तिहाड़ जेल में अफजल गुरु और मकबूल भट्ट की कब्र हटाने की मांग पर हाइकोर्ट ने क्या कहा?
टेन न्यूज़ नेटवर्क
New Delhi News (24/09/2025): दिल्ली हाई कोर्ट ने तिहाड़ जेल परिसर में दफन किए गए आतंकी अफजल गुरु और मकबूल भट्ट की कब्रों को हटाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका विश्व वैदिक सनातन संघ की ओर से दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि दोनों की कब्रों को भारत की भूमि से हटाकर किसी गुप्त स्थान पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए। अदालत ने इस पर सुनवाई से इनकार करते हुए स्पष्ट किया कि अंतिम संस्कार का सम्मान किया जाना चाहिए और वर्षों बाद ऐसे मामलों को उठाना उचित नहीं है।
कोर्ट ने उठाए मौलिक अधिकारों पर सवाल
चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव की बेंच ने याचिकाकर्ता से सीधे सवाल किए कि आखिर इन कब्रों से उनके कौन से मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है। अदालत ने कहा कि केवल किसी संगठन की इच्छा के आधार पर जनहित याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती। कोर्ट ने दो टूक कहा कि कानून और संवैधानिक आधार पर ही कोई फैसला लिया जा सकता है, महज भावनात्मक या वैचारिक दलीलों से नहीं।
याचिकाकर्ता का तर्क और अदालत की आपत्ति
याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि अफजल गुरु और मकबूल भट्ट की कब्रें जेल को ‘कट्टरपंथी तीर्थस्थल’ बना रही हैं। उनका कहना था कि अपराधी और आतंकी विचारधारा से प्रभावित लोग जेल आने पर इन कब्रों पर श्रद्धांजलि देते हैं, जिससे आतंकवाद का महिमामंडन होता है। इस पर कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि तर्क केवल कानूनी पहलुओं पर आधारित होने चाहिए, न कि भावनात्मक अपील पर।
2013 में हुआ था अफजल गुरु का दफन
दिल्ली हाई कोर्ट ने यह भी याद दिलाया कि अफजल गुरु को 2013 में फांसी दी गई थी और उसी समय जेल प्रशासन ने उसे जेल परिसर में दफनाने का निर्णय लिया था। अदालत ने कहा कि यह फैसला सरकार और अधिकारियों की सहमति से लिया गया था, जिसे अब 12 साल बाद चुनौती नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने टिप्पणी की, “किसी के अंतिम संस्कार का सम्मान होना चाहिए, चाहे वह दोषी ही क्यों न हो।”
जेल परिसर को लेकर कोर्ट का स्पष्टीकरण
अदालत ने इस तर्क को भी खारिज किया कि कब्रों की वजह से जेल ‘सार्वजनिक स्थल’ की तरह इस्तेमाल हो रहा है। कोर्ट ने साफ किया कि तिहाड़ जेल राज्य की संपत्ति है और इसका इस्तेमाल केवल कैदियों को रखने के लिए होता है। ऐसे में यह कहना कि जेल परिसर कट्टरपंथी गतिविधियों का केंद्र बन गया है, महज आरोप है, जिसके समर्थन में कोई ठोस सबूत अदालत के सामने पेश नहीं किया गया।
याचिका वापस, मामला बंद
कड़ी सुनवाई के बाद जब कोर्ट ने याचिकाकर्ता के तर्कों को गैरकानूनी और अव्यावहारिक बताया, तो याचिकाकर्ता ने खुद ही अपनी याचिका वापस ले ली। इसके साथ ही मामला खत्म हो गया। अदालत ने दोहराया कि आतंकियों को मिले दंड और उनके अंतिम संस्कार के बाद लिए गए निर्णयों को बार-बार चुनौती देना न्यायिक समय की बर्बादी है। इस फैसले के बाद साफ हो गया है कि अफजल गुरु और मकबूल भट्ट की कब्रें फिलहाल तिहाड़ जेल परिसर से नहीं हटेंगी।
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