जब राजेन्द्र नगर की रामलीला में श्रीराम बने थे शाहरुख़ खान

रंजन अभिषेक, संवाददाता, टेन न्यूज नेटवर्क

New Delhi News (21 September 2025): दिल्ली को आज देश की रामलीला राजधानी कहा जाता है, जहाँ हर साल 600 से अधिक रामलीलाएँ मंचित होती हैं। यह परंपरा न सिर्फ़ धार्मिक आस्था बल्कि दिल्ली की बहुलतावादी पहचान का प्रतीक भी है। दिलचस्प बात यह है कि बॉलीवुड के सुपरस्टार शाहरुख़ खान ने भी अपने करियर की शुरुआत यहीं की थी। सत्तर के दशक में, नई राजेन्द्र नगर की रामलीला में उन्होंने श्रीराम का किरदार निभाया था। राजेन्द्र नगर, करोल बाग और पंजाबी बाग जैसे इलाकों में शरण लिए पंजाबी शरणार्थियों ने इन रामलीलाओं की नींव रखी थी। वहीं अभिनेता गुलशन ग्रोवर ने भी त्रिनगर रामलीला में भाग लिया था।

पुरानी दिल्ली की रामलीलाएँ आज भी अपनी ऐतिहासिक छाप लिए हुए हैं। लालकिला परिसर की लवकुश रामलीला (1979), श्री धार्मिक लीला और नव श्री धार्मिक रामलीला (1953) अपनी शास्त्रीय शैली और खड़ीबोली संवादों के लिए मशहूर हैं। इन आयोजनों की सबसे बड़ी खासियत है कि इनके प्रबंधन में मुस्लिम सदस्य भी शामिल होते हैं। रामपुर और सहारनपुर के मुस्लिम कारीगर आज भी रावण जैसे पुतलों का निर्माण करते हैं। नेहरू, इंदिरा गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक यहाँ के मंच पर अतिथि बन चुके हैं।

आजादी के बाद दिल्ली में जनसंख्या तेज़ी से बढ़ी। पाकिस्तान से आए शरणार्थियों और यूपी, बिहार, पंजाब व उत्तराखंड से आए प्रवासियों ने रामलीला को अपने सांस्कृतिक अस्तित्व और सामुदायिक एकजुटता का माध्यम बनाया। विभाजन के समय साम्प्रदायिक तनाव के चलते कुछ रामलीलाएँ रद्द भी हुईं, लेकिन रामलीला मैदान इस परंपरा का केंद्र बना। लाला श्रीराम जैसे उद्योगपतियों ने इसमें आर्थिक सहयोग कर नवीन प्रयोग भी जोड़े।

दिल्ली में क्षेत्रीय प्रवासियों ने अपनी-अपनी सांस्कृतिक छाप छोड़ी। उत्तराखंड से आए लोगों ने कुमाऊनी और गढ़वाली रामलीलाओं को जीवित रखा, जिनमें रामचरितमानस के दोहों और लोकगीतों का समावेश होता है। पूर्वी यूपी और बिहार से आए भोजपुरी प्रवासियों ने लक्ष्मी नगर, विनोद नगर और मयूर विहार में अपनी ठेठ भोजपुरी शैली की रामलीलाएँ आरंभ कीं। इसी कड़ी में पहली बार द्वारका सेक्टर-13 में सम्पूर्ण बाल रामलीला का मंचन पूरी तरह भोजपुरी में होने जा रहा है।

दिल्ली के नए सांस्कृतिक केंद्रों—पिटमपुरा, अशोक विहार और पश्चिम विहार—में भी विशाल रामलीलाओं का आयोजन होता है। 1992 से पीतमपुरा की राम-लखन रामलीला अनूठी पहल के लिए जानी जाती है, जिसमें बच्चों के लिए क्विज़ प्रतियोगिताएँ भी होती हैं।

दिल्ली के सिंधी समाज ने भी रामलीला को अपनी तरह से अपनाया। झूलेलाल मंदिरों और कम्युनिटी हॉल में वे रामकथा का आयोजन करते हैं। यहाँ युवाओं की सक्रिय भागीदारी रहती है। एक समय सिंधी बहुल इलाकों में रामलीला का मंचन भी होता था।

हालाँकि हिमालयन आर्ट सेंटर द्वारा आयोजित कुमाऊनी रामलीला अब बंद हो चुकी है, जिसे प्रसिद्ध रंगकर्मी मोहन उप्रेती ने 1968 में शुरू किया था। नई पीढ़ी उससे जुड़ नहीं पाई।

आज की तारीख़ में दिल्ली की रामलीला सिर्फ़ धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि इसकी बहुलतावादी संस्कृति का आईना है। भोजपुरी, गढ़वाली, पंजाबी, सिंधी और पुरानी दिल्ली की शास्त्रीय रामलीलाओं का संगम इसे खास बनाता है। और इस सफ़र में यह तथ्य हमेशा याद रखा जाएगा कि कभी दिल्ली की ही मिट्टी पर खड़े मंच से ‘किंग खान’ शाहरुख़ खान ने भी श्रीराम का रूप धारण किया था।।


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