“जो अपनी संस्कृति को नहीं जानते, वे वास्तव में भारतीय नहीं हैं” : Padma Shri Pratibha Prahlad
टेन न्यूज नेटवर्क
New Delhi News (08/09/2025): भरतनाट्यम की प्रसिद्ध नृत्यांगना, शिक्षिका, कला प्रशासक और शोधकर्ता प्रतिभा प्रह्लाद ने भारतीय कला, संस्कृति, शिक्षा व्यवस्था और कलाकारों की उपेक्षा को लेकर टेन न्यूज़ से की विशेष बातचीत। भरतनाट्यम नृत्य की दिग्गज, शिक्षिका, कला समीक्षक, शोधकर्ता और संस्कृति की संवाहक पद्म श्री प्रतिभा प्रह्लाद आज सिर्फ एक नृत्यांगना भर नहीं, बल्कि एक वैचारिक आंदोलन की अग्रदूत बन चुकी हैं। उनका मानना है कि भारतीय संस्कृति केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय पहचान की आत्मा है, और इसी सोच के साथ वह वर्षों से संस्कृति के संरक्षण और प्रचार के लिए संघर्षरत हैं।
मैं केवल एक नृत्यांगना नहीं, संस्कृति की उत्तराधिकारी हूँ, संस्कृति ही हमारी पहचान है— प्रतिभा प्रह्लाद
टेन न्यूज़ से विशेष बातचीत में प्रतिभा प्रह्लाद ने कहा, मैं एक भरतनाट्यम नृत्यांगना हूँ, जो गुरु होते हैं, वे सिर्फ शास्त्र नहीं सिखाते, वे जीवन जीने की दिशा देते हैं। जब उनसे पूछा गया कि भरतनाट्यम जैसे शास्त्रीय नृत्य के प्रति युवाओं की रुचि कम क्यों होती जा रही है, तो उन्होंने कहा, देखिए, हमारी संस्कृति ही हमारी असली पहचान है। जो लोग अपनी संस्कृति को नहीं जानते, वे वास्तव में भारतीय नहीं हैं। जब हम भारतीयता की बात करते हैं, तो हमारी भाषाएँ, हमारी कलाएँ, हमारी परंपराएँ — यही तो हमें परिभाषित करती हैं।
अंग्रेजों ने सिर्फ हमारी दौलत नहीं छीनी, हमारी आत्मा पर भी चोट की। उन्होंने हमें मानसिक रूप से गुलाम बना दिया। आज भी हम अपने रंग, अपने पहनावे, अपने खानपान को लेकर संकोच करते हैं। पर हमें समझना होगा कि यही हमारी विरासत है।
प्रतिभा प्रह्लाद ने भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली की भी तीखी आलोचना की। उन्होंने कहा, हमारी शिक्षा व्यवस्था विज्ञान, गणित और नौकरी तक सीमित है। उसमें संस्कृति और कला के लिए कोई जगह नहीं है। समग्र विकास तभी संभव है जब शिक्षा के साथ संस्कृति भी जुड़ी हो। शास्त्रीय नृत्य, संगीत, लोक परंपराएँ, जनजातीय विरासत — इनका क्षरण एक बड़ी त्रासदी है। इतने विशाल देश में हर कला को जान पाना मुश्किल है, लेकिन हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह अपनी संस्कृति के बारे में थोड़ा पढ़े, थोड़ा समझे।
नगरपालिकाएँ हों या राज्य सरकारें, कोई नहीं करता पर्याप्त
जब उनसे भारत में शास्त्रीय कलाओं को लेकर सरकारी प्रयासों के बारे में सवाल किया गया, तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा, चाहे केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, या फिर नगरपालिकाएँ — कोई भी शास्त्रीय कलाओं को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त कार्य नहीं कर रहा है। संस्कृति मंत्रालय का बजट बेहद कम है। और स्थानीय स्तर पर तो स्थिति और भी खराब है।सड़कों की हालत देखिए, और फिर सोचिए कि वे संस्कृति के लिए क्या करेंगे? उन्होंने न हमें मानसिक रूप से सक्षम बनाया, न ही सांस्कृतिक रूप से। यह एक बड़ी विफलता है।
कलाकार सिर्फ नाचने-गाने वाले नहीं, संस्कृति के वाहक हैं
