मोकामा में फिर गरमाई सियासत: सूरजभान बनाम अनंत सिंह- लौट आया 2000 का बाहुबली दौर!
रंजन अभिषेक, संवाददाता, टेन न्यूज नेटवर्क
Bihar News (13 October 2025): अगर आप बिहार की राजनीति और अपराध के गठजोड़ को समझना चाहते हैं, तो आपको 90 के दशक में लौटना होगा। उस दौर में बिहार में बाहुबलियों का राज था। छोटन शुक्ला, मुन्ना शुक्ला, भुटकुन शुक्ला और बृजबिहारी प्रसाद जैसे नाम सत्ता के गलियारों में गूंजते थे। इन्हीं के बीच एक नाम ऐसा भी था जिसकी तूती पटना से लेकर गोरखपुर तक बोलती थी — वह नाम था सूरजभान सिंह।
5 मार्च 1965 को मोकामा के एक किसान परिवार में जन्मे सूरजभान सिंह ने राजनीति में कदम रखने से पहले बाहुबली के रूप में पहचान बनाई। उनके खिलाफ कई आपराधिक मुकदमे दर्ज रहे, लेकिन उन्होंने राजनीति को अपनी नई राह बना ली। साल 2000 में उन्होंने मोकामा विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और राजद के कद्दावर नेता दिलीप सिंह को भारी मतों से हराया। दिलीप सिंह, बाहुबली नेता अनंत सिंह के बड़े भाई और बिहार सरकार में मंत्री रह चुके थे। उस समय सूरजभान सिंह पर करीब 50 केस दर्ज थे, बावजूद इसके जनता ने उन्हें खुले दिल से समर्थन दिया।
इसके बाद सूरजभान सिंह लोजपा (लोक जनशक्ति पार्टी) से सांसद बने और अपने क्षेत्र में मजबूत पकड़ बनाए रखी। हालांकि, बृजबिहारी प्रसाद हत्याकांड में दोषी ठहराए जाने के बाद उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया गया। इसके बाद उन्होंने राजनीति में अपने परिवार को आगे बढ़ाया। उनकी पत्नी वीणा देवी और भाई चंदन सिंह दोनों सांसद बने और सूरजभान सिंह ने खुद बैकफुट से रहकर भी राजनीति की दिशा तय की।
अब 2025 में मोकामा की सियासत एक बार फिर उसी पुराने रंग में रंगती नजर आ रही है। हाल ही में अनंत सिंह ने सूरजभान सिंह को लेकर तीखी टिप्पणी की, जिसे सूरजभान ने निजी चुनौती के रूप में लिया है। चर्चाएं तेज हैं कि सूरजभान अपने परिवार के किसी सदस्य को राजद (RJD) के टिकट पर मोकामा से चुनाव लड़वा सकते हैं। अगर ऐसा हुआ, तो साल 2000 की कहानी दोहराई जा सकती है — जब सूरजभान ने दिलीप सिंह को हराकर बाहुबली राजनीति की नई पटकथा लिखी थी।
अब मुकाबला सिर्फ दो नेताओं के बीच नहीं, बल्कि दो सियासी धाराओं के बीच है — एक तरफ पुरानी बाहुबली राजनीति की छवि, और दूसरी तरफ नई सियासी रणनीति की चालें। मोकामा की यह लड़ाई इस बार सिर्फ सीट की नहीं, साख की लड़ाई होगी।
इतिहास अक्सर खुद को दोहराता है — और लगता है, मोकामा की सियासत भी यही करने जा रही है। अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या सूरजभान सिंह खुद फिर से चुनावी रणभूमि में उतरते हैं या अपने किसी करीबी को मैदान में भेजते हैं। जो भी हो, बिहार की राजनीति में मोकामा का महाभारत अब शुरू हो चुका है।।
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