DPCC रिपोर्ट में बड़ा खुलासा! यमुना को सबसे ज्यादा प्रदूषित कर रही साहिबाबाद ड्रेन
टेन न्यूज नेटवर्क
New Delhi News (29/07/2025): दिल्ली सरकार द्वारा यमुना नदी को स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त बनाने के तमाम दावों के बावजूद, हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) की ताज़ा रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। राजधानी और सीमावर्ती क्षेत्र की लगभग 1700 फैक्ट्रियाँ अपना अपशिष्ट बिना किसी उपचार के सीधे यमुना में छोड़ रही हैं। यह जहरीला पानी मानव और पशु स्वास्थ्य दोनों के लिए खतरनाक बताया गया है, जिसमें रसायन, भारी धातुएं और कार्सिनोजेनिक तत्व शामिल हो सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, बिना ट्रीटमेंट के छोड़े जा रहे इस औद्योगिक अपशिष्ट से यमुना की पारिस्थितिकी तंत्र और जलीय जीवों पर भारी संकट मंडरा रहा है।
रिपोर्ट में विशेष रूप से साहिबाबाद ड्रेन को सबसे अधिक प्रदूषक बताया गया है। यह ड्रेन गाजियाबाद से निकलकर दिल्ली होते हुए यमुना में मिलती है, जिसमें गाजियाबाद और दिल्ली के कई घनी आबादी वाले इलाके तथा औद्योगिक इकाइयाँ शामिल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इस ड्रेन में BOD स्तर 220 mg/l और COD स्तर 536 mg/l तक पाया गया, जबकि मानक स्तर क्रमश: 30 mg/l और 250 mg/l होना चाहिए। इतना ही नहीं, इंद्रापुरी, सोनिया विहार और कैलाश नगर जैसे अन्य नाले भी खतरनाक स्तर पर प्रदूषित पाए गए हैं, जो साफ दर्शाता है कि यमुना को ‘गंदा नाला’ बनाने में किन-किन हिस्सों की भूमिका है।
भूजल भी खतरे में, इंसानों और जानवरों के लिए गंभीर संकट
केवल यमुना ही नहीं, बल्कि इसके किनारे बसे क्षेत्रों का भूजल भी इस प्रदूषण के चलते जहरीला होता जा रहा है। साहिबाबाद साइट-4 जैसे क्षेत्रों की फैक्ट्रियाँ भारी मात्रा में रासायनिक अपशिष्ट इस नाले में प्रवाहित कर रही हैं। यह प्रदूषित जल ज़मीन में रिसकर भूजल को भी संक्रमित कर रहा है, जिससे आसपास रहने वाले लाखों लोगों की सेहत पर संकट बढ़ता जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह पानी किसी भी रूप में इस्तेमाल योग्य नहीं है और इसके सेवन से कैंसर, त्वचा रोग और जल जनित बीमारियाँ तेजी से फैल सकती हैं।
एनजीटी आदेशों की अवहेलना, प्रशासन की लापरवाही उजागर
इस गंभीर स्थिति को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता सुशील राघव ने सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) में याचिका दायर की थी। NGT ने कड़े निर्देश देते हुए नाले की सफाई, अतिक्रमण हटाने और औद्योगिक अपशिष्ट पर नियंत्रण के आदेश दिए थे। लेकिन आज तक न तो कोई ठोस कार्रवाई हुई, न ही प्रदूषण रोकने की दिशा में कोई तकनीकी व्यवस्था लागू की गई। फैक्ट्रियों से अपशिष्ट के पूर्व उपचार (pre-treatment) की कोई निगरानी नहीं हो रही है, जिससे स्पष्ट है कि जमीनी स्तर पर पर्यावरण सुरक्षा के लिए सरकार के दावे महज़ दिखावा बनकर रह गए हैं।
समाधान की मांग, अलग पाइपलाइन और सख्त निगरानी जरूरी
DPCC की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए पर्यावरणविदों ने सरकार से मांग की है कि साहिबाबाद ड्रेन में गिरने वाले औद्योगिक अपशिष्ट पर तत्काल रोक लगे और फैक्ट्रियों में पूर्व उपचार की व्यवस्था अनिवार्य की जाए। इसके अलावा घरेलू सीवेज के लिए अलग पाइपलाइन सिस्टम विकसित किया जाए ताकि औद्योगिक और घरेलू अपशिष्ट एकसाथ न मिले। रिपोर्ट ने यह भी साबित कर दिया है कि यदि जल्द ही सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो यह नाला न सिर्फ यमुना बल्कि पूरे उत्तर भारत के जलस्रोतों और लोगों के जीवन के लिए गंभीर संकट बन सकता है।

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