प्रह्लाद ने समाज में कलाकारों के प्रति दृष्टिकोण पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा, हमें सिर्फ नाचने-गाने वाला कह देना अपमानजनक है। हम संस्कृति के संवाहक हैं। हम ही वो माध्यम हैं, जो अपनी विरासत अगली पीढ़ी तक पहुँचा रहे हैं। मूर्त विरासत से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण अमूर्त विरासत होती है — और हम कलाकार उस अमूर्त विरासत का हिस्सा हैं। अगर मैं न रहूँ, तो मेरे शिष्य कैसे सीखेंगे? यही कारण है कि गुरुओं का अस्तित्व बनाए रखना अनिवार्य है। और इसके लिए सिर्फ सरकार नहीं, समाज को भी ज़िम्मेदारी लेनी होगी।
कोविड ने साबित कर दिया — समाज को हमारी परवाह नहीं
कोविड-19 महामारी के समय कलाकारों की स्थिति पर बोलते हुए उन्होंने कहा, कोविड के समय मैंने महसूस किया कि हम समाज के लिए कोई मायने नहीं रखते। सरकार की नजर में हम बस मनोरंजन क्षेत्र हैं। न कोई सहायता मिली, न कोई योजना बनी। लाखों कलाकार थे जो आर्थिक संकट में थे, पर कोई नहीं आया हमारी मदद को।
CSR फंड को भी निजी हितों में बाँट दिया गया
कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) फंड के उपयोग को लेकर प्रतिभा प्रह्लाद ने कहा, 2011 में मैंने खुद संस्कृति मंत्रालय और कॉर्पोरेट मंत्रालय को पत्र लिखा था कि CSR फंड का एक हिस्सा संस्कृति के लिए रखा जाए। उन्होंने इसे स्वीकार किया, पर अब क्या हो रहा है? कंपनियाँ अपनी ही फाउंडेशन बनाकर अपने परिवार के सदस्यों को चला रही हैं और सारा पैसा वहीं जा रहा है। यह संस्कृति का अपमान है।
दिल्ली इंटरनेशनल आर्ट्स फेस्टिवल: अब प्रायोजकों का अभाव
प्रतिभा प्रह्लाद ने बताया कि वह दिल्ली इंटरनेशनल आर्ट्स फेस्टिवल की संस्थापक और महोत्सव निदेशक रही हैं। उन्होंने कहा, हमने इसे 15 साल तक चलाया, बड़े पैमाने पर। पर अब न स्पॉन्सर हैं, न सरकारी सहायता। बड़े-बड़े सार्वजनिक उपक्रम जो पहले समर्थन देते थे, अब आवेदन तक नहीं देखते। कला को चलाने के लिए केवल आयोजन नहीं, रणनीति और स्थायी बजट चाहिए।
प्रतिभा प्रह्लाद का जन्म वर्ष 1962 में हुआ था। वे एक प्रतिष्ठित भरतनाट्यम नृत्यांगना, शिक्षिका, कोरियोग्राफर, कला प्रशासक और TEDx वक्ता हैं। उन्होंने मास कम्युनिकेशन में स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की है और शास्त्रीय कला को जन-जन तक पहुँचाने के लिए विभिन्न मंचों पर सक्रिय रही हैं। वे एक प्रतिभावान लेखिका भी हैं, और उनकी भरतनाट्यम पर आधारित पुस्तक Amazon की टॉप लिस्ट में लगातार 10 वर्षों तक बनी रही, जिसे कई बार पुनः प्रकाशित किया गया है। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री सहित अनेक अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त, वे संस्कृति क्षेत्र में नीतियों के निर्माण, कलाकारों के अधिकारों की पैरवी और कला-संस्थानों के सहयोग हेतु पिछले कई दशकों से सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।
प्रतिभा प्रह्लाद केवल एक कलाकार नहीं, एक चेतना हैं। उनके शब्द सिर्फ विचार नहीं, एक क्रांति हैं — भारतीय संस्कृति को समझने, अपनाने और उसे सम्मान देने की क्रांति। जो अपनी संस्कृति को नहीं जानता, वह भारतीय कैसे हो सकता है? यह प्रश्न नहीं, एक आत्ममंथन है।और यही आत्ममंथन आज की सबसे बड़ी जरूरत है।
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