National News (30/10/2025): भारत के उद्योग जगत और वैश्विक राजनीति के केंद्र में अदाणी समूह एक बार फिर सुर्खियों में है। हाल ही में अमेरिकी समाचार पत्र द वॉशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित रिपोर्ट और इसके बाद सामने आए अमेरिकी मीडिया खुलासों ने न केवल भारत के वित्तीय संस्थानों की पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न लगाए हैं, बल्कि अदाणी समूह के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क और अमेरिकी प्रशासन के साथ उसके संबंधों पर भी नई बहस छेड़ दी है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अधीन वित्तीय सेवा विभाग (Department of Financial Services) ने भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) को अदाणी समूह की कंपनियों में लगभग 3.9 अरब डॉलर (करीब ₹33,000 करोड़) निवेश करने का निर्देश दिया था। बताया गया कि मई 2025 में जारी प्रस्ताव में एलआईसी को अदाणी समूह के कॉरपोरेट बॉन्ड्स में 3.4 अरब डॉलर और इक्विटी निवेश के रूप में 50.7 करोड़ डॉलर लगाने की सिफारिश की गई थी।
एलआईसी ने इन दावों को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि संस्था एक स्वतंत्र निकाय है, और उसके सभी निवेश बोर्ड द्वारा स्वीकृत नीतियों के तहत किए जाते हैं। निगम ने कहा कि “वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट भ्रामक, निराधार और तथ्यों से परे है।”
अदाणी समूह ने भी इस रिपोर्ट को “तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का प्रयास” बताते हुए कहा कि यह उसकी साख को धूमिल करने की साजिश है। समूह ने स्पष्ट किया कि उसकी सभी कंपनियाँ पारदर्शी और वैधानिक ढांचे में काम करती हैं।
इसी बीच, मई 2025 में रॉयटर्स और ब्लूमबर्ग की रिपोर्टों ने एक और खुलासा किया — अदाणी समूह के प्रतिनिधियों ने अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों से मुलाकात की थी। इस बैठक का उद्देश्य अमेरिकी Securities and Exchange Commission (SEC) और अन्य एजेंसियों द्वारा चलाए जा रहे $265 मिलियन डॉलर के घूसखोरी और धोखाधड़ी मामलों को समाप्त करवाने का प्रयास बताया गया।
इन रिपोर्टों के अनुसार, अदाणी समूह पर आरोप है कि उसने भारत में ऊर्जा समझौतों के दौरान अवैध भुगतान किए और अमेरिकी निवेशकों को वास्तविक जानकारी छिपाई। वहीं, ट्रंप प्रशासन के कुछ नीतिगत बदलावों से विदेशी भ्रष्टाचार कानूनों के प्रवर्तन पर प्रभाव पड़ने की संभावना जताई गई, जिससे यह विवाद और गहराया।
भारत सरकार के वित्त मंत्रालय ने अब तक इस विषय पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। एलआईसी और अदाणी समूह दोनों ने अपने-अपने स्तर पर आरोपों को खारिज किया है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि यदि रिपोर्टों में किए गए दावे सत्य सिद्ध होते हैं, तो यह कॉर्पोरेट गवर्नेंस, पारदर्शिता और सार्वजनिक धन के उपयोग से जुड़ा गंभीर मामला बन सकता है।
यह पूरा विवाद अब “Adani vs Trump” के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें एक ओर भारतीय कॉरपोरेट समूह अमेरिकी नियामक दबावों से जूझ रहा है, तो दूसरी ओर वैश्विक वित्तीय संस्थानों में भारत की छवि और पारदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं।
यह मामला केवल एक व्यावसायिक विवाद नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय निवेश नीतियों, नियामक संस्थाओं और राजनीतिक प्रभावों के जटिल समीकरण को भी उजागर करता है।
वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट और ट्रंप प्रशासन से जुड़ी खबरों ने अदाणी समूह को एक बार फिर वैश्विक सुर्खियों में ला दिया है। भारत के भीतर यह बहस तेज हो गई है कि क्या सार्वजनिक संस्थानों पर कॉर्पोरेट प्रभाव बढ़ रहा है, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह सवाल उठ रहा है कि क्या भारत की वित्तीय संस्थाओं की स्वतंत्रता और पारदर्शिता पर भरोसा कायम रह पाएगा।
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