National News (22 September 2025): सोशल मीडिया पर इन दिनों एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें स्वामी सच्चिदानंद जी महाराज नामक संत ने राधा और श्रीकृष्ण के संबंधों को लेकर ऐसा बयान दिया है, जिसके बाद एक नई बहस छिड़ गई है। स्वामी जी ने दावा किया कि किसी भी हिंदू धर्मग्रंथ वेद, उपनिषद या महाभारत में ‘राधा’ का नाम नहीं मिलता। उनके अनुसार महाभारत जैसी महाग्रंथ में भी राधा का कोई उल्लेख नहीं है और भागवताचार्य भी इस बात का प्रमाण नहीं दे सकते। उन्होंने कहा कि राधा का नाम केवल ब्रह्मवैवर्त पुराण जैसे अपेक्षाकृत नए ग्रंथों में मिलता है, जिसे वे मुगल काल का रचना बताते हैं। स्वामी सच्चिदानंद के मुताबिक इसी ग्रंथ में राधा और कृष्ण के बीच पाँच तरह के संबंध बताए गए हैं, कहीं राधा को उनकी मामी, कहीं पत्नी, कहीं प्रेमिका, कहीं पुत्री और कहीं आराध्य शक्ति कहा गया है। उनका तर्क है कि ये आपस में विरोधाभासी कथन हैं और इन्हीं को बाद में बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया गया।
इतिहासकारों और धार्मिक विद्वानों की राय भी इस मुद्दे पर दिलचस्प है। विशेषज्ञ मानते हैं कि वास्तव में प्राचीनतम ग्रंथों ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और महाभारत में श्रीकृष्ण की लीलाओं, गोपियों के साथ रास और वृंदावन की कथाओं का विस्तृत वर्णन तो मिलता है, लेकिन राधा का नाम प्रत्यक्ष रूप से नहीं मिलता। हालांकि, मध्यकालीन काल में लिखे गए ब्रह्मवैवर्त पुराण और 12वीं शताब्दी के कवि जयदेव द्वारा रचित गीत गोविंद में राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम का विस्तार से उल्लेख मिलता है। इसके बाद भक्ति आंदोलन के दौर में संत सूरदास, मीरा और चैतन्य महाप्रभु जैसे महापुरुषों ने राधा को कृष्ण भक्ति का सर्वोच्च प्रतीक मानते हुए उनके नाम को अमर बना दिया।
इतिहास के साथ-साथ मुस्लिम इतिहासकारों और लोककथाओं में भी राधा का उल्लेख अलग-अलग रूपों में मिलता है। कहीं उन्हें कृष्ण की मामी कहा गया है, कहीं बेटी, कहीं पत्नी और कहीं प्रेमिका। हालांकि, धार्मिक विशेषज्ञ मानते हैं कि राधा-कृष्ण की कथा को ऐतिहासिक दृष्टि से देखने के बजाय आध्यात्मिक और भक्ति परंपरा की दृष्टि से समझा जाना चाहिए। राधा को ‘भक्ति’ और कृष्ण को ‘परमात्मा’ का प्रतीक माना गया है। यही कारण है कि चाहे शास्त्रों में प्रत्यक्ष उल्लेख पर मतभेद हो, लेकिन भक्तों के हृदय में राधा-कृष्ण की उपासना सर्वोच्च स्थान रखती है।
कहा जा सकता है कि राधा का नाम प्राचीनतम वेदों और महाभारत में नहीं मिलता, परंतु मध्यकालीन भक्ति साहित्य ने उन्हें कृष्ण भक्ति की आत्मा के रूप में स्थापित किया। राधा केवल एक पात्र नहीं, बल्कि भक्ति और प्रेम का वह अनूठा प्रतीक हैं, जिसने भारतीय संस्कृति और अध्यात्म को सदियों से प्रभावित किया है।
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