New Delhi News (10 August 2025): अमेरिका द्वारा भारत के कुछ उत्पादों पर टैरिफ लगाने का फैसला वैश्विक आर्थिक मंच पर एक नया मोड़ लेकर आया है। इस कदम से न केवल वैश्विक व्यापार संतुलन प्रभावित होगा, बल्कि आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय आर्थिक रिश्तों की दिशा भी बदल सकती है। अमेरिका का यह निर्णय ऐसे समय आया है जब विश्व अर्थव्यवस्था पहले से ही भू-राजनीतिक तनाव, तेल कीमतों में उतार-चढ़ाव और वैश्विक मुद्रा व्यवस्था में हो रहे बदलावों से जूझ रही है।
भारत की दृष्टि से देखा जाए तो यह टैरिफ दो तरह का असर डाल सकता है- पहला, अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पादों के निर्यात पर सीधा दबाव, और दूसरा, नए बाजारों की तलाश और वहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का अवसर। कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत इस परिस्थिति को एक अवसर में बदल सकता है। यदि भारतीय कंपनियां और निर्यातक अमेरिका पर निर्भरता कम करके एशिया, अफ्रीका, यूरोप और लैटिन अमेरिका के बाजारों में विस्तार करें, तो भारतीय उत्पादों की मांग वैश्विक स्तर पर और मजबूत हो सकती है।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर अमेरिका ने भारत को ही क्यों निशाना बनाया, जबकि रूस से तेल खरीदने में चीन, तुर्किये और कई अन्य देश भी सक्रिय हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके पीछे सिर्फ तेल का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह अमेरिका की उस चिंता से जुड़ा है कि भारत अब वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में एक नई शक्ति के रूप में उभर रहा है। भारत की ऊर्जा नीति, स्वतंत्र विदेश नीति और बहुपक्षीय मंचों पर सक्रिय भूमिका ने उसे एक ऐसे देश के रूप में स्थापित किया है जो बड़े देशों के दबाव में आने से इनकार करता है।
एक और अहम पहलू डॉलर का घटता वैश्विक प्रभाव है। बीते कुछ वर्षों में दुनिया के कई देश आपसी व्यापार अपनी स्थानीय मुद्राओं में करने लगे हैं, जिससे डॉलर की पकड़ ढीली होती जा रही है। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, आने वाले वर्षों में डॉलर का वैश्विक वर्चस्व 50 से 70 प्रतिशत तक घट सकता है। यह अमेरिका के लिए न केवल आर्थिक बल्कि रणनीतिक झटका है। यही वजह है कि वह अपने आर्थिक हितों को सुरक्षित करने के लिए कठोर कदम उठा रहा है।
भारत ने भी अपने रुख में स्पष्टता दिखाई है कि राष्ट्रीय हित और किसानों के हित सर्वोपरि हैं, और किसी भी बाहरी दबाव में आकर कोई समझौता नहीं किया जाएगा। इसी के साथ रूस-भारत-चीन का उभरता त्रिकोण अमेरिका के लिए एक नई चुनौती बनता जा रहा है। रूस के साथ भारत के ऐतिहासिक संबंध और चीन के साथ हाल के वर्षों में बढ़ते व्यापारिक रिश्ते इस गठजोड़ को और मजबूत बना रहे हैं। यदि यह सहयोग आर्थिक, ऊर्जा और सुरक्षा क्षेत्रों में और गहरा होता है, तो यह अमेरिका के वैश्विक प्रभाव को सीधी चुनौती दे सकता है।
इस परिस्थिति में अमेरिका का टैरिफ निर्णय केवल आर्थिक नीति का हिस्सा नहीं, बल्कि एक व्यापक भू-राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी माना जा रहा है। भारत के सामने अब दोहरी चुनौती है, अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा बनाए रखना और साथ ही नए बाजारों में अपना विस्तार करना। लेकिन अगर भारत इस मौके का सही इस्तेमाल करता है, तो यह झटका उसकी आर्थिक स्वतंत्रता और वैश्विक प्रभाव को और मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।।
अस्वीकरण: यह रिपोर्ट विश्वसनीय एवं प्रतिष्ठित मीडिया रिपोर्ट्स द्वारा प्रदत जानकारी के आधार पर प्रकाशित की गई है। टेन न्यूज नेटवर्क की टीम इस प्रमाणिकता की पुष्टि नहीं करता है।
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