भारत में बढ़ती फोन लत: मानसिक, शारीरिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर गंभीर संकट

टेन न्यूज नेटवर्क

National News (30/10/2025): भारत में बढ़ती फोन लत अब एक गंभीर सामाजिक और स्वास्थ्य समस्या बनती जा रही है। स्मार्टफोन के बढ़ते उपयोग ने जहां जीवन को आसान बनाया है, वहीं इसने लोगों, खासकर युवाओं और किशोरों के मानसिक, शारीरिक और सामाजिक जीवन को गहराई से प्रभावित किया है। हालिया अध्ययनों के अनुसार, देश में लगभग 40 से 45 प्रतिशत युवा वर्ग फोन की लत से प्रभावित हैं। अत्यधिक मोबाइल उपयोग से अवसाद (Depression), चिंता (Anxiety), एकाकीपन (Loneliness) और आत्म-नियंत्रण की कमी जैसी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार स्क्रीन देखने से ध्यान केंद्रित करने की क्षमता घट रही है और नींद की गुणवत्ता पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है।

फोन की लत अब मानसिक संतुलन को भी प्रभावित कर रही है। लंबे समय तक सोशल मीडिया या वीडियो देखने से मस्तिष्क में तनाव और उत्तेजना का स्तर बढ़ता है। इसके कारण युवा वास्तविक बातचीत से दूर होते जा रहे हैं, जिससे सामाजिक अलगाव बढ़ रहा है। कई मामलों में यह स्थिति डिजिटल डिप्रेशन में बदल रही है, जहां व्यक्ति बिना फोन के खुद को असहज या अधूरा महसूस करता है।

स्मार्टफोन की अधिकता केवल मानसिक नहीं, बल्कि शारीरिक रूप से भी हानिकारक सिद्ध हो रही है। लगातार फोन पर झुके रहने से गर्दन और रीढ़ की हड्डी में दर्द, आंखों की कमजोरी, सिरदर्द और नींद की कमी जैसी शिकायतें आम हो गई हैं। चिकित्सकों का कहना है कि छोटे बच्चों में अत्यधिक स्क्रीन टाइम से मोटापा, एकाग्रता की कमी और सामाजिक व्यवहार में गिरावट जैसी समस्याएं सामने आ रही हैं।

फोन की लत का असर परिवारों पर भी स्पष्ट रूप से दिखने लगा है। पहले जहां परिवार के सदस्य साथ बैठकर बातचीत किया करते थे, वहीं अब हर व्यक्ति अपने मोबाइल में व्यस्त रहता है। इससे भावनात्मक जुड़ाव में कमी आ रही है और पारिवारिक रिश्तों में दूरी बढ़ रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि डिजिटल जुड़ाव ने इंसानी रिश्तों की गर्मजोशी को ठंडा कर दिया है।

विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि शुरुआती उम्र में अत्यधिक मोबाइल उपयोग बच्चों के मस्तिष्क विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। इससे बोलने में देरी, ध्यान की कमी और सीखने की क्षमता में गिरावट जैसी समस्याएं देखी जा रही हैं। यह स्थिति आने वाले समय में बच्चों के संज्ञानात्मक (Cognitive) विकास के लिए चुनौती बन सकती है।

फोन की लत का सबसे बड़ा कारण आदतन उपयोग है। लोग बिना किसी विशेष उद्देश्य के बार-बार फोन उठाने लगते हैं। इसके अलावा, माता-पिता की स्क्रीन आदतें बच्चों के व्यवहार को सीधे प्रभावित करती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि माता-पिता खुद अनुशासित ढंग से फोन का उपयोग करें, तो बच्चों में भी संतुलन की प्रवृत्ति विकसित की जा सकती है।

भारत सरकार ने इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में डिजिटल डी-एडिक्शन सेंटर और जागरूकता अभियान शुरू किए गए हैं। कई स्कूलों ने “नो-फोन ज़ोन” नीति लागू की है ताकि छात्रों को वास्तविक सामाजिक गतिविधियों से जोड़ा जा सके। साथ ही, स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी व्यवहारिक लत (Behavioural Addiction) पर अनुसंधान और उपचार को बढ़ावा देने की दिशा में कदम उठाए हैं।

मनोवैज्ञानिकों का सुझाव है कि फोन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की बजाय संतुलित उपयोग को बढ़ावा देना जरूरी है। परिवारों को निश्चित समय पर “फोन-फ्री टाइम” तय करना चाहिए और बच्चों को खेल, पढ़ाई, कला या सामुदायिक कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए प्रेरित करना चाहिए। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि समाज ने समय रहते कदम नहीं उठाए, तो यह डिजिटल निर्भरता भविष्य में मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकती हैंl

फोन एक उपयोगी साधन है, लेकिन इसका दुरुपयोग समाज के लिए साइलेंट डिज़ास्टर बनता जा रहा है। भारत जैसे युवा देश के लिए यह चेतावनी है कि तकनीक का उपयोग संतुलन, अनुशासन और सजगता के साथ किया जाए। यदि समय रहते सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाली पीढ़ियां डिजिटल लत के दुष्चक्र में उलझ सकती हैं।

डिस्क्लेमर: यह लेख / न्यूज आर्टिकल सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध जानकारी और प्रतिष्ठित / विश्वस्त मीडिया स्रोतों से मिली जानकारी पर आधारित है।यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। पाठक कृपया स्वयं इस की जांच कर सूचनाओं का उपयोग करे ॥


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