेकिन आज मीडिया का बड़ा हिस्सा सत्ता से सवाल करने से डरता है या फिर सत्ता की दलाली में लग गया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अगर बिक जाएगा तो जनता की आवाज़ कौन उठाएगा?” उनके इस बयान ने न सिर्फ बिहार, बल्कि पूरे देश में मीडिया की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर बहस छेड़ दी।

किशोर ने अपने बयान में यह भी कहा कि जन सुराज पार्टी ने जिन 243 उम्मीदवारों को टिकट दिया है, उनमें अधिकतर समाजसेवी, शिक्षित और ईमानदार लोग हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि हर पार्टी की तरह उनकी पार्टी में भी 10-12 ऐसे उम्मीदवार हो सकते हैं जो आदर्श न हों, लेकिन बहुमत अच्छे लोगों का है। उन्होंने कहा, “मैं पहला नेता हूँ जो अपनी गलती मान रहा हूँ। लेकिन सवाल यह है कि क्या बीजेपी, जेडीयू या एनडीए के नेताओं से कोई यह पूछेगा कि उन्होंने रेपिस्ट, बालू माफिया और शराब माफिया को टिकट क्यों दिया?”

इसके साथ ही उन्होंने भोजपुरी अभिनेता और जन सुराज प्रत्याशी रितेश पांडे के समर्थन में कहा कि उनकी छवि भोजपुरी इंडस्ट्री में अश्लील गाने गाने वालों जैसी नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर किसी ने उनके दो गाने अशोभनीय बताए हैं तो वह गलती वे स्वीकार करते हैं, लेकिन इससे बड़े अपराधों पर चुप्पी साधना दोगलापन है। किशोर ने मीडिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि “आप रितेश पांडे के दो गानों पर तो बहस करेंगे, लेकिन किसी माफिया या हत्यारे उम्मीदवार पर सवाल पूछने की हिम्मत नहीं करेंगे — यही लोकतंत्र की सबसे बड़ी विडंबना है।”

किशोर का यह बयान न केवल सियासी हलकों में गूंजा, बल्कि सोशल मीडिया पर भी वायरल हो गया। समर्थकों का कहना है कि उन्होंने पत्रकारिता की असली जिम्मेदारी को याद दिलाया है, जबकि विरोधियों ने इसे सिर्फ चुनावी रणनीति बताया। लेकिन इतना तय है कि प्रशांत किशोर के इस बयान ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है — क्या आज की पत्रकारिता सत्ता से सवाल पूछने की ताकत खो चुकी हैl


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