लकड़ी के हस्तशिल्प निर्यातकों के प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव से की मुलाकात
दिल्ली/एनसीआर, 02 सितंबर 2025 – ईपीसीएच के उपाध्यक्ष सागर मेहता के नेतृत्व में हस्तशिल्प निर्यातकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने भारत सरकार के केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव से मुलाकात की। इस अवसर पर तन्मय कुमार, सचिव, एमओईएफसीसी; सुशील कुमार अवस्थी, महानिदेशक वन; जोधपुर से ईपीसीएच सीओए सदस्य हंसराज बाहेती, ; नरेश बोथरा, अध्यक्ष, जोधपुर हस्तशिल्प निर्यातक संघ; मोहम्मद औसाफ, महासचिव, सहारनपुर वुड कार्विंग मैन्युफैक्चर एसोसिएशन; आर. के. वर्मा, कार्यकारी निदेशक – ईपीसीएच; राजेश रावत अतिरिक्त कार्यकारी निदेशक; सचिन राज, संयोजक, एनसीसीएफ; अनवर अहमद, सहारनपुर के प्रमुख सदस्य निर्यातक और रौनक पारख जोधपुर के प्रमुख सदस्य निर्यातक उपस्थित रहे ।
ईपीसीएच के अतिरिक्त कार्यकारी निदेशक राजेश रावत ने बताया बैठक का उद्देश्य मंत्री को ईयूडीआर अनुपालन के संबंध में लकड़ी के हस्तशिल्प निर्यातकों के सामने आने वाली समस्याओं और चुनौतियों से अवगत कराना था। मंत्री ने धैर्यपूर्वक उठाए गए मुद्दे को सुना और आश्वासन दिया कि चिंताओं की उचित जांच की जाएगी।
ईपीसीएच अध्यक्ष डॉ. नीरज खन्ना ने कहा, “हालांकि हम यूरोपीय संघ की वनों की कटाई को रोकने की कोशिशों की सराहना करते हैं, पर ईयूडीआर अनुपालन की आवश्यकताएं हमारे लकड़ी के हस्तशिल्प निर्यातकों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। हमारे लकड़ी से बने हस्तशिल्प मुख्य रूप से आम, बबूल और शीशम की लकड़ियों से बनते हैं, जो ज्यादातर कृषि वानिकी से प्राप्त होते हैं। ये पेड़ प्राकृतिक जंगलों के बाहर उगाए जातें हैं जो वनों की कटाई के तहत नहीं आते हैं।
उन्होंने आगे कहा, “हमारा मानना है कि अगर ये सख्त अनुपालन हमारे देश की स्थिति को ध्यान में रखे बगैर लागू किए गए, तो बहुत बड़ा व्यवधान पैदा हो सकता है। इससे बहुत से कारीगर और एमएसएमई निर्यातक यूरोपीय संघ के बाजारों में अपनी जगह गंवा सकते हैं, इससे उत्पादन में गिरावट, ऑर्डर रद्द होने और कारीगरों और उनके आश्रितों के बीच बड़ी संख्या में बेरोजगारी आ सकती है।”
ईपीसीएच के उपाध्यक्ष सागर मेहता ने कहा कि, “हस्तशिल्प क्षेत्र ग्रामीण और अर्ध-शहरी भारत के लाखों कारीगरों की आर्थिक रीढ़ है। सोर्सिंग की स्थायी प्रकृति के बावजूद, ईयूडीआर भारत जैसे देशों में संदर्भगत अंतरों की परवाह किए बिना सभी लकड़ी निर्यातकों पर समान दायित्व डालता है। सरकारी हस्तक्षेप के बिना, ईयूडीआर का अनुपालन हमारे निर्यातकों के लिए बेहद जटिल हो सकता है।”
मेहता ने सरकार से एक समन्वित राष्ट्रीय प्रतिक्रिया और रचनात्मक सहयोग का आग्रह किया, जिसमें पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, कृषि और ग्रामीण विकास मंत्रालय, कपड़ा मंत्रालय/विकास आयुक्त (हस्तशिल्प) और डीजीएफटी के बीच एक अंतर-मंत्रालयी समिति की स्थापना की जाए ताकि एक केंद्रीकृत दस्तावेज़ीकरण प्रणाली के साथ एक डिजिटल ट्रेसेबिलिटी/जियो-लोकेशन ढांचा प्रदान किया जा सके; राज्य वन विभागों को भूखंडों के भू-निर्देशांक और कटाई की मात्रा को दर्ज करने और कार्य योजनाओं को सुलभ बनाने का निर्देश दिया जाए; वृक्ष योजना से जुड़ी एक राष्ट्रीय लकड़ी पोर्टल प्रणाली शुरू की जाए; भू-निर्देशांक के साथ एक लाइसेंस प्राप्त आरा मिल रजिस्ट्री प्रकाशित की जाए और आम बबूल और शीशम जैसी कृषि वानिकी आधारित लकड़ी से बने हस्तशिल्प के लिए स्थगन या उपयुक्त छूट दी जाए।
जोधपुर ईपीसीएच के सीओए सदस्य हंसराज बाहेती ने कहा कि “यूरोपीय संघ के वनों की कटाई संबंधी नियम लकड़ी के हस्तशिल्प निर्यातकों, खास कर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) और कारीगर-आधारित उद्यमों के लिए एक गंभीर चुनौती पेश करते हैं। हालांकि हम स्थायी और जिम्मेदार बिजनेस का पूर्ण समर्थन करते हैं, लेकिन यह समझना जरूरी है कि हमारा लकड़ी हस्तशिल्प क्षेत्र अपनी खास प्रकृति रखता है, यह कृषि वानिकी पर आधारित है और वनों की कटाई में कोई भूमिका नहीं निभाता। इसलिए हम एक व्यावहारिक अनुपालन ढांचा विकसित करने के लिए सरकारी निकायों, उद्योग के स्टेकहोल्डर्स को शामिल करते हुए एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण का अनुरोध करते हैं जो वैश्विक दीर्घकालिक लक्ष्यों को पूरा करते हुए हमारे कारीगरों की सुरक्षा करे।
ईपीसीएच के अपर कार्यकारी निदेशक राजेश रावत ने कहा, “ईपीसीएच हमेशा वैश्विक सस्टेनेबिलिटी मानकों के अनुरूप काम करता रहा है, जैसे कि ‘वृक्ष’ (टिम्बर लीगैलिटी असेसमेंट ऐंड वेरिफिकेशन स्कीम) योजना, जो कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त प्रणाली है जो लकड़ी की सोर्सिंग की वैधता और सस्टेनेबल स्रोत से प्राप्त होने की पुष्टि करती है। हालांकि जियो रेफरेंस पर आधारित ट्रैसेबिलिटी सिस्टम (यानी नक्शे पर कॉऑर्डिनेट्स को दर्शाने वाली डिजिटल इमेज) को बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए नीति बनाकर समर्थन करने, फंडिंग और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत है। यही सामूहिक दृष्टिकोण भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा को सुरक्षित रखते हुए अनुपालनों को सुनिश्चित करेगा।”
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