New Delhi News (04/08/2025): झारखंड की राजनीति के सबसे बड़े आदिवासी नेता और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक संरक्षक शिबू सोरेन (Shibu Soren) का सोमवार सुबह दिल्ली में निधन हो गया। 81 वर्षीय दिशोम गुरु पिछले डेढ़ महीने से गंभीर रूप से बीमार थे और सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती थे। किडनी की समस्या और स्ट्रोक के बाद उन्हें जून के आखिरी सप्ताह में ICU में रखा गया था, जहां वे लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे। डॉक्टरों की टीम लगातार उनकी निगरानी कर रही थी, लेकिन सोमवार सुबह 8:56 बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पिता के निधन की जानकारी साझा की और भावुक शब्दों में कहा, “आज मैं शून्य हो गया हूं…”।
आदिवासी हितों के प्रति रहे प्रतिबद्ध
शिबू सोरेन का झारखंड निर्माण आंदोलन में अतुलनीय योगदान रहा है। उन्होंने न केवल आदिवासियों के हक और सम्मान की लड़ाई लड़ी, बल्कि झारखंड को एक अलग राज्य का दर्जा दिलाने में भी अहम भूमिका निभाई। वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने। पहली बार 2 मार्च 2005 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन बहुमत न जुटा पाने के कारण 10 दिन बाद ही इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद वे 2008 और फिर 2009 में मुख्यमंत्री बने और क्रमश: 19 जनवरी 2009 व 1 जून 2010 तक कार्यभार संभाला। इन तीनों कार्यकालों में उनका संघर्ष, नीतिगत फैसले और आदिवासी हितों के प्रति प्रतिबद्धता स्पष्ट रूप से दिखी।
संसद के दोनों सदनों के रहे सदस्य
सिर्फ राज्य स्तर पर ही नहीं, शिबू सोरेन ने राष्ट्रीय राजनीति में भी अपना विशेष स्थान बनाया। वे आठ बार लोकसभा सांसद चुने गए और तीन बार राज्यसभा में भी प्रतिनिधित्व किया। इसके अलावा उन्होंने केंद्र सरकार में कोयला मंत्री जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों में भी अपनी सेवाएं दीं। उनका राजनीतिक जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। उनके समर्थक उन्हें ‘दिशोम गुरु’ यानी ‘देश का गुरु’ कहकर सम्मानित करते थे, जो उनके सामाजिक और राजनीतिक योगदान का प्रतीक है।
भारतीय राजनीति में छोड़ा अमिट छाप
शिबू सोरेन का निधन झारखंड ही नहीं, पूरे देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनकी राजनीतिक सूझबूझ, जमीन से जुड़ा नेतृत्व और आदिवासी समुदाय के प्रति उनका समर्पण आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा रहेगा। उनके नेतृत्व में झामुमो ने कई आंदोलनों को दिशा दी और आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, और अधिकारों के मुद्दे को मजबूती से उठाया। उन्होंने आदिवासी संस्कृति और विरासत को राजनीति के केंद्र में लाकर एक नई पहचान दी, जिसे देश हमेशा याद रखेगा।
राजनीतिक और सामाजिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेताओं से लेकर सामाजिक संगठनों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है। झारखंड सरकार ने राज्य में राजकीय शोक की घोषणा की है और उनके पार्थिव शरीर को रांची लाकर अंतिम दर्शन के लिए आम जनता के बीच रखा जाएगा। अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव में पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। दिशोम गुरु के रूप में पहचाने जाने वाले शिबू सोरेन की विरासत और विचारधारा लंबे समय तक झारखंड और भारत की राजनीति को प्रेरित करती रहेगी।
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