दिल्ली विधानसभा चुनाव: करीब दो दशक के सियासी समीकरण पर क्या बोले वरिष्ठ पत्रकार विपिन शर्मा
टेन न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली (30 दिसंबर 2024): दिल्ली विधानसभा चुनाव के मद्देनजर टेन न्यूज़ की विशेष कवरेज में शहर के नागरिकों और विशेषज्ञों से उनकी राय जानने का सिलसिला जारी है। जनता के मुद्दों और राजनीतिक परिदृश्य को समझते हुए टेन न्यूज़ ने विभिन्न क्षेत्रों के बुद्धिजीवियों और समाज के प्रतिनिधियों से बातचीत की। इसी कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार विपिन शर्मा ने दिल्ली में विकास कार्यों, राजनीतिक दलों की रणनीतियों और त्रिकोणीय मुकाबलों पर अपनी बेबाक राय साझा की।
वरिष्ठ पत्रकार विपिन शर्मा ने टेन न्यूज़ से खास बातचीत में कहा कि, “इसमें कोई दो राय नहीं है कि दिल्ली का चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि दिल्ली न केवल देश की राजधानी है, बल्कि देश का धड़कन भी है। 70 विधानसभा सीटों पर होने वाला यह मुकाबला बहुत ही दिलचस्प होगा।
अगर हम तीनों मुख्य राजनीतिक दलों की बात करें, तो कांग्रेस एक स्वर्णिम इतिहास वाली पार्टी रही है। 1998 से 2013 तक दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित थीं, और प्रदेश अध्यक्ष चौधरी प्रेम सिंह जैसे नेता थे, जिन्होंने विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया। चौधरी प्रेम सिंह ने अपने विधानसभा क्षेत्र अंबेडकर नगर में 50 वर्षों तक चुनाव नहीं हारा। उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज है। उस समय कांग्रेस ने जनहित में कार्य करते हुए एक अलग पहचान बनाई थी।
लेकिन कांग्रेस पर यह बात भी लागू होती है कि आपसी मतभेद और वरिष्ठ नेताओं की महत्वाकांक्षाओं के चलते पार्टी कमजोर होती गई। इसके बावजूद कांग्रेस ने हमेशा जनहित में काम किया। हालांकि, एक दौर ऐसा भी आया जब कांग्रेस का विधानसभा और लोकसभा चुनावों में खाता तक नहीं खुला। अब कांग्रेस अपनी पुरानी जमीन तलाश रही है। हाल ही में संपन्न 2024 के लोकसभा चुनावों के नतीजों ने कांग्रेस संगठन में नई ऊर्जा का संचार किया है।
आम आदमी पार्टी की बात करें, तो उसे दिल्ली की जनता ने विधानसभा चुनावों में भारी बहुमत दिया। वहीं, भाजपा ने हाल ही में महाराष्ट्र और हरियाणा में जीत दर्ज कर अपनी संगठनात्मक ताकत को मजबूत किया है। यही कारण है कि इस बार दिल्ली में मुकाबला त्रिकोणीय होने जा रहा है।
अगर चुनाव के बाद किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है, तो क्या कांग्रेस आम आदमी पार्टी को समर्थन देगी? यह एक संभावित सवाल है। चुनाव के समय संभावनाओं की कोई कमी नहीं होती। लोकतंत्र के इस महापर्व में हम सब एक दिलचस्प चुनाव के साक्षी बनने वाले हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, जिनकी कमी आज पूरा देश महसूस करता है, ने गठबंधन की राजनीति को लेकर एक ऐतिहासिक बात कही थी—’Compulsion of Coalition’ (गठबंधन की मजबूरियां)। जब स्पष्ट बहुमत किसी दल को नहीं मिलता, तो दूसरे दल से हाथ मिलाना पड़ता है ताकि सरकार का गठन हो सके। मैं इस स्टेटमेंट में एक और लाइन जोड़ना चाहूंगा—’सहूलियत की राजनीति’।
हाल ही में पंजाब के लोकसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ा। वहीं दिल्ली में कांग्रेस दो धड़ों में बंटी नजर आती है। एक धरा चाहता है कि आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन हो, जबकि वरिष्ठ नेताओं का एक गुट इसके खिलाफ है।
भाजपा की रणनीति और मुख्यमंत्री का चेहरा:
चुनाव में दो चीजें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं, रणनीति और आत्मविश्वास। इस समय तीनों राजनीतिक दलों का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर है, और वे अपनी-अपनी रणनीति बनाकर चुनावी मैदान में उतर रहे हैं।
आगे उन्होंने कहा कि, कस्तूरबा नगर विधानसभा क्षेत्र का निवासी हूं, और यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार अभिषेक दत्त हैं। मेरी राय में नेता वही है जिसे आम जनता की स्वीकृति मिले और जो जमीन से जुड़ा हो। नेता ऐसा न हो जो जनता से मिलने से मना करे या अपनी बातों से मुकर जाए।
पहले के चुनाव बिजली, सड़क, और पानी के मुद्दों पर लड़े जाते थे, लेकिन अब आम जनता की उम्मीदें बढ़ गई हैं। लोग चाहते हैं कि उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं, उत्कृष्ट शिक्षा मॉडल, और अन्य बुनियादी सुविधाएं मिलें।
वोट बैंक साधने के चक्कर में राजनीतिक दल अतिक्रमण हटाने और अवैध घुसपैठ जैसे ज्वलंत मुद्दों को भूल जाते हैं। अगर दल जनहित में काम करेंगे, तो एक अच्छा संदेश जाएगा। केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का खेल बंद होना चाहिए। आयुष्मान योजना और नगर निगम चुनावों के नतीजों को लेकर जिस तरह का घमासान मचा हुआ है, वह जनहित के लिए सही नहीं है।”
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